व्यापक-लक्षण तथा मुख्य-रोग प्रकृति | लक्षणों में कमी |
हैजे की प्रथम-अवस्था में | स्राव खुल कर जाने से कमी |
त्वचा की अत्यन्त शीतावस्था, परन्तु रोगी कपड़ा ओढ़ना पसन्द नहीं करता | गर्मी से रोगी को अच्छा लगना |
त्वचा की शीतावस्था में साथ ही गर्मी के दौर पड़ते हैं | लक्षणों में वृद्धि |
रजोरोध के समय ठंडा शरीर, परन्तु फिर भी कपड़ा सहन न कर सकना | ठंडी हवा में रोग का बढ़ना |
मूत्र की जलन में कैम्फर और कैन्थरिस | हरकत से राग का बढ़ना |
जीवनी-शक्ति की पतनावस्था | रात को रोग का बढ़ जाना |
(1) हैजे की प्रथम-अवस्था में – 1831 में, जब हनीमैन 76 वर्ष के थे, यूरोप में हैजे का प्रकोप हुआ। तब तक हनीमैन के सामने हैजै का कोई मरीज नहीं आया था। रोग के लक्षणों के आधार पर उन्होंने कहा कि इस रोग के लक्षण तीन औषधियों में पाये जाते हैं – कैम्फर, क्यूप्रम तथा वेरेट्रम ऐल्बम। उनका कथन था कि हैजे के लक्षण जब पहले-पहल प्रकट हों-कय-दस्त आदि-तब सबसे प्रथम औषधि कैम्फर है। इसका प्रभाव बहुत क्षणिक होता है, इसलिये शुरू-शुरू में हर पांच मिनट के अन्तर से स्पिरिट ऑफ़ कैम्फर की कुछ बूंद तब तक देते रहना चाहिये जब तक शरीर में गर्मी न आ जाय। कैम्फ़र के अतिरिक्त हैजे की अन्य दो दवाएं हैं: क्यूप्रम और वेरेट्रम ऐल्बम। तीनों के लक्षण निम्न है:
हैजे में कैम्फर – उक्त तीनों दवाओं में से सबसे अधिक शीत कैम्फर के रोगी को लगता है। वह इतना ठंडा होता है मानो मरा पड़ा है। क्यूप्रम और वेरेट्रम में रोगी शरीर को ढकना पसन्द करता है, कैम्फर का रोगी, यद्यपि उसका शरीर ठंडा होता है, तो भी शरीर पर कपड़ा बर्दाश्त नहीं कर सकता, उसे उतार फेकता है। वह ठंडा शरीर होने पर भी दरवाजे-खिड़कियां खुली रखना चाहता है। परन्तु इस स्थान पर एक बात ध्यान रखने की है। कैम्फ़र के रोगी को बीच-बीच में ऐंठन (Convulsions) होती हैं जिनके कारण उसे दर्द होता है। जब ये ऐंठनें होती हैं तब वह कपड़ा ओढ़ना चाहता है, दरवाजे खिड़कियां तब बन्द करवाना चाहता है। कैम्फ़र में ज्वर नहीं आता। दर्द में तो वह कपड़ा ओढ़ना चाहता है, परन्तु कय और दस्त से शरीर ठंडा पड़ जाने पर भी कपड़ा नहीं चाहता, ठंडी हवा चाहता है। कैम्फ़र में प्राय: खुश्क हैज़ा भी होता है, शरीर ठंडा, बरफ़, ठंडी हवा चाहता है। कैम्फ़र में प्राय: खुश्क हैजा भी होता है, शरीर ठंडा, बरफ के समान, रंग नीला पड़ जाता है, न कय न दस्त, अगर कय या दस्त आयें भी तो बहुत थोड़े। कैम्फ़र का विशिष्ट-लक्षण यह है कि वह ठंडा, नीला, खुश्क पड़ जाता है, और त्वचा की इस ठंडक में भी कपड़ा नहीं ले सकता।
हैजे में क्यूप्रम – रोगी कैम्फ़र में ‘शीत-प्रधान’ होता है, क्यूप्रम के हैजे में रोगी ‘ऐंठन-प्रधान’ होता है। हैजे के अन्य लक्षण तो इसमें होते हैं, परन्तु सब में प्रधान-लक्षण, जिसके सामने सब लक्षण पीछे पड़ जाते हैं, इसकी ‘ऐंठन’ है। रोगी इन ऐंठनों से चिल्लाने लगता है। ऐंठनों की प्रधानता होने पर क्यूप्रम देना चाहिये।
हैजे में वेरेट्रम ऐल्बम – शरीर के स्रावों की प्रधानता का लक्षण वेरेट्रम में है। बड़े-बड़े दस्त, भारी पसीना, भारी कय। इस रोगी को गर्म बोतल, गर्म पानी रुचिकर होता है। संक्षेप में, शीत तथा खुश्की की प्रधानता में कैम्फर, ऐंठनों की प्रधानता में क्यूप्रम, और पसीना, कय, दस्त की प्रधानता में वेरेट्रम देना उचित है। इन तीन दवाओं को लेकर कोई भी व्यक्ति हैजे के क्षेत्र में निडर जा सकता है।
