अधिकतर लोगों का मानना है कि नाखूनों को कोई रोग नहीं लगता और नाखून हमेशा स्वस्थ व सुन्दर बने रह सकते हैं, किन्तु वास्तविकता यह है कि 30 से 40 वर्ष की उम्र के बाद नाखूनों का फटना व भुरभुरा होना शुरू हो जाता है। कुछ विशेष रोगों में, युवावस्था में भी नाखूनों के आकार-प्रकार में अंतर आ जाता है। उम्र बढ़ने के साथ नाखूनों पर ऊपरी छोर से उपचर्म तक मेड़ पड़ सकती है। नाख़ून पतले हो जाते हैं और इस कारण भुरभुरे हो जाते हैं।
मेड़ पड़ने और नाखूनों के पतला होने जैसे बनावट सम्बन्धी परिवर्तनों का कारण सामान्यतः नाखून प्रोटीन में, जिसे ‘कैरोटीन’ कहते हैं, परिवर्तन होना है। उम्र बढ़ने के साथ इस प्रोटीन का स्तर घट जाता है, जिस कारण नाखून कमजोर एवं पतले हो जाते हैं। मध्य आयु (प्रौढ़ावस्था) तक पहुंचते-पहुंचते नाखूनों के बढ़ने की रफ्तार धीमी हो जाती है। इसका कारण शरीर की क्षमता में आई सामान्य गिरावट तथा धूप एवं पर्यावरण के प्रदूषण का प्रभाव है।
नाखूनों के आकार, बनावट तथा रंग में परिवर्तन किसी गंभीर रोग के लक्षण भी हो सकते हैं। उदाहरण के तौर पर नाखून का पीलापन रक्तक्षीणता का लक्षण हैं। यदि हाथ के नाखूनों का रंग नीला होने लगे और नाखून गोल होने लगें, तो यह पुराने हृदय और फेफड़ों के रोग का लक्षण है। जोड़ों के दर्द से पीड़ित वृद्ध लोगों में इस गड़बड़ी का असर नाखून पर भी पड़ता है और इससे नाखून आसामान्य रूप से मोटे हो सकते हैं। कुछ त्वचा रोगों जैसे ‘सोरायसिस’ में नाखून खाल से छूटकर ऊपर की ओर उभर आते हैं। ‘लाइकेन प्लेनस’ नामक बीमारी में नाखून क्षत-विक्षत भी दिखाई पड़ सकते हैं। कुछ बीमारियों, जैसे जोड़ों का दर्द, सोरायसिस या चोट लगने के कारण नाखून के नीचे खून जमा हो सकता है। जीवाणु के कारण होने वाली हृदय की एंडोकार्डियम झिल्ली की सूजन व मांसाहारी लोगों में भी इस प्रकार खून के धब्बे नाखून के नीचे मिल सकते हैं।
शरीर में लौह की कमी होने पर नाखून अपने सामान्य आकार (उभरे हुए, गोलाकार) के विपरीत चपेट एवं दबे हुए हो जाते हैं। ऐसा हाथ व पैरों के नाख़ूनो में समान रूप से दृष्टिगोचर होता है।
यदि उंगलियों के अग्रभाग (पोरों) पर ऊतकीय मोटाई बढ़ जाए (क्लबिंग) एवं नाखून अपनी सतह के कोण से विमुख होने लगें (आड़े-तिरछे), तो समझिए कि यह फेफड़ों के कैंसर व दिल के गंभीर रोगों का लक्षण है।
बढ़ती उम्र के कारण नाखूनों को होने वाली हानि से बचाने के लिए नाखूनों को धूप (सूरज की रोशनी) व गर्मी से बचाना चाहिए। सूरज की रोशनी, नाखूनों के अन्दर तक घुस जाती है और बढ़ती उम्र के कारण होने वाली क्षति की रफ्तार तेज कर देती है। इसलिए अगर नाखूनों को धूप से बचाया जाए, तो उस क्षति की रफ्तार धीमी हो सकती है।
नाखून का होमियोपैथी उपचार
होमियोपैथिक औषधियों में ‘ग्रेफाइटिस’, ‘एण्टिमक्रूड’, ‘साइलेशिया’, ‘फ्लोरिक एसिड’, ‘नेट्रमम्यूर’ तथा ‘आर्सेनिक’ आदि औषधियां योग्य चिकित्सक की सलाह से, नाखूनों के आकार, प्रकार,बनावट व रंग के विभिन्न लक्षणों के आधार पर लेने पर आशातीत लाभ मिलता है। ‘ग्रेफाइटिस’ 30 व ‘एण्टिमकूड’ 30 शक्ति में लें।
खान-पान का भी विशेष ध्यान रखना आवश्यक है। दूध,फल, हरी सब्जियां, दालें, दही, सलाद आदि का नियमित सेवन चेहरे व नाखूनों की कांति को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।