इस रोग से त्वचा पर लाल तथा सादा चकत्ते से उभर आते हैं । इन चकत्तों में जलन, खुजली तथा डंक मारने जैसा अनुभव होता है । ये चकत्ते बर्र के काटने पर जैसे चकत्ते पड़ जाते हैं, लगभग वैसे ही होते हैं। यह रोग अचानक ही उत्पन्न होता है तथा कुछ देर तक कुछ घण्टों तक अथवा कई दिनों तक बना रहकर ठीक हो जाता है। इसमें शरीर के कितने ही स्थान फूल उठते हैं तथा उनमें खुजली होने लगती हैं। फूले हुए स्थान (चकत्ते) गरम रहते हैं।
कारण – इस रोग का कारण सर्दी लगना, कब्ज एवं मछली, केकड़ा अथवा गरिष्ठ पदार्थों को खाना होता है ।
यह बीमारी दो प्रकार की होती हैं – (1) नया आमवात । (2) पुराना आमवात ।
नये आमवात की चिकित्सा
नयी बीमारी में निम्नलिखित औषधियों को लक्षणानुसार देना चाहिए :-
एपिस 1x, 3x, 6 – यह आमवात (पित्ती उछलने) की मुख्य औषध है । चकत्तों में जलन तथा बेहद खुजली मचने के लक्षणों में लाभकारी है । त्वचा पर लाल अथवा फीके-फीके से चकत्ते उभरने पर इसे देना चाहिए.। सर्दी लगने के कारण उभरने वाले चकत्तों में हितकर है ।
क्लोरेलम 3x – यदि ‘एपिस’ से लाभ न हो तो पूर्वोक्त लक्षणों में इस औषध को 8-8 घण्टे के अन्तर से देना चाहिए ।
आर्टिका-युरेन्स 3x – इस औषध के लक्षण भी ‘एपिस’ जैसे हैं । यदि ‘एपिस’ से लाभ न हो तो इसे देना चाहिए । ‘एपिस’ की अपेक्षा इससे पेशाब अधिक आता है। त्वचा पर डंक चुभने जैसा अनुभव होने वाली जुलपित्ती में इसका प्रयोग हितकर है । इसे प्रति 4 घण्टे के अन्तर से देना चाहिए ।
आर्सेनिक 30 – यदि चकत्तों में खुजली तथा जलन हो, रोगी को बेचैनी हो और उसे घूंट-घूंट पानी की प्यास लगती हो तो इसे देना चाहिए। यदि चकत्तों के दब जाने से कोई उपद्रव उठ खड़ा हो अथवा उनके दब जाने से ‘क्रूप-खाँसी’ हो जाय, तो भी इस औषध के प्रयोग से लाभ होता है ।
नक्स-वोमिका 30 – यदि शराब पीने के फलस्वरूप जुलपित्ती निकली हो तो इसके प्रयोग से लाभ होता है ।
डल्कामारा 6, 30 – यदि भींग जाने, सोलन अथवा ठण्ड के कारण पित्ती उछल आये तो इसका प्रयोग करना चाहिए ।
पल्सेटिला 30 – यदि गरिष्ठ अथवा सड़े भोजन के फलस्वरूप प्रात:काल दस्त आने के बाद शरीर पर पित्ती उभर आये तथा रोगी मृदु स्वभाव का हो तो इसका प्रयोग हितकर रहता है । यह स्त्रियों के लिए विशेष लाभकारी है।
एण्टिम-क्रूड 3, 6 – यदि अजीर्ण के कारण यह रोग हुआ हो और जीभ पर चूना सा पुता हो तो इस औषध को देना चाहिए ।
एकोनाइट 30 – यदि ठण्डी अथवा बर्फीली हवा लगने के कारण रोग हुआ हो, त्वचा पर खुश्की हो तथा ज्वर, प्यास, परेशानी एवं घबराहट के लक्षण हों तो इस औषध के प्रयोग से लाभ होता है ।
रस-टाक्स 30 – यदि पित्ती में तीव्र जलन तथा सख्त खुजली हो, त्वचा लाल हो और उस पर सूजन आ गई हो, ज्वर तथा प्यास के उपसर्ग हों एवं ठण्ड लगने के कारण रोगी का अधिक कष्ट बढ़ जाता हो तो इसके प्रयोग से लाभ होता है।
ब्रायोनिया 30 – यदि पित्ती दब जाने के कारण एकदम अदृश्य हो जाय और उसके फलस्वरूप श्वास में भारीपन अथवा छाती में दर्द के लक्षण प्रकट हों तो इसका प्रयोग करना चाहिए ।
पुराने आमवात की चिकित्सा
पुरानी बीमारी में निम्नलिखित औषधियों को लक्षणानुसार देना चाहिए :-
ऐस्टेकस फ्लूबियेटिलिस 6 – यह औषध त्वचा के चकत्तों पर विशेष प्रभाव डालती है । सम्पूर्ण शरीर पर चकत्ते पड़ जाना, खुजली मचना तथा यकृत-दोष के कारण उत्पन्न पित्ती उछलने में लाभकारी है । इसे प्रति चार घण्टे बाद दें ।
नेट्रम-म्यूर 30 – आमवात के जिन पुराने रोगियों को सख्त कब्ज रहता हो, चेहरे पर मटमैलापन तथा रक्त-शून्यता के लक्षण हों, उनके लिए यह औषध बहुत लाभकारी है ।