अनुभव ने सिद्ध कर दिया है कि हैजे के रोग में ऐलोपैथिक इलाज की अपेक्षा होम्योपैथिक इलाज अधिक सफल हुआ है।
(2) त्वचा की अत्यन्त शीत-अवस्था, परन्तु रोगी कपड़ा, ओढ़ना पसन्द नहीं करता – इस औषधि का एक अद्भुत-लक्षण यह है कि सारा शरीर बर्फ की तरह ठंडा होता है, परन्तु फिर भी रोगी किसी प्रकार का कपड़ा शरीर पर बदर्शत नहीं कर सकता, कपड़ा उतार फेंकता है। विचित्र बात यह है कि कमर ठंडा भी हो, त्वचा भी ठंडी हो, तो भी वह बदन को ढक नहीं सकता। किसी बीमारी में भी यह लक्षण पाया जाय, कैम्फर रोग को दूर कर देगा।
(3) त्वचा की शीतावस्था में साथ ही गर्मी के दौर पड़ते हैं – कैम्फर का रोगी त्वचा की शीत-अवस्था होने पर भी कपड़ा परे फेंक देता है, परन्तु जब इस प्रकार उसका शरीर ठंडा हो रहा होता है, तो साथ ही उसे गर्मी का दौर भी पड़ जाता है, और इससे पहले कि वह दरवाजे और खिड़कियां खोलने को कहे, वह इस गर्मी के दौर के कारण उन्हें बन्द कर देने और शरीर पर कपड़ा ओढ़ाने को कहने लगता है। यह अवस्था भी शीघ्र समाप्त हो जाती है और फिर वह शीत-अवस्था में आ जाता है। कैम्फ़र की शीत-अवस्था की तरह सिकेल कौर में भी शीत-अवस्था पायी जाती है, उसकी त्वचा भी ठंडी हो जाती, वह भी कैम्फर की तरह कपड़ा उतार फेंकता है, सर्द-त्वचा पर कपड़ा न ओढ़ना अद्भुत-लक्षण ही तो है, परन्तु उसमें कैम्फर की तरह बीच-बीच में गर्मी के दौर नहीं पड़ते।
(4) रजोरोध के समय ठंडा शरीर परन्तु फिर भी कपड़ा सहन न करना – स्त्रियों को जब मासिक-धर्म बन्द होने लगता है, तब उन्हें गर्मी की तरेरों आया करती हैं। इन तरेरों के साथ मुँह पर पसीना आ जाता है। बन्द कमरे मे उन्हें कष्ट होता है, कमरा खुला, हवादार पसंद करती हैं। उन्हें जब शरीर ठंडा अनुभव हो तब शरीर को गर्म करने के लिये वे कपड़ा नहीं ओढ़ सकती। ऐसी अवस्था में यह औषधि लाभप्रद है।
(5) मूत्र की जलन में कैम्फर और कैन्थरिस – दोनों औषधियों में रोगी पर बैठते हुए पेशाब के लिये जोर लगाता है, पर उतरता नहीं। मूत्राशय के मुख में ऐंठन होती है, परन्तु मूत्राशय की असमर्थता के कारण मूत्र नहीं आता। बूंद-बूंद मूत्र उतरता है, उसमें रुधिर का सम्मिश्रण होता है। इस अवस्था में लक्षणानुसार इन दोनों में से किसी औषधि को चुनना होगा।
(6) जीवनी-शक्ति की पतनावस्था – जब जीवनी-शक्ति की पतनावस्था आ जाती है, शरीर बिल्कुल ठंडा पड़ जाता है, मनुष्य मरणासन्न हो जाता है, नाड़ी अत्यन्त धीमी और हल्की पड़ जाती है, शरीर का तापमान अत्यन्त नीचे चला जाता है, लो ब्लड प्रेशर हो जाता है, तब कैम्फ़र 1x की पन्द्रह-पन्द्रह मिनट बाद तीन मात्राएं देने से रोगी सुधर जाता है। ऐसी अवस्था प्राय: ऑपरेशन के बाद या हैजे की हालत में हो जाया करती है और इस अवस्था में मृत्यु के मुख से रोगी को निकाल लाने में यह औषधि नाम पा चुकी है।
कैम्फ़र औषधि के अन्य लक्षण
(i) जुकाम, इन्फ्लुएन्जा में लाभप्रद है।
(ii) ठंडे, चिपचिपे, कमजोर करने वाले पसीने में लाभ देती है।
(iii) हृदय में छाती के ऊपर के हिस्से में घबराहट और कठिन सांस में लाभ करती है।
शक्ति तथा प्रकृति – स्पिरिट ऑफ कैम्फर को सूंघना या टिंचर के 1 से 5 बूंद बार-बार लेने से लाभ होता है। इसे चीनी, बताशे में लेना ठीक रहता है। 30 आदि उच्च शक्ति भी लाभ करती है। औषधि ‘सर्द’-Chilly-प्रकृति के लिये है।