शरीर में ‘कोलेस्ट्रोल’ नामक पदार्थ बनने के कारण ही पित्ताशय की पथरी बनती है और पथरी का 50-98% भाग ‘कोलेस्ट्रोल’ ही होता है। लगभग 75% पथरियां कोलेस्ट्रोल निर्मित ही होती हैं। शेष 25% पथरियां ‘कैल्शियम बिलीरुबिनेट’ नामक पदार्थ (रंग) के कारण होती हैं, जो कि काले अथवा भूरे रंग की होती हैं।
‘पिगमेंट स्टोंस’ (रंग संबंधी पदार्थ के कारण पथरी) होने का प्रमुख कारण ‘हीमोलिसिस’ (लाल रक्त कणिकाओं में से हीमोग्लोबिन पदार्थ बाहर निकल आने की प्रक्रिया) के कारण अथवा पित्त-तंत्र में संक्रमण होना प्रमुख कारण हैं।
इसके अलावा मोटापा एवं कम उम्र में ही अधिक बच्चे जनने के कारण औरतों में, अधिक समय तक गर्भ-निरोधक गोलियां खाने के कारण, कुछ विशेष अंग्रेजी दवाओं के अधिक सेवन के कारण भी पित्ताशय में पथरी बन सकती है एवं पथरी बनने की प्रक्रिया भी तेज हो जाती है।
पित्त की पथरी के लक्षण
1. अधिकतर पित्ताशय की पथरी के कोई लक्षण जीवनपर्यन्त प्रकट नहीं हो पाते।
2. प्रथम लक्षण पित्ताशय में दर्द होता है।
3. पित्ताशय में सूजन आ जाती है।
4. बुखार रहने लगता है।
5. पित्त इकठ्ठा हो जाने के कारण (पित्तविसर्जन नली में, पथरी के कारण रुकावट के कारण) पीलिया हो जाता है।
पित्त की पथरी का होमियोपैथिक इलाज
खान-पान का विशेष ख्याल रखना चाहिए। तली हुई एवं चिकनाईयुक्त खाद्य पदार्थ कम खाने चाहिए एवं मोटापा नहीं चढ़ने देना चाहिए। कच्ची उम्र में ही जल्दी-जल्दी बच्चे पैदा करना स्त्रियों के लिए हानिकारक है। बिना चिकित्सकीय परामर्श के लम्बी अवधि तक गर्भ-निरोधक गोलियां भी नहीं खानी चाहिए। यदि पथरी आकार में अधिक बड़ी हो या पथरी की वजह से कोई तात्कालिक जटिलता उत्पन्न हो गई हो, तो आपरेशन द्वारा भी पथरी को निकलवाया जा सकता है, जिसे ‘कोलीसिस्टेक्टमी’ कहते हैं, अन्यथा अधिकांश रोगियों का बिना आपरेशन होमियोपैथिक औषधियों द्वारा सफल इलाज सम्भव है।
मुख्य रूप से निम्नलिखित होमियोपैथिक औषधियां लक्षणों की समानता के आधार पर प्रयुक्त की जा सकती हैं – ‘चिओनेन्थस’, ‘हायड्रेसटिस’, ‘कार्ड़ू- असमेराइनस’, ‘चाइना’, ‘कल्केरिया’, ‘बरबेरिस वल्गेरिस’, ‘चेलिडोनियम’, ‘कोलेस्ट्रेराइनम’ ।
चिओनेन्थस : आंखों की श्लेष्मा झिल्ली में पीलापन, जीभ पर पीली परत, मुंह सूखा, किन्तु पानी से आराम नहीं, पेट दर्द, मूत्राशय एवं पित्ताशय के हिस्से में यकृत बढ़ा हुआ, पीलिया, पाखाना स्लेटी,पेशाब गाढ़ा पीला, त्वचा में पीलापन, जांच कराए जाने पर पित्ताशय में पथरी होने की स्थिति में दवा का मूल अर्क अथवा 3 × शक्ति में दवा नियमित, लाभ मिलने तक प्रयुक्त करनी चाहिए।
कार्ड़ूअस : जी मिचलाना, हरे रंग के अम्लीय स्राव की उल्टी होते रहना, यकृत एवं पित्ताशय बढ़ा हुआ, छूने पर पित्ताशय के स्थान पर उदर में दाईं तरफ दर्द, पित्ताशय में पथरी की वजह से लगातार पेट दर्द रहना, मुंह का स्वाद कसैला, त्वचा में भी पीलापन आदि मिलने पर दवा का मूल अर्क 5 से 10 बूंद एक चौथाई कप पानी में, दिन में तीन बार लगभग एक से दो माह तक सेवन करना चाहिए। लाभ मिलने की स्थिति में दवा बंद कर देनी चाहिए। दवा बंद करने से पूर्व जांच कराकर यह सुनिश्चित कर लेना आवश्यक है कि पथरी घुलकर निकल चुकी है अथवा नहीं।
बरबेरिस वल्गेरिस : पित्ताशय के स्थान पर, उदर में पीड़ा, दबाने पर दर्द बढ़ जाता है, सुबह नाश्ता करने से पूर्व जी मिचलाना, चेहरा पीला पड़ जाना, कब्ज रहना, गुर्दो की जगह पर भी दर्द महसूस होना, गुर्दो से यकृत तक दर्द रहना, पेशाब में जलन, बार-बार पेशाब आना, त्वचा पर खुजली एवं जलन, ठंडे पानी से आराम, चलने-फिरने एवं खड़े रहने पर परेशानी आदि लक्षण मिलने पर दवा का मूल अर्क अथवा 3 × शक्ति में लाभ मिलने तक नियमित सेवन करना चाहिए।
कैल्केरियाकार्ब : यह मूत्र-पथरी की तरह पित्त-पथरी की भी मुख्य दवा है। दर्द होने पर ‘कैल्केरियाकार्ब’ 30 शक्ति की 5-6 गोलियां 15-15 मिनट पर चूसने पर दर्द में आराम हो जाता है। अगर इस दवा से आराम न हो, तो ‘बरबेरिस वल्गेरिस’ का मूल अर्क 10-10 बूंद थोड़े पानी में डालकर 15-15 मिनट से लेने पर दर्द मिट जाता है।
कोलेस्ट्रेराइनम : पित्त-पथरी से होने वाले दर्द को दूर करने की यह उत्तम दवा है। यह पित्त-पथरी से ही बनाई हुई है। कोलेस्ट्रेराइनम पाउडर 3 × शक्ति में लेना विशेष रूप से उपयोगी होता है।
मेन्था पिपरेटा : यह दवा दर्द दूर करने में अदभुत काम करती है। मेन्था पिपरेटा 6 × या 3 शक्ति की एक बूंद दवा 1-2 चम्मच पानी में घोल कर 15-15 मिनट से 2-3 बार लेने से ही दर्द में आराम हो जाता है।