इस रोग को आम बोलचाल की भाषा में कोष्ठबद्धता, कब्ज, मलबन्ध तथा कब्जियत के नामों से भी जाना जाता है। संक्षेप में नियमपूर्वक अपने समय से मल-त्याग न होने को ही मलावरोध कहा जाता है । इसमें जिह्वा मलावृत रहती है। सिर में दर्द, मन्दाग्नि, ज्वर तथा आलस्य इत्यादि लक्षण होते हैं। बड़ी आँत की मल-नली में मल का एकत्रित होना, मल की गाँठें बँध जाना, दस्त साफ न आना इत्यादि लक्षणों से इस रोग की सहज ही पहचान हो जाती है !
यकृत रोग, अनियमित आहार, मानसिक उद्वेग तथा पाखाना रोकने पर प्रायः यह रोग होता है। सिर में भारीपन, पाकस्थली में दबाव, डकार, अपानवायु ज्यादा निकलना, भूख न लगना, खट्टी डकारें आना भी इस रोग के ही लक्षण हैं। उदर रोगों की उत्पत्ति में मलावरोध प्रमुख कारण बनता है। शरीर अग्नि की रक्षा जीवन के लिए अनिवार्य होती है, मलावरोध पेट की इस अग्नि को अव्यवस्थित कर देता है। इस प्रकार मात्र उदर रोगों का ही नहीं, अपितु अन्य भी कई रोगों का कारण मलावरोध ही बनता है।
मलावरोध के कारण रक्त प्रवाह दूषित हो जाने से कुष्ठ आदि रोग उत्पन्न हो जाते हैं । रक्तचाप, स्वप्नदोष, अनिद्रा, पाण्डु, नेत्र विकार, कर्ण बाधिर्य, आमवात, अर्श, मधुमेह, भगन्दर आदि व्याधियाँ भी मलावरोध से उत्पन्न हो सकती हैं । राजयक्ष्मा तथा उन्माद (पागलपन) जैसी भयंकर व्याधियों को भी मलावरोध उत्पन्न कर देता है । स्त्रियों के श्वेत प्रदर व योषापस्मार (ल्यूकोरिया व हिस्टीरिया) रोग भी मलावरोध के दुष्परिणाम हैं ।
खाये हुए भोजन को आमाशय से क्षुदान्त्र में पहुँचने में लगभग चार घण्टे लग जाते हैं और इतना समय ही उसे क्षुदान्त्र में रुकने में लग जाता है । उण्डुक में मल 90% जलमय होता है। बृहदान्त्र में पहुँचने के बाद उपयुक्त जल ही मल में शेष रह पाता है। बृहदान्त्र कुण्डलिका तक पहुँचने में भोजन को लगभग 26 घण्टे लग जाते हैं। इसके आगे मलाशय में मल आकर रुक जाता है। मल त्याग का समय आने पर मल के दबाव के कारण मलाशय की श्लेष्मकला में संवेदना होती है और प्रवृत्ति होकर मल गुदा के बाहर निकल जाता है ।
छोटे बच्चों और शिशुओं में इस रोग के उत्पन्न होने का कारण माँ का दूध पूरी मात्रा में न मिल पाना, गाय के दूध में अधिक पानी मिला देना, माता के दूध में चिकनाई की अधिकता, गाय का विशुद्ध दूध पिलाना, अन्तड़ियों की कमजोरी, गुदा का छिल जाना, आमाशय के निचले मुँह का छोटा होना, छोटी अन्तड़ी या मलाशय का सिकुड़ जाना होते हैं ।
शिशुओं एवं बच्चों के मलावरोध में उपयोगी चिकित्सा-
- दूध के साथ बच्चे को शीघ्र पच जाने वाले भोजन, फल, सब्जियाँ और फलों का रस भी देते रहें । मीठी दही की लस्सी में थोड़ी खाण्ड मिलाकर पिलायें । फलों का रस बार-बार पिलाने से कब्ज स्वयं दूर हो जाती है। कब्ज को दूर करने के लिए बच्चे की गुदा में ग्लिसरीन (बत्ती) रात को प्रवेश करें। पेट की मालिश करने, नमकीन पानी और मामूली गरम पानी से स्नान कराने, शार्क लीवर ऑयल का प्रयोग, दूध में अधिक चीनी मिला देने से भी कब्ज दूर हो जाती है।
- एक छोटा चम्मच ग्लिसरीन एक गिलास पानी में घोलकर एनिमा करें ।
