लक्षण तथा मुख्य-रोग | लक्षणों में कमी |
मानसिक-लक्षण – क्रोध, चिड़चिड़ापन ( बच्चा गोद में रहना चाहता है ) | गोद में लेने से चैन पड़ना |
दर्द-जरूरत से ज्यादा अनुभव करना | लक्षणों में वृद्धि |
बच्चों की दांत निकलने के समय की शिकायतें (कान का दर्द, पेट का दर्द, ऐठन, हरे घास जैसा दस्त) | क्रोध से लक्षणों का बढ़ना |
दांत निकलते समय परेशानी | |
रात को कष्ट का बढ़ जाना |
(1) मानसिक-लक्षण – क्रोध, चिड़चिड़ापन – कैमोमिला औषधि बच्चों के दांत निकलने के समय की शिकायतों के लिये सर्वत्र प्रसिद्ध है, परन्तु मुख्य तौर पर इसके लक्षण मानसिक हैं। दांत निकलने के समय भी जो लक्षण प्रकट होते हैं उनके आधार में दांत काटने के कारण जो खिजाहट, दर्द, परेशानी आदि होती है वही उन लक्षणों को उत्पन्न करती है। उसे क्रोध की मुख्य दवा कहा जा सकता है। क्रोध के आवेश से जो रोग उत्पन्न हो सकते हैं, वे इसके क्षेत्र में है। क्रोध और चिड़चिड़ापन में कोई ज्यादा अन्तर नहीं है। क्रोधी व्यक्ति हर बात में चिड़चिड़ा हो जाता है, और जब कोई चिड़चिड़ाता हो तो उसे टोकने से उसे क्रोध आ जाता है। कैमोमिला में स्वभाव में तूफान आ जाता है।
बच्चों में कैमोमिला के मानसिक-लक्षण-बच्चा जो चीज मांगता है फेंक देता है, गोद में ही रहना चाहता है – कैमोमिला के बच्चों को पहचानना कठिन नहीं है। वह खुद तो बोल नहीं सकता, परन्तु अपनी चेष्टाओं से साफ बोल रहा होता है कि उसे कितना क्रोध आ रहा है, कितनी चिड़चिड़ाहट है। वह कभी इस चीज की तरफ़ हाथ बढ़ाता है, कभी उस चीज की तरफ़, और जब उसे वह चीज पकड़ा दी जाती है तब उसे दे पटकता है, लगातार चिल्लाया करता है। दांत निकलने की पीड़ा और खीझ के कारण उसके भीतर जो खिजाहट हो रही होती है, उसी से उसकी यह परेशानी होती है। उसे स्वयं नहीं मालूम होता कि वह क्या चाहता है परन्तु होम्योपैथ की पता होता है कि उसे क्या चाहिये। उसे कैमोमला की 30 शक्ति की एक मात्रा की जरूरत होती है। इसी मीठी गोली के मुँह में जाते हीं 5 मिनट में वह शान्त हो जाता है।
बच्चे के मां-बाप जब तक उसे गोद में लिये रहते हैं तब तक वह चुप रहता है, अन्यथा चिल्लाता रहता है ज्यों ही मां उसे गोद से उतार कर पालने में डालती है, त्यों ही वह फिर से चिल्लाने लगता है। गोद में से उतारने से चिल्लाने लगना इस औषधि का विशेष लक्षण है। अगर बच्चे के लिऐ नर्स रखी गई हैं, तो उस बेचारी को हर समय उसे गोद में लटकाये रखना पड़ता है। कभी-कभी ऐसी हालत भी आ जाती है कि मां की गोद से वह बाप की गोद में जाने को हाथ फैलाता है, बाप ले ले तो नर्स की तरफ हाथ बढ़ाता है, उसकी गोद में जाकर भी उसे शान्ति नहीं मिलती, तब फिर मां-बाप की तरफ उनके पास जाने को देखता है।
युवा या युवती में कैमोमिला के मानसिक-लक्षण-क्रोध तथा चिड़चिड़ापन – यही नहीं कि बच्चे के मानसिक-लक्षणों पर इस औषधि का प्रभाव है, युवा तथा युवती भी जब क्रोध या चिड़चिड़ेपन के शिकार हों तब इस औषधि से चमत्कार हो जाता है। क्रोध की अन्य औषधियां हैं: एकोनाइट, ब्रायोनिया, कौलोसिन्थ, इग्नेशिया, लाइकोपोडियम, नक्स वोमिका तथा स्टैफिसैग्रिया। लक्षणानुसार इन्हें देने से आवेश में आये हुए मनुष्य का क्रोध शान्त हो जाता है।
