इसे कुकर खाँसी, कुत्ता खाँसी और हूप खाँसी भी कहा जाता है। यह खाँसी अधिकांशत: छोटे बच्चों को ही होती है । इस रोग में धीमी खाँसी से शुरु होकर कई दिन बाद खाँसी बहुत बढ़ जाती है और फिर खाँसी दौरे के रूप में उठने लगती है । फिर खाँसी का आक्षेप-सा आने लगता है । खाँसते समय कुत्ते की आवाज आती है । रोगी का चेहरा एकदम लाल हो जाता है, आँखों से पानी आने लगता है और दौरे के बाद रोगी एकदम मुर्दे जैसा निढाल हो जाता है। कुछ चिकित्सकों का मानना है कि यह रोग विटामिन ‘के’ की कमी से उत्पन्न होता है । यह एक संक्रामक रोग है अतः रोगी से अन्य स्वस्थ व्यक्तियों के संक्रमित होने का खतरा बना रहता है।
पटुंसिन 30- यह काली खाँसी की सबसे उत्तम औषधि है । रोग की प्रत्येक अवस्था में इसका प्रयोग किया जा सकता है । इस रोग के लिये इससे श्रेष्ठ कोई दवा नहीं है । –
मिफाइटिस 1x- यह भी काली खाँसी की प्रायः समस्त अवस्थाओं में लाभकारी है ।
ड्रेसेरा 30 और कूप्रम मेट30- इन दोनों दवाओं को सुबह-शाम पर्यायक्रम से देने पर भी लाभ होता देखा गया है ।