- सनाय, अंजीर या बनपशा का शर्बत एक छोटा चम्मच भर चटाते रहें ।
- फिलिप्स मिल्क ऑफ मैग्नीशिया एक छोटा चम्मच प्रात:काल के समय पहली बार दूध पिलाने के बाद पिला दें।
- दूध पिलाने के बाद सन्तरे का रस पिलायें और बार-बार पानी पिलाते रहें ।
- शुद्ध गन्धक (सल्फर) 60 मि.ग्रा. प्रतिदिन खिलाते रहने से मल कठोर और बड़ी कठिनाई से आने का कष्ट दूर हो जाता है ।
- पाखाना कठोर और गुठलियों की भाँति आने पर एक चम्मच लिक्विड पैराफिन रात को सोते समय पिलाते रहें ।
- चाक की भाँति सफेद मल आने पर टिंक्चर पीडोफ्लाई दो से 4 बूंद दिन में 1-2 बार पिलायें ।
- बच्चों के पेट पर कैस्टर ऑयल मल देने से भी कब्ज दूर हो जाती है । वयस्कों की भाँति बच्चों को भी जितनी बीमारियाँ होती हैं, उसके मूल कारणों में कब्ज प्रमुख है । सूखा रोग, मन्दाग्नि, अजीर्ण, विकास रुक जाना, चर्म रोग इत्यादि का कारण बनती है । जिन बच्चों को कब्ज रहती है, वे अधिकतर चिड़चिड़े होते हैं। उनको ठीक से नींद नहीं आती है । पेट में दर्द होता है । मरोड़ उठते हैं । कब्ज में बच्चों को बुखार, रक्तहीनता, सिरदर्द, बदन दर्द, गुदाद्वार का फट जाना, काँच निकलना, हार्निया, बवासीर जैसे रोग उत्पन्न हो जाते हैं।
- बहुत छोटे बच्चों को कब्ज हो तो पान का डण्ठल यदि धीरे से गुदा में प्रविष्ट करा दिया जाये तो मल आसानी से आ जाता है । डण्ठल के सिरे पर थोड़ा नारियल का तेल लगा लेने से सुविधा रहती है । यदि बच्चा थोड़ा बड़ा हो तो गरम पानी में शहद मिलाकर पिचकारी (एनिमा) दी जा सकती है । ऐसा करने से एक मिनट के अन्दर ही मल बाहर आ जाता है । यदि डूश देना हो तो गरम पानी इस्तेमाल करना चाहिए तथा पानी में नीबू का रस या शहद मिला लेना चाहिए । डूश निर्दोष रहता है।
- कब्ज का रोगी बच्चा यदि कमजोर हो तो उसको ‘माल्ट एक्ट्रेक्ट’ देना चाहिए (यह कमजोरी दूर करता है तथा रेचक भी है) । कब्ज के रोगी बच्चे को शक्कर के स्थान पर शहद देना लाभकारी रहता है । शहद पेट भी साफ करता है तथा हृदय एवं यकृत को बल भी प्रदान करता हे। कब्ज रोगी बच्चा, बूढ़ा, जवान कोई भी हो उसको अधिक से अधिक मात्रा में पानी पिलाना परम हितकारी है ।
- कब्ज रोगी को सुबह के समय नीबू के रस को निचोड़कर पानी पिलाते रहने से कब्ज धीरे-धीरे दूर होने लगती है। सुबह के समय पानी पीने की आदत यदि बच्चे को डाल दी जाये तो उन्हें जीवन में कब्ज की कभी शिकायत ही नहीं होगी तथा वे अन्य रोगों की मार से भी बचे रहेंगे ।
- दुग्धपान करने वाले शिशुओं पर अपनी माता के रोग अथवा स्वास्थ्य का सीधा असर पड़ता है । यदि माँ का पेट ठीक नहीं होगा तो बच्चे का पेट भी खराब रहेगा । यदि माता भोजन में फल एवं सलाद आदि का उपयुक्त मात्रा में प्रयोग करती है तो दुग्धपान करने वाले शिशु को कभी कब्ज का रोग नहीं हो सकता है । अत: माता को अपने स्वास्थ्य के प्रति सदैव सचेत रहना चाहिए ।
- जहाँ तक सम्भव हो, प्राकृतिक विधियों से ही कब्ज को दूर करना उचित है और औषधियों से दूर रहना चाहिए। यदि औषधियों की आदत पड़ गई तो फिर वह आसानी से नहीं छूट पाती ।
मलावरोध नाशक प्रमुख पेटेण्ट योग
