गुहेरी – इसमें आंख की पलक के ऊपर व नीचे प्रदाह भरी एक तरह की फुन्सी होती है। कभी-कभी यह एक से ज्यादा भी होती है। कभी-कभी एक ठीक होने पर दूसरी निकल आती है। इसमें बहुत दर्द होता है कभी-कभी इसमें पीप भी निकलता है। यह विटामिन ‘ए’ और ‘डी’ की कमी से होती है। ये अजीर्ण, कब्ज से भी निकलती है।
रतौंधी – सूर्यास्त से सूर्योदय तक बिल्कुल न देख सकना। विटामिन ‘ए’ और ‘बी’ की कमी के कारण यह रोग होता है।
आंखें दु:खना – ठण्ड लगना, आंख में चोट लगना, आंखों में धूलकण जाना, चोट, संक्रामक रोग, धूप, ओस, ठण्डी हवा लगना, धुआँ, खसरा, चेचक, सूजाक, आदि कारणों यह रोग होता है। इसमें आंखें लाल शोथ-युक्त होती हैं। इसमें रड़कन, जलन और पीड़ा होना, पानी बहना, आंखें खोलने, काम करने व देखने से पानी बहुत बहता है तथा पीड़ा होती है। कभी-कभी गाढ़ा स्राव भी निकलता है, जो रात्रि में इकटठा हो जाता है, अत: सुबह आंखें परस्पर जुड़ जाती हैं।
मोतियाबिन्द – जन्म से ही नेत्र में शोथ होना, आंख की रचना में कमी रहना, वृद्धावस्था, अांखों में चोट लगना, घाव हो जाना, नेत्रों पर चिरकाल तक तीव्र प्रकाश व गर्मी का प्रभाव पड़ना, मधुमेह, गठिया, हाथ-पैर से निकलता पसीना अचानक बन्द हो जाना आदि कारणें से मोतियाबिन्द रोग हो जाता है।
आंखों की समस्या का घरेलू उपचार
– आँख यदि अभी ताजा फूला हुआ ही हो तो खिरनी (पीला-लम्बा, छोटा सा फल है) के बीज को घिसकर सलाई से आंखों में लगायें। कुछ ही दिनों में आपको लाभ महसूस होगा।
– छुहारे की गुठली साफ पत्थर पर घिस लें। गुहेरी पर इस लेप को लगा दें। एक-दो बार लेप करने से गुहेरी गायब हो जायेगी।
– आंखों में पलक के नीचे फुंसी के रूप में रोहे या कुकरे हो जाते हैं। पाँच ग्राम फिटकरी और पाँच ग्राम सुहागा पीस लें। इसी में सवा-डेढ़ ग्राम कलमी शोरा मिला लें। इसे कपड़छन कर लें। इस दवा को आंख में लगायें। आंखों में तीखी छटपटाहट होगी। आंखों में छम-छम पानी बहेगा, किन्तु घबरायें नहीं। यह दवा आंखों को नुकसान नहीं देगी। पानी के साथ कुकरे या रोहे गलकर बह जायेंगे। बड़ों को एक रत्ती और बच्चों को आधा रत्ती दवा ही बहुत है।
– एक छोटा चम्मच शहद में एक रत्ती फूली फिटकरी का महीन चूर्ण मिलाकर आंखों में सलाई से लगायें, अांखों की लाली छंट जायेगी।
– फिटकरी का बारीक चूर्ण एक रत्ती, जरा-सी दूध की मलाई मिलाकर पलकों पर लेप कर दें और सो जायें। सुबह तक आंखों की जलन ठीक हो जायेगी।
– फिटकरी के बारीक चूर्ण में हल्की-सी परत सलाई में लेकर आंखों में लगा दें फिर गुलाब जल की दो-दो बूंदें ड्रापर से डालें। रात को जलन शान्त होगी और आंखें निर्मल स्वच्छ हो जायेंगी।
– पाँच-सात बूंद पानी में सफेद फिटकरी घिस लें फिर सलाई से आंखों में लगायें। लाली व धूल की गन्दगी पानी बनकर बह जायेगी। रात को देर तक पढ़ना व T.V. देखने से आंखें दु:खती हैं, वह भी ठीक हो जायेंगी।
