भूरे कणों वाला पाउडर जिसमें विशेष प्रकार की गन्ध आती है, इस साधारण औषधि और खाद्य में विटामिन B1, B2, B6, नियासिन, कोलीन, पेंटोथेनिक एसिड, फोलिक एसिड, बायोटिन और बी कम्पलेक्स के सब अंश बहुत अधिक मात्रा में होने के अतिरिक्त मनुष्य शरीर को जितने खनिज अंशों की आवश्यकता होती है, वे सब यीस्ट में पाये जाते हैं। इसीलिए खमीर को चमत्कारी खाद्य समझा जाने लगा है । रोगियों को इसकी टिकिया और पाउडर प्रतिदिन खिलाकर काफी रोग दूर किये जा सकते हैं। मनुष्य की आयु तक बढ़ाई जा सकती है। यूरोप और अमेरिका सहित दुनिया के तमाम देशों के रोगियों को और स्वस्थ मनुष्यों को यह बहुतायत से खिलाया जा रहा है ।
यीस्ट बीसियों प्रकार के रोग दूर कर असीम शक्ति प्रदान करने वाली औषधि है। इसके द्वारा आप अनेकों प्रकार के रोग दूर कर रोगियों और वृद्धजनों को ताकतवर बना सकते हैं। कैमिस्टों के यहाँ इसकी टिकिया मिलती है, परन्तु इसको पाउडर के रूप में 2-4 किलोग्राम खरीदने पर यह औषधि बहुत ही सस्ती पड़ती है और Brewer’s Yeast के नाम से खरीदी जा सकती है । कई प्रकार के विटामिन बी, शक्ति देने वाले प्रोटीन, अनेक अमीनो एसिड, लोहा, चांदी, आयोडीन, फास्फोरस, पोटाशियम, मैग्नेशियम, कैल्शियम, तांबा और कई आवश्यक खनिज पदार्थ जो मनुष्य को ताकवर, स्वस्थ बनाये रखने के लिए आवश्यक हैं, इसमें पाये जाते हैं । यह बी कम्पलेक्स और प्रोटीन वाली सबसे सस्ती और अधिक प्रभावशाली औषधि और खाद्य है। मनुष्य को 55 प्रकार के पदार्थों की आवश्यकता होती है जिसमें से अधिकतर यीस्ट में हैं ।
अमेरिका के कैटरिंग (Kettering) इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर में चूहों पर अनुभव करने से पता चला कि यीस्ट यकृत में कैंसर को दूर करने में बहुत ही उत्तम औषधि है। यकृत के संक्रामक शोथ (Infections Hepatitis) के 1000 रोगी यीस्ट के प्रयोग से जादू की भाँति, स्वस्थ होने लग गये । (इनमें से कई तो 9 मास से वर्षों तक सरकारी अस्पतालों और प्रसिद्ध विद्वान् ऐलोपैथिक चिकित्सकों से भी ठीक न हो सके थे, यीस्ट से उनका यकृत बिल्कुल स्वस्थ हो गया और फिर दोबारा यह रोग उन्हें नहीं हुआ ।)
अमेरिका के प्रसिद्ध चिकित्सक ‘बिकनैल’ और ‘प्रैसकाट’ ने लिखा है कि – बुढ़ापे में पागल हो जाने पर यह औषधि बहुत ही चमत्कारी है। इसे पागलखानों में रहने वाले हजारों पागलों को जब अधिक मात्रा में यीस्ट वीट जर्म और विटामिन बी खिलाई गई तो 25 से 50 घण्टों में ऐसे पागलों की दशा में सुधार होने लग गया ।
डॉ० लेस्टर मोरीसन विटामिन बी की कमी को दूर करने के लिए यीस्ट को हृदय रोगों से ग्रसित रोगियों को सफलता से देते रहे । डॉ० जैरोम मार्क्स (एम.डी.) यीस्ट कब्ज दूर करने के लिए रोगियों को खिलाते हैं । डॉ० ऐडलेडेविस मोटे व्यक्तियों का वजन घटाने के लिए अपने रोगियों को यीस्ट खिलाते हैं । अमेरिका के स्टेट हॉस्पिटल में रोगियों में विटामिनों की कमी को दूर करने के लिए यीस्ट खिलाई जाती है। जिससे उनकी बदहज्मी, भूख न लगना, चेहरे और शरीर पर झुर्रियाँ पड़ जाना, रक्त संचार भली प्रकार न हो सकना इत्यादि तुरन्त दूर होने लगता है । इसके प्रयोग से बूढ़ों और बड़ी आयु तक के रोगियों को आश्चर्यजनक लाभ होता है ।
23 से 40 वर्ष के 10 मनुष्यों को विटामिन रहित भोजन जैसे डबलरोटी, बिस्कुट, चावल, आइसक्रीम आदि खिलाया जाता रहा । उनको सप्ताह में मात्र दो बार थोड़ा मांस और मछली भी खिलाई गई और दिन भर उनसे कठोर परिश्रम कराया जाता रहा । परिणाम स्वरूप मात्र एक सप्ताह में ही 10 व्यक्तियों में निम्न लक्षण प्रकट हो गये –
