पिकरिक एसिड का होमियोपैथी उपयोग
( Picric Acid Homeopathic Medicine In Hindi)
मस्तिष्क की थकावट में मेरु-दंड की जलन – मस्तिष्क की थकावट की यह अमोघ औषधि है। इसका मुख्य-लक्षण यह है कि थोड़ा-सा भी अध्ययन करने से मेरु-दंड में जलन होने लगती है। आर्सेनिक, फॉसफोरस, लाइकोपोडियम, जिंकम में भी मेरु-दंड की जलन पायी जाती है। आर्सेनिक की जलन में जलनेवाले स्थान में गर्म सेक से रोगी को आराम मिलता है; लाइको की जलन कन्धों के दोनों फलकों के बीच होती है; फॉस और कैलि बाई की जलन भी दोनों कन्धों के बीच होती है, परन्तु फॉस में मालिश से आराम मिलता है; पिकरिक की ही ऐसी जलन है जिसमें मानसिक-श्रम से मेरु-दंड में जलन होने लगती है। पिकरिक एसिड का मुख्य लक्षण पढ़ने-लिखने, मानसिक-श्रम से रीढ़ में जलन का होना है। थेरीडियन में कमर के नीचे (Lumbar region) के स्थान में जलन होती है, रोगी स्पर्श और शोर को नहीं सहन सह सकता। पिकरिक एसिड, जिंकम मेटेलिकम तथा फॉसफोरस में भी कभी-कभी कमर के नीचे जलन होती है।
(2) सर्वांगीण थकावट – जब कोई व्यक्ति अपने को हर दृष्टि से थका हुआ, शक्तिहीन, पस्त पाये, सर्वांगीण कमजोर, नि:स्वत्व, और यह थकावट दिनों-दिन बढ़ती जाय, यह भी संभव है कि इस बढ़ती हुई थकावट का अन्त पक्षाघात में हो जाय, थोड़ा-सा भी शारीरिक या मानसिक श्रम करने में अगर वह अपने को असमर्थ पाये, तो इस औषधि को स्मरण करना चाहिये। डॉ० नैश लिखते हैं कि एक वृद्ध पुरुष जो सालभर पहले सर्वथा स्वस्थ था, अनुभव करने लगा कि उसकी दिमागी ताकत क्षीण होती जा रही थी, उनसे इलाज कराने आया। वह अनुभव करता था कि उसके सिर के पिछले भाग में हर समय भारीपन रहता है, वह कोई मानसिक-कार्य नहीं कर सकता था, सोच-विचार करना भी उसके लिये भारी था, उसे उन्होंने पिकरिक एसिड 6 शक्ति का चूर्ण दिया और वह जल्दी ही ठीक हो गया।
मस्तिष्क की थकावट में हमें जेलसीमियम, फॉसफोरस, फॉस्फोरिक ऐसिड, पिकरिक एसिड, अर्जेन्टम नाइट्रिकम, सल्फर, एलूमिना, तथा साइलीशिया की एक-साथ तुलना करनी चाहिये क्योंकि इन सब औषधियों का मस्तिष्क, मेरु-दंड तथा संपूर्ण स्नायु-मंडल पर प्रभाव है। पिकरिक एसिड तथा फॉसफोरिक ऐसिड बहुत मिलते-जुलते हैं, इनमें से किसी एक का निर्णय कर सकना कठिन हो जाता है। इनकी तुलना निम्न है: –
पिकरिक एसिड | फॉसफोरिक एसिड |
जननाँगों की उत्तेजना (Irritation) | जननांगों की कमजोरी (Weakness) |
रोगी जल्दी-जल्दी थक जाता है | रोगी कमजोरी अनुभव करता है |
पीठ तथा अंगों में भारीपन होना | अंगों के संचालन में धीमापन होना |
दिमाग में थकावट | मन में थकावट |
ठंड से आराम | गर्मी से आराम |
(3) स्कूल में पढ़ने वाले युवकों, अध्यापकों, मानसिक-कार्य करने वालों के लिए दिमागी थकावट में उपयोगी – जब बच्चे पढ़ना-लिखना शुरू करते हैं, तब जो बच्चे थोड़े से भी मानसिक प्रयास से थक जाते हैं, सिर में दर्द होने लगता है, जब भी पढ़ना शुरू करते हैं सिर-दर्द लौट आता है, उनके लिये यह उपयोगी है। स्कूल में पढ़ाई शुरू करते ही सिर में दर्द होने लगता है। मानसिक-श्रम से सिर में चक्कर आ जाता है। विद्यार्थियों, अध्यापकों, दिमागी काम करने वालों के लिये अगर उन्हें मानकिस-श्रम से सिर-दर्द होने लगे, थकावट आ जाय, काम न किया जा सके, तो यह उपयोगी है। व्यापारियों के लिये जिन पर कार्य का अत्यंत भार रहता है, यह लाभप्रद औषधि है। जिन विद्यार्थियों का पढ़ने में ध्यान केन्द्रित नहीं होता उन्हें डॉ० क्लार्क इथूजा के पाउडर दिया करते थे जिन्हें वे ‘फंक पिल्स‘ कहते थे, इनसे विद्यार्थियों का ध्यान केन्द्रित हो जाता था।
(4) ठंड से तथा विश्राम से और इसलिये रात को रोगी लाभ अनुभव करता है, दिन को परेशान रहता है – यह गर्म (Warm) औषधि है, इसलिये रोगी दिन की गर्मी को बर्दाश्त नहीं कर सकता, ठंड पसन्द करता है, ठंडी हवा, ठंडे पानी से स्नान करना उसे रुचता है। दिन को काम करने की उसमें शक्ति नहीं रहती, रात को जब वह बिस्तर पर पड़ जाता है तब उसे आराम मिलता है, सोने से उसका रोग शांत होता है। वह इतना थका रहता है कि दिनभर ऊंघता रहता है। इस ऊंघाई का नतीजा यह होता है कि रात की नींद नहीं आती। कमजोरी की वजह से दिन को भी लेटा रहना ही पसन्द करता है।
(5) दु:ख आदि उद्वेगों से सिर-दर्द – दु:ख आदि उद्वेगों से हतोत्साह हो जाना और इस प्रकार सिर-दर्द रहना – इसमें भी यह उत्तम औषधि है।
(6) थकावट, पस्त होना आदि लक्षणों में अन्य औषधियों से तुलना – जब मनुष्य अत्यन्त शक्तिहीन, पस्त हो जाता है – भले ही वह शारीरिक कमजोरी हो या मानसिक-तब पिकरिक एसिड पर ध्यान देना उचित है।
शक्ति तथा प्रकृति – पिकरिक एसिड 6, पिकरिक एसिड 30 ( औषधि ‘गर्म’ – प्रकृति के लिये है )