सल्फर 30 – यदि रात को बिस्तर पर लेटते समय चकत्तों में खुजली अत्यधिक बढ़ जाती हो तो इसके प्रयोग से लाभ होता है ।
स्ट्रोफैन्थस Q, 6x – यह पुरानी पित्ती में लाभकर है। जिन मोटे लोगों का मुँह सूज जाता है, पेशाब कम आता है, हृदय-रोग के कारण शोथ हो जाता है तथा दिल की कमजोरी एवं लो-ब्लड-प्रेशर के लक्षण होते हैं, उनके लिए यह विशेष उपयोगी है। इसे 5 से 10 बूँद तक की मात्रा में दिन में तीन बार देना चाहिए।
स्कूकम-चक 3x – डॉ० कोल के मतानुसार जुलपित्ती रोग में अन्य किसी औषध से लाभ न होने पर, यह औषध लाभप्रद सिद्ध होती है ।
आर्सेनिक 30 – शारीरिक-दृष्टि से दुर्बल रोगी की जुलपित्ती में, जिनमें अधिक जलन, थोड़ी-थोड़ी प्यास तथा जीभ पर लाली के लक्षण दिखाई देते हों, यह औषध बहुत लाभ करती हैं।
एपिस, किनिनम-सल्फ अथवा क्लोरेलम 2x विo – बार-बार पित्ती उछलने की बीमारी में इनमें से किसी भी एक औषध का लक्षणानुसार प्रयोग करना चाहिए।
आमवात की संक्षिस-चिकित्सा
विभिन्न कारणों से उत्पन्न तथा विभिन्न उपसर्गों से युक्त जुलपित्ती-रोग में लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियो का प्रयोग करना चाहिए ।
(1) सूखी सर्दी अथवा सर्दी के दिनों की हवा लगने के कारण उत्पन्न हुए रोग में – एकोनाइट ।
(2) गीली अथवा बरसाती हवा लगने के कारण हुए रोग में – डल्कामारा ।
(3) पाकाशय की गड़बड़ी के कारण उत्पन्न हुए रोग में – पल्सेटिला, एण्टिम-क्रूड अथवा नक्स-वोमिका ।
(4) विशेषकर वर्षा-ऋतु में सर्दी लगने के कारण उत्पन्न हुए रोग में – डल्कामारा ।
(5) मानसिक-अवसन्नता के कारण उत्पन्न हुए रोग में – इग्नेशिया, ऐनाकार्डियम ।
(6) आमवात के अचानक दब जाने पर – एकोनाइट ।
(7) बिस्तर की गर्मी के कारण उत्पन्न होने वाले रोग में – क्लोरेलम 2x वि० ।
(8) ज्वर के साथ पित्ती उछलने के लक्षणों में – एकोनाइट ।
(9) अनिद्रा-रोग के साथ पित्ती उछलने के लक्षणों में – काफिया ।
(10) वात-रोगियों के जुलपित्ती रोग में – ब्रायोनिया, रस-टाक्स।
(11) गठिया-वात के रोगियों के जुल-पित्ती रोग में – कोलचिकम ।
(12) जरायु की गड़बड़ी के कारण उत्पन्न हुए जुलपित्ती रोग में – पल्सेटिला, हाइड्रैस्टिस ।
(13) दमा के रोगियों के जुलपित्ती रोग में – इपिकाक, आर्सेनिक ।
(14) दाह, ज्वर एवं प्यास के साथ लाल रंग के दानों वाले जुलपित्ती रोग में – एकोनाइट ।
(15) जुलपित्तियों का निम्न-भाग लाल तथा मध्य-भाग सफेद हो, उनमें जलन अथवा डंक मारने जैसा दर्द हो, अत्यधिक कुटकुटाहट अथवा सुरसुराहट के लक्षण हों तथा पित्तियाँ फूल उठती हों तो इन लक्षणों में – एपिस 3x, युरेन्स 3x ।
(16) यदि चकत्तों के अचानक बैठ जाने से वमन, अतिसार तथा प्रलाप के लक्षण हों तो – आर्निका ।
(17) यदि चकत्ते बहुत फूले हुए हों और उनमें डंक मारने जैसा तेज दर्द हो तो – एपिस मेल ।
(18) यदि ‘आर्निका’ अथवा ‘एपिस’ के प्रयोग से लाभ न हो तो – क्लोरेल हाइड्रेट ।
(19) यदि चिमड़ी मछली अथवा केकड़ा खाने के कारण अथवा पानी में भीगने के कारण बीमारी हुई हो तो – रस-टाक्स 3, 30 ।
(20) यकृत-दोष के साथ आवागमन होने पर – ऐस्टेकस-फ्लुवियेटिलिस 3।
(21) रोग की पुरानी अवस्था में – आर्सेनिक, सल्फर, ऐस्टेकस फ्लुवियेटिलिस, किनिनम-आर्स तथा एपिस 3, 30 अथवा नेट्रम-म्यूर 30 ।
(22) उत्त सभी औषधियाँ लाभकर सिद्ध न हों – स्कूकम-चक 3x वि० ।
- जुलपित्ती के चकत्तों पर नीबू काटकर मलने से लाभ होता है ।
- जुलपित्ती के रोगी को गुनगुने पानी से स्नान करना चाहिए ।
- पानी में भींगना, चिमड़ी, मछली अथवा केकड़ा खाना, पेट ख़राब करने वाली गरिष्ट वस्तुओं का सेवन, ओस, सर्दी अथवा पानी में भींगना – इन सबसे बचना चाहिए ।