सुस्ती, थकावट, पेशियों और जोड़ों में दर्द, भली प्रकार काम न कर सकना, भूख न लगना, चिड़चिड़ापन, कब्ज इत्यादि । फिर उनको यीस्ट खिलाने से मात्र 48 घण्टे के अन्दर उनके ये सब कष्ट दूर हो गये और वे नई शक्ति अनुभव करने लगे ।
डॉ० Muir कुष्ठ यानि कोढ़ (लैप्रोसी) के रोगियों को विटामिन की कमी को दूर करने के लिए यीस्ट खिलाते रहे, इस प्रयोग से उनके कुष्ठ रोग को तो लाभ नहीं हुआ, परन्तु उनकी भूख इतनी बढ़ गई कि वह अधिक भोजन माँगने और खाने लगे। इसी प्रकार नाइजीरिया के पागलखानों में पागलों में विटामिन बी की कमी को दूर करने के लिए 7 ग्राम यीस्ट प्रतिदिन खिलाई जाती रही परिणामस्वरूप डेढ़, दो मास में उनका पागलपन काफी कम हो गया ।
बच्चों को भूख कम लगने पर उनको दूध में घोलकर यीस्ट पिलाते रहने से उनकी भूख, वजन, शारीरिक और मानसिक शक्ति बढ़ जाती है। पुराने एक्जिमा, फोडे-फुन्सी, खुजली, कील-मुँहासे और दूसरे चर्म रोग होने पर रोगी को प्रतिदिन यीस्ट खिलाते रहने से उनके ये सब चर्म रोग दूर हो जाते हैं और शरीर सुन्दर हो जाता है । काम करने के बाद थकावट अनुभव होने पर अथवा थोड़ा-सा काम करने से ही थक जाने पर यीस्ट खिला देने से थकावट दूर हो जाती है। समय से पहले बाल सफेद हो जाने पर रोगी को यीस्ट और मीठा (चीनी डालकर) दही प्रतिदिन बार-बार खिलाते रहने से बाल दोबारा काले पैदा हो जाते हैं ।
नोट – यह प्रयोग अर्थात दही और यीस्ट कई मास तक खाना जरूरी है।
प्राचीन काल में यूनान निवासी यीस्ट को रक्त शुद्ध करने और चर्म रोग दूर करने के लिए खाया करते थे । इसके अतिरिक्त प्लेग में इसको खिलाया जाता था जिससे हजारों रोगी प्लेग से मरने से बच जाते थे ।
लोग मांस, मछली, अण्डे, मक्खन, पनीर आदि खाते हैं क्योंकि इनमें प्रोटीन अधिक मात्रा में होती है । प्रोटीन ही शरीर को ताकत देती है । शरीर में सेलों को पैदा करती है और उनमें नया जीवन लाती है। यीस्ट में प्रोटीन अण्डे से कुछ कम होती है। इसमें यह विशेषता है कि यह मांस-मछली, अण्डे, दूध आदि से बहुत ही सस्ती होती है । इसमें प्रोटीन के अतिरिक्त शरीर को ताकतवर बनाने वाले कई दूसरे अंश भी होते हैं जो मांस तथा अण्डों में नहीं होते हैं । गरीब लोग जो मांस-मछली नहीं खा सकते हैं वे भी प्रतिदिन यीस्ट खाकर अपने शरीर की ताकतवर बना सकते हैं ।
यीस्ट मनुष्य में नई सेलें उत्पन्न करती है । कट जाने से, जल जाने से उत्पन्न हुए घावों को शीघ्र भर देती है । मसूढ़े सूज जाने, उनमें से पीप और रक्त आने पर यीस्ट खिलाने से यह कष्ट दूर हो जाता है। इसके प्रयोग से पाचनांगों में शक्ति आकर कब्ज दूर हो जाती है । दस्त आने भी रुक जाते हैं । पुरानी कब्ज एक या दो सप्ताह में ही दूर हो जाती है । लन्दन की प्रसिद्ध डॉक्टरी पत्रिका अर्थात् मैगजीन के अक्टूबर 8, 1932 के अंक में डॉ० गुडाल ने एक लेख प्रकाशित कराया था कि यीस्ट कई बार घातक रक्ताल्पता तक को दूर कर देती है । इसमें खमीर उत्पन्न होने के कारण यह कीटाणु नाशक गुण रखती है। इसीलिए घावों, कील, मुँहासों पर पानी में लेप बनाकर लगाते रहने से घाव भर जाते हैं ।
मात्रा – यीस्ट का पावडर 1 से 2 छोटे चम्मच दूध, फलों के रस, दही या पानी के साथ दिन में 3-4 बार खिलाना काफी है । शुरू में कम मात्रा में प्रयोग करायें । (बहुत अधिक मात्रा में खाने पर रोगी को लाभ के स्थान पर हानि भी पहुँच सकती है। इसकी 6 टिकिया वयस्कों को तथा बच्चों को 2-3 टिकिया पीसकर दूध या किसी पेय मे मिलाकर दिन में 3-4 बार खिला सकते हैं। आयु-पर्यन्त खाते रहने से भी हानि नहीं पहुँचती है ।