मैग्नेशियम सल्फेट (पाउडर), हर्वोलेक्स माइल्ड टैबलेट (हिमालय), आइसोन्जेल लिक्विड (ऐलन बरीज कंपनी), लेक्सिल टैबलेट (बी. सी. कंपनी), कनोरमल ग्रेन्यूल्स (जर्मन रेमडीज), ग्लेकसेन्ना टिकिया (गिलिण्डिया कंपनी), अगरोल टिकिया (वार्नर कंपनी), क्रीमेफीनपिंक (बूटस कंपनी), सेनाडी (सिपला कंपनी), लेक्जेटीन (एलेम्बिक कंपनी), टिकिया तथा जुलैक्स टिकिया (रैलीज कंपनी), डल्कोलेक्स गोली (रेमेडीज कंपनी), इवाकुओल ग्रेन्यूल्स (फ्रेन्को इण्डियन कंपनी), लेक्जीकोन टैबलेट तथा सीरप (स्टेडमेड कंपनी) – इसका शिशुओं हेतु ड्राप्स भी आता है। पेट्रोलैगर पेय (वाइथ कंपनी), फ्रूटलेक्स पेय (चरक कंपनी), मिल्क ऑफ मैग्नीशिया (फिलिप्स कम्पनी), विटामिन बी-1 की टिकिया बेरिन (ग्लैक्सो कंपनी) तथा बीनरवा (रोश कंपनी) की प्रयोग करते रहने से कब्ज की आदत सुधर जाती है। (हालांकि विटामिन बी-1 मल निस्सारक औषधि नहीं है) । कैस्टोफीन टेबलेट, बाइकोलेट टेबलेट (एम. टी. एच.) माइकाल टैबलेट (ए. एफ. डी.) लैक्सिण्डान (इण्डो फार्मा), फिगाइन पेय (बूटस) रोगायड्स टैबलेट (बूटस), क्रीमाफीन लिक्विड (बूट्स) पैराफीन क्रीम (बूट्स) ग्लीसरीन स्पाजेटरी (बच्चों तथा युवकों के प्रयोग के लिए अलग-अलग दो रूपों में प्राप्य) निर्माता : हिन्द कम्पनी। कोलेक्स तथा यूकोल गोलियाँ (सिपला कंपनी) हर्बोलेक्स (हिमालय कंपनी) रेग्यूलैक्स (चरक कंपनी) पेडीलेक्स (चरक कंपनी), विरेचनी (बैद्यनाथ कंपनी) लिवरौल (वैद्यनाथ कंपनी), जुलाबिन (डाबर कंपनी), अभयासन (झण्डु कंपनी), लिवोमिन सीरप तथा ड्राप्स (चरक) इत्यादि ।
- यदि नन्हें शिशुओं को आरम्भ से ही घुट्टी पिलाई जाये तो उनको कब्ज की शिकायत नहीं रहती है। बच्चों को अरण्डी का तेल दिया जा सकता है। साबुन की बत्ती बनाकर भी प्रयोग की जा सकती है । कब्ज सदैव पेट की गर्मी के कारण हुआ करती है, अत: इस रोग में ‘गुलकन्द’ का लगातार सेवन भी लाभकारी है ।
- थोड़ी-सी चिड़िया की बीट लेकर नन्हें शिशुओं की गुदा में देने से मल आने में अधिक समय नहीं लगता है । बच्चों की गुदा किसी तेल से तर कर देने से भी मल आसानी से आ जाता है ।
- अमलतास के गूदे को तीन गुना पानी में भिगोकर रख दें । सुबह छानकर मिश्री मिलाकर उबाल लें । बच्चों को 1-1 चम्मच तथा वयस्कों की आयु के अनुसार सेवन कराते रहने से कब्ज दूर हो जाती है ।
- पके आलूबुखारा को शहद में मिलाकर सेवन कराने से भी कब्ज दूर हो जाती है । आधा चम्मच जैतून का तेल एवं उससे दुगुना शहद मिलाकर बच्चों को प्रतिदिन सेवन कराना चाहिए, इससे बच्चों को आदतन होने वाली कब्ज से छुटकारा मिल जाता है।
नोट – अत्यधिक खट्टे-मीठे, चटपटे, गरिष्ठ तीव्र मिर्च-मसालों से युक्त खाद्य पदार्थों से दूर रहना चाहिए, क्योंकि इन्हीं का खान-पान इस रोग का कारण होता है।
कब्ज दूर करने के कुछ आयुर्वेदिक नुस्खे
- सनाय, सौंफ, द्राक्षा (8-8 ग्राम) का क्वाथ बनाकर पिलायें, श्रेष्ठ रहता है ।
- सैन्धव, लवण, सनाय, शिवा (हरड़ की छाल), सौंठ और सौंफ (प्रत्येक सम मात्रा में) चूर्ण बनाकर सुरक्षित रखें । मात्रा 3 से 6 ग्राम गरम जल से दें ।