– गर्मी की वजह से आँखों में दर्द हो तो फिटकरी को मलाई के साथ फेंटकर किसी कपड़े पर लगाकर आंखों पर थोड़ी देर लगा रहने दें।
– आंखों की रोशनी के लिये काली मिर्च का चौथाई चम्मच चूर्ण एक चम्मच शुद्ध घी तथा आधा चम्मच पिसी हुई मिश्री के साथ सवेरे तथा रात को शयन से पूर्व लेना उचित रहता है।
– गुलाब अर्क में शुद्ध रसौत, फिटकरी का फूला, सेंधा नमक और मिश्री को समान मात्रा में मिलाकर बारीक वस्त्र से छानकर बूंद-बूंद नेत्रों में डालने से लाभ होता है।
– कैमिस्ट से डिस्टिल वाटर लायें, उसमें पाँच-पाँच ग्राम फिटकरी और कलमी शोरी डालें। कुछ देर में वह पिघलकर पानी बन जायेंगे, ड्रापर से दो-दो बूंदें सुबह-शाम डालें |
– गुलाब जल में फिटकरी घोलकर दो-दो बूंदें सुबह-शाम डालें। बच्चों के लिये बीस ग्राम गुलाब जल में आधा ग्राम फिटकरी काफी हैं। बड़ों के लिये डेढ़ ग्राम फिटकरी बीस ग्राम गुलाब जल में डालें। दु:खती आंखों को आराम मिलेगा।
– सौ ग्राम हल्के गर्म पानी में दो-ढ़ाई ग्राम फिटकरी घोल दें। हथेली में पानी लेकर दोनों नथुनी से खींचें। दो-तीन बार तो नथुनों से खींचकर नथुनों से निकाल दें फिर नथुनों से खींचकर मुंह से निकाल दें। दो-चार बार इसी पानी से गरारे गले तक ले जाकर करें।
आंखों की बीमारी का बायोकेमिक/होमियोपैथिक उपचार
फेरम-फॉस 12x – नेत्रों की लाली, प्रदाह, ज्वर, सर में दर्द व करकराहट में यह श्रेष्ठ दवा है। स्वाभाविक दशा में लेने पर रोगों से बचा भी जा सकता है।
काली-मयूर 3x – आंखों में घाव, पलकों पर सफेद पीली फुन्सियां आदि में ‘फेरम फॉस’ के साथ इसे पर्यायक्रम से देने से शीघ्र लाभ मिलता है।
काली-सल्फ 3x – नेत्रों में प्रदाह होने की तृतीय अवस्था में यह बहुत उपयोगी है, जबकि लसदार पीला तथा पानी जैसा स्राव निकल रहा हो।
काली-फॉस 3x – किसी रोग के कारण दुर्बलता आ जाने से कम दिखाई देने लगे, थोड़ा या आंशिक अन्धापन का हो जाना, बहुत कमजोरी, दुर्गन्धमय कफ निकले, मल-मूत्र आये तब देना चाहिए ।
नैट्रम सल्फ 3x – यकृत की शिथिलता के कारण नेत्रों में पीलापन हो तब इसका प्रयोग करना चाहिए।
कल्केरिया-सल्फ 3x – गाढ़ा-पीला स्राव व पलकों में सूजन होने पर दें।
नैट्रम-म्यूर 3x – पानी जैसा पीव निकले। जहाँ यह पतला स्राव लगता है वहीं दाने पड़ जाते हैं। कोर्निया पर छाले, रोहे व मोतियाबिन्द। दूर की वस्तु दिखलाई न पड़ने की स्थिति में उपयोगी ।
मैग्नेशिया-फॉस 3x – पलक फड़कना, पुतली सिकुड़ी हो तथा नेत्रों में तीव्र दर्द होने पर लाभप्रद हैं ।
कल्केरिया-फॉस 12x – एक ही वस्तु का दिखाई देना, आंखों की पुतली फैल जाना, कंठमाला के कारण नेत्र रोग हो तो इसे दें।
