इस ज्वर को जर्द बुखार, बभू ज्वर और हारिद्रक ज्वर इत्यादि के नामों से भी जाना जाता है । यह बुखार एक विशेष प्रकार के मच्छर के काटने पर होता है तथा 10 दिन के बाद लक्ष्ण उत्पन्न हो जाते हैं। रोगी को कंपन और सर्दी लगकर तीव्र ज्वर हो जाता है। नाड़ी बहुत तीव्र, माथे, कमर और आमाशय के ऊपर तीव्र दर्द और मितली होती है । ज्वर के तीसरे दिन मूत्र में एल्ब्यूमिन अधिक आने लग जाती है। अन्त में कॉफी के रंग की काली कै आने लग जाती है। रोगी को पाण्डु रोग (यरकान) हो जाता है जिससे उसका सम्पूर्ण शरीर पीला पड़ जाता है । इसलिए ही इस ज्वर को पीला ज्वर कहा जाता है । बाद में ज्वर के दर्जे के अनुसार नाड़ी की गति कमजोर हो जाती है। दिल पहले बहुत धड़कता है परन्तु बाद में दिल और नाड़ी की गति 72 बार प्रति मिनट से भी बहुत कम चलने लग जाती है । ब्लडप्रैशर कम हो जाता है । रोग से बचने के लिए मच्छरदानी लगाकर सोयें ।
इस रोग का मच्छर अफ्रीका के जंगलों में बहुत होता है। रोगी को नमकीन जुलाब न दें। कब्ज को दूर करने के लिए एनीमा ही करें, दवा न दें। ज्वर 100 डिग्री से ऊपर बढ़ने पर ठण्डे पानी से स्पंज करें । मूत्र बन्द हो जाने पर वृक्कों के स्थान पर टकोर करें या कपिंग ग्लास का प्रयोग करें। रक्त में इन्फेक्शन रोकने के लिए ग्लूकोज 5% 125 मि.ली. शिरा में बूंद-बूंद करके प्रविष्ट करायें । रोगी को पहले 2-3 दिन कोई ठोस भोजन न दें। केवल बर्फ का टुकड़ा ही चुसाते रहें। ग्लूकोज का पानी नीबू का रस मिलाकर अथवा सोडा-वाटर बार-बार पिलायें। इसके बाद दूध, आइसक्रीम, जेली दे सकते हैं। दर्दों को दूर करने वाली कोई शामक दवा दें। बेचैनी और नींद न आने पर मार्फिया (मारफीन) 15 मि.ग्रा. का इन्जेक्शन लगायें ।
पाराक्सीन कैपसूल (बी. नाल कम्पनी) – 250 से 500 मि.ग्रा. का आवश्यकतानुसार कैप्सूल प्रत्येक 6-6 घण्टे पर सेवन करायें ।
नियोजीन (ए. एफ. डी.) – 1 से 2 टिकिया भोजन के बाद दिन में तीन बार दें।
नोरजेसिक (सिपला कम्पनी) – 1 से 2 टिकिया भोजन के बाद दिन में तीन बार दें ।
रेक्लार (साराभाई कम्पनी) – वयस्कों को 250 या 500 मि.ग्रा. का कैपसूल रोगानुसार दें।
विटामाईसेटिन (ज्यो. मैनर्स) – 1 कैप्सूल 250 मि.ग्रा. का प्रत्येक 6-6 घण्टे बाद दें तथा साथ में डेक्सोरेन्ज या हेप्टो ग्लोबिन, हेप या आमिकाल अथवा वायडेलिन इत्यादि में से कोई सा एक टॉनिक (सीरप) भी सेवन करायें ।