- गुलाब के पत्ते, सैंधा नमक, सांभर नमक, सफेद जीरा, काला जीरा, जौखार, द्रव्य 10-10 ग्राम, सनाय (140 ग्राम) का चूर्ण बनाकर सुरक्षित रख लें । मात्रा 3 से 6 ग्राम तक दें ।
- गुलाब के फूल, सनाय, सौंफ (1-1 तोला), मुनक्का 2 तोला सभी को लेकर बिना कूटे ही रात्रि में 20 तोला जल में भिगो दें। सवेरे पकाकर अर्थात् क्वाथ (काढ़ा) बनाकर 5 तोला जल शेष रह जाने पर इसमें 1 तोला शर्करा अथवा आधा तोला मिश्री मिलाकर कपड़े से छानकर मलावरोध के रोगी को पिलाने से 2-3 दस्त बिना कष्ट के साफ हो जाते हैं ।
- त्रिफला 3 तोला, अजवायन 1 तोला और सैंधा नमक 1 तोला का चूर्ण बनाकर सुरक्षित रख लें । मात्रा 3 माशे से 1 तोला तक गर्म जल या दूध से दें ।
कब्ज दूर करने के कुछ प्राकृतिक उपाय
चोकरयुक्त आटे की रोटी – चोकर में आँतों की सक्रियता के लिए प्राकृतिक उत्तेजन (स्टुमुलेण्ट) है। इसके साथ में ‘विटामिन बी’ पाचन प्रणाली को उपयुक्त बनाने हेतु एवं नाड़ी मण्डल हेतु खनिज लवण होते हैं। प्रत्येक अन्न के छिलकों में मलावरोध विनाशिनी प्रचुर शक्ति होती है। चना भिगोकर नमक तथा कुछ अदरक मिलाकर खाना भी लाभप्रद है ।
पत्रशाक – पत्ते वाले शाक ताजे एवं कच्चे सेवन करने चाहिए । पत्र-शाकों में रेशादार दुष्पाच्य भाग बहुत होता है। यह अवशिष्ट मल को बाहर निकालने में सहायता करता है। शाकों में बास्तूक, तण्डुलीय, पालक, सोया, शलजम, मूली और मैंथी उपयोगी है । पालक की कच्ची पत्तियों को सिल पर कुचल कर उसका रस निकालकर 250 ग्राम के लगभग पीने से पेट साफ होता है । इसका सेवन प्रात:काल करना चाहिए। काली गाजर की पत्तियों का रस पीना अथवा शाक बनाकर खाना भी लाभप्रद है। टमाटर में सेल्यूलोज होता है, अत: यह भी मलावरोध में पथ्य है। फास्फोरस का भण्डार करेला भी इस व्याधि में उपयुक्त है । पत्र शाकों को अधिक उबालना, तल-भूनकर अनेक मिर्च-मसालों में मिलाकर सेवन करने से इनकी उपयोगिता नष्ट हो जाती है ।
फल – फलों में लवण तथा अम्लता प्राकृतिक रूप में होने के कारण मलावरोध नष्ट करने का गुण विद्यमान है। प्रत्येक युवा मनुष्य को 24 घण्टों में 400 से 500 ग्राम तक फल खाने चाहिए। आयु, ऋतु और पाचन शक्ति के अनुसार फलों का सेवन करने की मात्रा निश्चित की जाती है । भोजन से 1-2 घण्टे पहले फल सेवन करना लाभकारी रहता है ।
रात को 2-3 अंजीर भिगोकर चाँद की रोशनी में रख दें। प्रात:काल इनको खाकर दूध अथवा पानी पीना मलावरोध नाशक है। प्रात:काल बिना कुछ खाये 10 दाने काजू और 5 दाने मुनक्का खाने से भी मलावरोध नहीं होता है। प्रात:काल 100 ग्राम टमाटर का रस नित्य प्रति पीना भी मलावरोध में अत्यन्त ही लाभकारी है। टमाटर का रस आँतों में जमे मल को काटकर आँतों की सफाई में महत्वपूर्ण योगदान करता है। खाली पेट दो सेब दाँतों से काटकर खाना भी अत्यन्त हितकारी है। नाश्ते से पूर्व दो बड़े पीले पके सन्तरों का रस पीना भी लाभप्रद है ।
पपीता आँतों की सफाई करने में अद्वितीय है। यह उनमें पाचक क्षार का प्राकृतिक स्तर बनाये रखता है। मलावरोध से ग्रसित रोगी को जल भी पर्याप्त मात्रा में पीना चाहिए। जल की न्यूनता से आहार का पाक और शोषण सम्यक नहीं हो पाता है ।