बार-बार हो जाने वाला यह बुखार गरीबों को, जेल के बन्दियों को, विटामिन के कमी से, पिस्सुओं और जुओं के काटने से एकाएक हो जाता है। सिर और कमर में दर्द होता है, अंग टूटते हैं, आँखें लाल हो जाती हैं, 6-7 दिन के पश्चात् पसीना आकर यह ज्वर उतर जाता है । ज्वर के दौरान दस्त भी आ सकते हैं । ज्वर उतर जाने के पश्चात् एक सप्ताह के बाद दोबारा इसी प्रकार पुन: 2-4 बार तक ज्वर लौट-लौट कर आता रहता है रोगी जिसके कारण काफी कमजोर हो जाता है। हिलने-डुलने के अयोग्य हो जाता है, उसके यकृत और तिल्ली बढ़ जाते हैं। पेट में दर्द भी हो सकता है तथा त्वचा पीलिया रोग की भाँति पीली हो जाती है ।
बार बार बुखार आने का एलोपैथिक चिकित्सा
इस रोग में संखिया से निर्मित औषधियाँ लाभकारी सिद्ध होती हैं ।
मेफारसेन 40 से 60 मि.ग्रा. या नियोआर्स फेनामाईन 0.6 ग्राम का शिरा में इन्जेक्शन लगायें ।
पेनिसिलिन 3 लाख यूनिट का प्रत्येक 12 घण्टे के अन्तराल से नितम्ब की माँसपेशी में इंजेक्शन लगाना उपयोगी है ।
टेरामायसिन (फाइजर कंपनी) 250 मि.ग्रा. का एक कैप्सूल प्रत्येक 5 घण्टे के अन्तराल से 1 गिलास ताजे जल से 5-6 दिन तक निरन्तर दें ।
अन्य औषधियाँ – एक्रोमायसिन (सायनेमिड कम्पनी), ऑक्सीस्टेक्लीन, (साराभाई कम्पनी) का इन्जेक्शन अथवा विस्ट्रेपेन इन्जेक्शन (एलेम्बिक) या इण्टेरोमाइसेटिन (डेज कम्पनी) का आयु तथा रोगानुसार प्रयोग लाभकारी होता है।