कैमोमिला की रोगिन-स्त्री एकदम उबल उठती है, गुस्सा करने लगती है, गाली बकने लगती है। यह नहीं कि वह अनुभव नहीं करती कि वह आपे से बाहर हो गई है, वह महसूस करती है कि उसे ऐसा नहीं करना चाहिए, परंतु वह अपने स्वभाव को रोक नहीं सकती, फिर बार-बार वैसा ही करती है। अपने निकटतम सम्बन्धियों, मित्रों तक को खिजाहट भरे उत्तर देती है। एक चिकित्सक का कहना है कि जब पति तथा पत्नी एक-दूसरे से झगड़ते रहा करें, झट से क्रोधपूर्ण तथा खिजाहटभरा उत्तर देने के आदी हो जायें, तो उन्हें समझाने की अपेक्षा कैमोमिला देना ज्यादा सफल हो सकता है।
इन्फ्लुएन्जा, दमा आदि में चिड़चिड़ापन – एक रोगी इंफ्लुएन्जा से पीड़ित था। उसे ठीक होने में देर लग रही थी। वह एकाएक इतना चिड़चिड़ा हो गया कि हद से बाहर। कैमोमिला से उसका चिड़चिड़ापन ही नहीं दूर किया, उसका ज्वर भी उतर गया। रोगी को दमा था, परन्तु वह बेहद चिड़िचिड़ा हो रहा था। कैमोलिमा से उसकी चिड़चिड़ाहट दूर हो गई। हनीमैन का कथन है कि जो रोगी अपने कष्ट को सहनशीलता से बर्दाश्त कर रहा हो, उसे न तो एकोनाइट देना चाहिए, न कैमोमिला, सहनशीलता इन दोनों औषधियों से दूर रहती है। जिस रोग में कैमोमिला निर्दिष्ट होगा उसमें कुछ ही मिनटों में यह अपना प्रभाव दिखा देगा। इसके अतिरिक्त यह भी स्मरण रखने की बात है कि कैमोमिला कहती है, तो वह रोग इस दवा से दूर हो जायगा। मुख्यत: यह औषधि मन की औषधि है, जहां से सब रोगों की उत्पत्ति होती है। यह देखा गया है कि व्यक्ति क्रोध से इतना चिड़चिड़ा हो जाता है कि इसी से उसे पीलिया हो जाता है, माता क्रोध में बच्चे को दूध पिलाती है, तो वह दूध जहरीला हो जाता है।
(2) दर्द जरूरत से ज्यादा अनुभव करना – दर्द शान्त करने के लिये यह औषधि प्रसिद्ध है। रोगी थोड़े से भी दर्द में तिल का ताड़ बना देता है, जरा-सा कांटा चुभा कि आसमान सिर पर उठा लेता है। दर्द में कराहता है, कहता है: ‘ओह! मैं सहन नहीं कर सकता।’ दाढ़ निकालने के बाद एक रोगी दर्द के मारे पैर पटक रहा था, चैन से नहीं बैठता था। रोगी प्राय: दर्द में झुंझलाने लगता है। ऐसे दर्द में अगर उसे कैमौमिला 200 की एक मात्रा दे दी जाय, तो वह अपना सब कष्ट भूल जाता है और उसकी दर्द-विषयक शिकायतें जाती रहती हैं।
दर्द के साथ या दर्द के पीछे सुन्नपन – इसके दर्द का एक विशेष-लक्षण यह है कि या तो दर्द के साथ, या दर्द के बाद, जिस अंग में दर्द होता है उसमें सुन्नपन आ जाता है। डॉ० नैश एक रोग का उल्लेख करते हुए लिखते हैं कि अपने प्रारंभिक दिनों में एक मरीज से वास्ता पड़ा जिसके बायें कन्धे में गठिये का दर्द था। उसे एकोनाइट, ब्रायोनिया, रस टॉक्स दिया गया परन्तु कुछ लाभ न हुआ। अन्त में, एक अनुभवी होम्योपैथ ने इस दर्द को कैमोमिला से ठीक कर दिया। जब डॉ० नैश ने इस होम्योपैथ से पूछा कि उन्होंने किस लक्षण पर कैमोमिला दिया, तो उन्होंने उत्तर दिया – ‘दर्द के साथ सुन्नपन।’ इस रोगी में दर्द के बाद अंग सुन्न हो जाता था। इस औषधि से वह भी ठीक हो गया।
(3) बच्चों की दांत निकलते समय की शिकायतें – कान का दर्द, पेट का दर्द, ऐंठन, हरे पालक के साग जैसा दस्त तथा नींद न आना :
दांत का दर्द – दांत के दर्द में इसका विलक्षण-लक्षण यह है कि यद्यपि रोगी ठंड से भय खाता है, गर्मी पसन्द करता है, तो भी दांत के दर्द में ठंडी चीज मुंह में रखने या ठंडा पानी मुंह में लेने से दांत का दर्द शांत हो जाता है।
