त्वचा के विभिन्न रोगों के लक्षण तथा उनकी चिकित्सा के विषय में निम्नानुसार समझना चाहिए :-
त्वचा पर हल्के-भूरे धब्बे (Freckles)
त्वचा पर हल्के-भूरे धब्बे पड़ जाने पर निम्नलिखित औषधियों का लक्षणानुसार प्रयोग हितकर सिद्ध होता है :-
कैलि-कार्ब 6x, 30, 200 – यदि ऐसे धब्बे चेहरे पर हों तो इस औषध के देने से लाभ प्राप्त होगा ।
सिपिया 30, 200 – गालों पर हल्के-भूरे धब्बे धब्बे होने पर इसे दें ।
ऐक्टिया रेसिमोसा (सिमिसिपयूगा) – युवती स्त्रियों के चेहरे पर ऐसे दाग धब्बे पड़ जाने में हितकर है।
नाइट्रिक-एसिड 6 – छाती पर हल्के-भूरे रंग के गोल-गोल धब्बे पड़ जाने पर इस औषध का प्रयोग करें ।
फेरम-मैगनेटिकम 3 – हाथों पर छोटे-छोटे मस्से अथवा काले-भूरे धब्बे पड़ जाने पर इसे देना चाहिए ।
चेहरे की त्वचा का रंग (Complexion)
चेहरे की त्वचा का रंग बिगड़ जाने पर लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियों का प्रयोग करना चाहिए :-
कैलि-कार्ब 6x, 30, 200 – मुँह अथवा त्वचा पर ठण्डी हवा के कारण खुरदरे धब्बे पैदा होने के लक्षण में इसे दें।
नेट्रम-म्यूर 30 – चेहरे का रंग मटमैला हो जाने पर इसका प्रयोग करें ।
सिपिया 30, 200 – चेहरे पर पीलापन, पीले रंग के दाग तथा नाक एवं दोनों गालों पर घोड़े के जीन जैसे पीले निशान होने पर इसे दें।
लाइकोपोडियम 30, 200 – मुख तथा त्वचा पर बिखरे-बिखरे पीले-पीले निशान होने पर इसका प्रयोग करें ।
पेट्रोलियम 30, 200 – ‘कैलि-कार्ब’ जैसे लक्षणों में।
बार्बोरिस-एक्वी 30 – मुँह के आसपास छिछड़ेदार दाने, जिनसे छिलके झड़-झड़कर गिरते रहते हों ।
खाल उधड़ना (Intertrigo and Excoriation).
शरीर का चमड़ा आपस में रगड़ खाने से अथवा विषाक्त पानी आदि के लक्षणों के कारण खाल उधड़ जाती है, जिसके-कारण दर्द, जलन तथा बैचेनी का अनुभव होता है । जाँघ, पुट्ठे, बगल, मलद्वार आदि अंग इससे आक्रान्त होते हैं।
इस रोग में निम्नलिखित औषधियाँ लाभकर सिद्ध होती है :-
कैमोमिला 6 – बच्चों की बीमारी की यह श्रेष्ठ औषध है। हर तरह के पानी लगने तथा खाल उधड़ने में हितकर है।
लाइकोपोडियम 6 – यदि बीमारी का हमला बार-बार होता हो तो इसे दें । बार-बार पानी लगने में लाभप्रद है ।
मर्क-सोल 3, 30 – यदि रोगी स्थान में तीव्र दर्द हो तो इसका प्रयोग करें ।
इथूजा 3, 3x, 6 – यदि घूमने के कारण जाँघों का चमड़ा छिल गया हो तो यह लाभकारी है ।
(1) आक्रान्त अंग को नित्य तीन-चार बार गरम पानी से धोकर तथा भलीभाँति पोंछकर उस पर सज्जी चिट्टी का चूरा (पाउडर) बुरक देना चाहिए।
(2) ‘हाइड्रेस्टिस‘ मदर-टिंक्चर के एक भाग को दस भाग ‘ग्लिसरीन’ में मिलाकर रोगी स्थान पर लगाने से शीघ्र लाभ होता है ।
विवरण – रक्त में ऑक्सीजन के कारण त्वचा का रंग लाल होने के स्थान पर पीला पड़ जाता है, जिसमें नीलेपन का आभास होता है । यह रोग- (1) जन्मजात तथा (2) कारण जन्य-दो प्रकार का होता है । कारण जन्य रोग किसी भी कारण से, किसी भी समय जाया करता है ।
इस रोग में लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियाँ लाभकर सिद्ध होती हैं :-
हाइड्रोसायनिक-एसिड 6, 30 – त्वचा का पीला पड़ जाना तथा उसमें नीलेपन का आभास इस लक्षण में यह औषध श्रेष्ठ मानी जाती है । जब रोगी व्यक्ति मुर्दे जैसा दिखाई दे, श्वास के भीतर आने में तो कष्ट न हो, परन्तु बाहर निकलते समय कष्ट हो – ऐसी स्थिति में यह औषध मुर्दे में भी प्राण डाल देने में समर्थ है ।
नाइट्रिक-एसिड 6 – त्वचा पर नीले धब्बे पड़ जाने में लाभ करती है ।
कोनियम 30, 200 – सम्पूर्ण शरीर पर नीले रंग के धब्बे पड़ जाने में लाभ करती है ।
औग्जेलिक-एसिड – त्वचा के नीली हो जाने तथा उसपर गोल-गोल तथा एक-दूसरे से मिले हुए दाग या धब्बे होने के लक्षणों में हितकर है।
आर्निका 1 – कोई चोट लग जाने के कारण त्वचा पर नीले धब्बे पड़ जायें तो इस औषध को प्रति दो घण्टे के अन्तर से देना चाहिए, परन्तु यदि फटी न हो तो इसी औषध के लोशन को त्वचा पर लगाना चाहिए, परन्तु यदि त्वचा कटी-फटी हो तो उस पर लोशन नहीं लगाना चाहिए। लोशन बनाने के लिए एक औंस पानी में पाँच बूंद आर्निका मदर टिंक्चर डालना चाहिए। इस लोशन को गरम करके लगाना वर्जित है।