व्यापक-लक्षण तथा मुख्य-रोग प्रकृति | लक्षणों में कमी |
ग्रन्थियों का कड़ापन-प्लेग, कैंसर ट्यूमर आदि | गर्म कमरे में अच्छा लगना |
ग्रन्थि-शोथ में कार्बो एनीमैलिस तथा बेलाडोना की तुलना | हाथ से दबाने पर आराम |
मासिक-धर्म तथा प्रदर में मरने के समान कमजोरी | लक्षणों में वृद्धि |
जरा-सा बोझ उठाने से पैर में मोच आ जाना | ठंडी हवा से रोग का बढ़ना |
त्वचा पर तांबे-से रंग की फुन्सियां | हजामत के बाद परेशानी |
रजो-धर्म के बाद-परेशानी |
(1) ग्रन्थियों का कड़ापन-प्लेग, कैंसर ट्यूमर आदि – यह एक गहन क्रिया करने वाली औषधि है। इसकी शिकायतें रोग को लेकर चुपके-चुपके आती हैं, धीरे-धीरे बढ़ती हैं, और जब प्रकट में आती हैं तब घातक रूप धारण कर लेती हैं। शरीर की ग्रन्थियों पर इसका विशेष प्रभाव है। डॉ० यूनान लिखते हैं कि जिन दिनों लंदन में प्लेग का प्रचंड प्रकोप हुआ और प्रत्येक घर में मृत्यु ने अपना अड्डा जमा लिया, तब मोचियों के घरों में प्लेग ने आक्रमण नहीं किया। इसका कारण यह था कि मोची लोग अपने घरों के सामने चमड़ा जलाया करते थे। कार्बो एनीमैलिस जानवर के चमड़े के कायेले को कहते हैं। क्योंकि वे जानवर का चमड़ा जलाते थे इसलिये उसके धुएं का उन पर होम्योपैथिक प्रभाव रहता था और वे प्लेग के आक्रमण के शिकार नहीं हुए।
कार्बो एनीमैलिस का प्रभाव ग्रन्थियों को कड़ा कर देना है और इसलिये शरीर में जिन अंगों में भी ग्रन्थियों में कड़ापन पाया जाय यह उसे दूर करता है। बगल, जांघ, सीने आदि में गिल्टियों के सूज जाने और उनके कड़ा पड़ जाने में यह औषधि उपयोगी है। सुजाक और आतशक की गिल्टियां जब कड़ी पड़ जाती हैं तब भी इस औषधि से लाभ होता है। जब कोई गिल्टी चीरी जाती है और उसके चारों तरफ़ कड़ापन आ जाता है तब भी इसका उपयोग किया जाता है।
कैंसर और ट्यूमर में भी क्योंकि गिल्टियों का कड़ापन होता है इसलिये उन्हें भी यह ठीक करता है। स्त्रियों के स्तन के कैंसर में स्तन की गिल्टियां सूज जाती हैं, गर्भाशय के कैंसर में गर्भाशय का मुख अत्यन्त कड़ा पड़ जाता है, दर्द होता है, खून भी जाता है। इन सब गिल्टियों के कड़ेपन में कार्बो एनोमैलिस को स्मरण करना चाहिये।
(2) ग्रन्थि-शोथ में कार्बो एनीमैलिस तथा बेलाडोना की तुलना – बेलाडोना में भी सब ग्रन्थियां सूज जाती हैं, छून से गर्म लगती हैं, स्पर्श नहीं किया जा सकता। पहले चमकदार लाली दिखाई देती है, फिर नीला-सा रंग आ जाता है और अगर इलाज न किया जाय तो जख्म फूट जाता है, पस पड़ जाती है। परन्तु कार्बो एनीमैलिस में ऐसा नहीं होता। ग्रन्थि का शोथ धीरे-धीरे होता है, उसकी चाल भी धीमी होती है और वह पकने के स्थान में कड़ेपन पर आकर रुक जाती है। पके तो पस निकल जाने और सूक जाने पर ठीक हो जाय, परन्तु यह ठीक नहीं होती, पकने की जगह कड़ी पड़ जाती है। स्त्रियों में भग सूज कर कड़ा पड़ जाना है। अन्य प्रकार के जख्म भी ठीक होने के स्थान पर कड़े पड़ जाते हैं। इस औषधि की विशेषता ही यह है कि रोग का आक्रमण ग्रन्थियों पर होता है और ग्रन्थियां पकने के बजाय कड़ी पड़ जाती हैं, और कड़ेपन पर आकर वहीं रुक जाती हैं।
(3) मासिक-धर्म तथा प्रदर में मरने के समान कमजोरी – स्त्रियों को मासिक-धर्म बहुत जल्दी होता है, बहुत देर तक रहता है, और बहुत ज़्यादा खून जाता है। इस औषधि की रोगिणी प्रत्येक मासिक-धर्म के समय इतनी कमजोर हो जाती है कि मरने के समान हो जाती है। जितना रुधिर जाता है उससे कमजोर हो जाना तो स्वाभाविक है, परन्तु खून जाने की तुलना में कमजोरी आशातीत हो जाती है। प्रदर में भी आशातीत कमजोरी हो जाती है।
(4) जरा-सा बोझ उठाने से पैर में मोच आ जाना – थोड़ा-सा भी बोझ उठाने में मोच पड़ जाती है, बहुत कमजोरी अनुभव होती है और पैर के गिट्टे चलते हुए मुड़ जाते हैं। जोड़ कमजोर होते हैं। रीढ़ के अन्त वाली हड्डी पर जोर पड़ने से उसमें दर्द होता है। उसमे कार्बो एनीमैलिस लाभ करती है।
(5) त्वचा पर तांबे के रंग की-सी फुन्सियां – चेहरे और शरीर पर तांबे के रंग की-सी बेशुमार फुन्सियां हो जाती हैं जिन्हें यह दूर कर देता है।
(6) शक्ति तथा प्रकृति – 3 विचूर्ण, 6, 30, 200 (औषधि ‘सर्द’-Chilly-प्रकृति के लिये है।)