कान का दर्द – दांत निकलते समय बच्चों को कान का दर्द भी हुआ करता है। कान के दर्द में बच्चा अपनी छोटी-सी मुट्ठी को कान के पास ले जाता है, चिल्लाता है। बच्चे की आवाज से ही माता पहचान लेती है कि वह तीव्र कर्ण शूल से दु:खी हो रहा है।
पेट का दर्द – बच्चे के पेट तथा आंतों के फूल जाने से दर्द होता है। वह दोहरा हो-होकर लोटने लगता है, रोता है, चिल्लाता है, गोद में रहना चाहता है, झुझलाया रहता है। कभी इस चीज को लेना चाहता है, कभी उसको, परंतु जो भी चीज उसके हाथ में दी जाय, उसे फेंक देता है। यह कैमोमिला का उदर शूल है, जो दांत के निकलने या उसके बिना भी हो सकता है।
ऐंठन (Convulsions) – दांत निकलते समय बच्चे को ऐंठन भी होने लगती है। बच्चा अकड़ जाता है, आँखे घुमाने लगता है, चेहरा विकृत हो जाता है, मांस-पेशियां फड़कने लगती हैं, वह हाथ-पैर पटकता है, अंगूठा मोड़ लेता है, शरीर पीछे की तरफ अकड़ाता है। जिन बच्चों को दांत निकलते समय तीव्र वेदना सहनी पड़ती है उनकी ऐंठन का यह रूप है जिसे यह औषधि शांत कर देती है।
हरे पालक के साग जैसा दस्त – गोंड के बच्चे को इस समय हरे, पतले, लेसदार और प्राय: कतरे हुए पालक के साग की तरह के दस्त आते हैं।
नींद न आना – बच्चे के पेट में हवा भर जाने से दर्द हो, तो उसे नींद नहीं आती। नींद से चौंक कर उठ जाता है। इस प्रकार नींद न आने पर कैमोमिला देना चाहिये। कभी-कभी बच्चा रात को उठकर खेलने लगता है, कोशिश किये भी सोता नहीं, बिल्कुल जागरूक हो जाता है। ऐसी हालत मस्तिष्क के किसी आगन्तुक रोग की सूचक होती है और यह दांतों की वजह से भी हो सकता है। इस समय सिप्रीपीडियम के मूल-अर्क के 4-5 बूंद गर्म पानी में देने से लाभ होता है, या निम्न-शक्ति कैमो की मात्रा दी जा सकती है!
कैमोमिला औषधि के अन्य लक्षण
(i) गर्मी से दांत का दर्द बढ़ना – रोगी स्वभाव से ठंडे मिजाज का होता है इसलिए ठंड पसन्द नहीं करता। यह तो उसका ‘व्यापक-लक्षण’ (General symptom) है, परन्तु ‘विशिष्ट-लक्षण’ (Particular symptom) यह है कि दांत के दर्द में ठंडे पानी से आराम आता है। यह बात सिर्फ दांत के दर्द के विषय में ही ठीक है क्योंकि कान के दर्द में तो गर्मी से ही उसे आराम मिलता है।
(ii) पैरों की जलन – पैरों की जलन के लक्षण को सुनते ही कई लोग सल्फ़र देने की जल्दी करते हैं, परन्तु कैमोमिला के मरीज के भी पैरों में जलन होती है।
(iii) युवा-व्यक्ति का गठिये का दर्द – यह समझना कि कैमोमिला सिर्फ बच्चों के दर्द में काम आता है, गलत है। युवा-व्यक्ति के दर्द, विशेषत: गठिये के दर्द में भी यह वैसे ही काम करता है जैसे बच्चे के दर्द को शान्त करने में। दर्द इतना होता है कि रोगी शान्त नहीं बैठ सकता, इधर से-उधर फिरता है, बिस्तर में भी दर्द के कारण करवटें बदलता रहता है। कॉफिया और कैमोमिला को होम्योपैथी की अफ़ीम कहा जाता है।
(iv) नौ बजे रोग की वृद्धि – ज्वर में प्रात: नौ बजे रोग बढ़ जाता है, दर्द भी नौ बजे बढ़ता है, परन्तु दर्द प्राय: नौ बजे शाम को बढ़ता है।
(v) एक गाल लाल दूसरा पीला – बच्चे में यह लक्षण पाया जाय तो उसकी जो भी शिकायत होगी इस औषधि से दूर होगी।
(5) शक्ति तथा प्रकृति – 30, 200 (औषधि सर्द प्रकृति के लिये है)