अंजनहारी STYLES – यदि ऊपर की पलक पर अंजनहारी हो तो पल्स-200 उपयोगी है। इससे लाभ न होने पर स्टेफिसैग्रिया-200 देनी चाहिए। यदि दोनों औषधियो से लाभ न हो, अंजनहारी नीचे की पलक पर हो और रोग यदि पुराना भी हो तो हिपर सल्फ-200 – यह औषधि उपयोगी है।
पलकों का सूजना – नीचे की पलक सूजने पर ऐपिस-30, ऊपर की पलक सूजने पर कैलिकार्ब-30 औषधि उत्तम रहती है।
पलकों का झपकना – आंखों का लगातार झपकते रहना भी एक रोग है। इस रोग में यूक्रेशिया-3 देनी चाहिए। रोग स्नायविक कमजोरी के कारण हो तो लाइकोपोडियम-30 एवं यदि पढ़ने के बाद थकावट महसूस होने पर यह रोग हो तो रोगी को कैलेकेरिया कार्ब-30 देनी चाहिए।
पड़बाल – यह भी आंखों का एक रोग है। इसमें पलकें अंदर दिशा में मुड़ जाती हैं, और पलकों में आंखों के बाल चुभने लगते हैं। इस रोग में पहले बोरेक्स 30 देना चाहिए। इससे लाभ न होने पर पल्स-30 दें।
भौं और पलकों के बालों का झड़ना – यदि भौं के बाल झड़ते हैं तो रोगी को कैलि कार्ब-30 देना चाहिए। लाभ न होने पर ऐनेनथेरम-3-दें। यदि पलकों के बाल झड़ते हैं तो रस टाक्स-30- देना चाहिए।
पलकों में खुजली – पलकों के कोनों में खुजली होने पर मेजेरियम 30 या स्टैफिसैग्रिया 30 देना चाहिए।
पलक लटकना – इस रोग को आँखों की ऊपरी पलक का पक्षाघात भी कहते हैं। इसमें पलक निर्जीव-सी होकर नीचे की दिशा में लटक जाती है। इसकी प्रमुख औषधि जेलसीमिया 30 हैं। यदि रोग का कारण गठिया है तो रस-टाक्स 30 देना चाहिए। यदि रोग मासिक धर्म की गड़बड़ी से हुआ है और रोगिणी के मस्तिष्क में दर्द रहता है, तो उसे सीपिया 200 देनी चाहिए।
आंखें आना – इस रोग का मुख्य कारण आंखों के गोलक अर्थात कोर्निया में शोथ हो जाना होता है। इसके परिणामस्वरूप गोलक में पस एवं खून नजर आने लगता है। इस रोग के आरम्भ में हिपर सल्फ 6 दें। यदि कोर्निया में अल्सर के लक्षण दिखलाई दें तो मर्क कौर 3 देना चाहिए।
आंखों का नासूर – आँख का नासूर-जिसमें स्राव होता रहता है। इस रोग में साइलीशिया 6 फ्लोरिक एसिड, एवं मर्क कौर 6 में से कोई भी औषधि दी जा सकती है।
आंखों में आसू बहना – इस रोग में आंखों से आंसू बहते रहते हैं। इसमें एलियम सीपी 30 अथवा यूक्रेशिया 6 अथवा नेट्रम म्यूर 30- ये औषधियां उपयोगी सिद्ध हो सकती हैं।
दूर से कम दिखाई देना – आंखों का यह दूर-दृष्टि दोष है। इसमें रोगी व्यक्ति को करीब से ठीक दिखलायी देता है किन्तु दूर से कम दिखलायी देता है। यदि यह रोग निरन्तर बढ़ता रहे तो फाइसोस्टिग्मा 3 यह औषधि देने से लाभ होता है।
दिनोंधी – रोगी को दिन के समय अर्थात तेज रोशनी में कुछ भी दिखलायी नहीं देता। किन्तु वह रात के समय देख लेता है। ऐसे रोगी के लिये बेथरोप्स 30 देनी चाहिए साइलीशिया 30 एवं फास्फोरस 6 भी उपयोगी हैं।
रतौंधी – रोगी व्यक्ति दिन के समय ठीक देख सकता है, किन्तु धीमे प्रकाश में अर्थात शाम एवं रात के समय देख नहीं पाता। ऐसे व्यक्ति के लिये फ्राइसोस्टिग्मा 3 उत्तम औषधि है।