मुंह के स्वाद में परिवर्तन मुख्यत: दो प्रकार का होता है – (1) स्वाद में कमी आ जाना तथा (2) स्वाभाविक से भिन्न स्वाद प्रतीत होना । स्वाद-परिवर्तन के उक्त दोनों प्रकारों की लक्षणानुसार चिकित्सा निम्नलिखित है :-
स्वाद में कमी आ जाना
(1) स्वाद में कमी का अनुभव होना – ‘पल्स 6‘, इसे प्रति 4 घण्टे के अन्तर से दें ।
(2) फीका स्वाद आना – ‘कैल्केरिया-कार्ब 6‘, इसे प्रति 4 घण्टे के अन्तर से दें ।
(3) स्वाद बिल्कुल न आना – ‘नेट्रम-म्यूर 6‘, ‘सल्फर 3‘ तथा ‘मैग-कार्ब 6‘ इनमें से किसी भी एक औषध को प्रति 4 घण्टे के अन्तर से दें ।
(4) जीभ पर सफेदी तथा भोजन का स्वाद न लगना – ‘एण्टिम-क्रूड 6‘ अथवा ‘एण्टिम-टार्ट 6‘ – इनमें से किसी भी एक औषध को प्रति 4 घण्टे के अन्तर से दें ।
(5) ठण्ड लगने के कारण गन्ध तथा स्वाद का न आना – ‘मैग्नेशिया-म्यूर 3‘ इसे प्रति 4 घण्टे के अन्तर से दें ।
(6) मुंह में छाले होने के साथ ही, स्वाद की अनुभूति भी न होना – ‘बोरेक्स 3‘ इसे प्रति 4 घण्टे के अन्तर से दें ।
स्वाद में परिवर्तन हो जाना
किसी वस्तु के यथार्थ-स्वाद में परिवर्तन का अनुभव होने पर लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियों का प्रयोग करना चाहिए :-
(1) प्रत्येक वस्तु का स्वाद तीव्र अनुभव होना – ‘कैम्फर 3‘, इसे प्रति 4 घण्टे के अन्तर से दें ।
(2) रोटी का स्वाद मीठा प्रतीत होना ‘मर्क-सोल 6‘, इसे प्रति 4 घण्टे के अन्तर से दें ।
(3) भोजन तथा पानी का स्वाद खट्टा तथा दूध का स्वाद खराब अनुभव होना – ‘नक्स-बोमिका 6‘, इसे प्रति 4 घण्टे के अन्तर से दें ।
(4) प्रत्येक वस्तु का स्वाद नमकीन अनुभव होना – ‘बेलाडोना 3‘, इसे प्रति 4 घण्टे के अन्तर से दें ।
(5) खाद्य-पदार्थों का स्वाद झाग जैसा, मीठा-सा तथा धातु जैसा अनुभव होना – ‘क्युप्रम-मेट 6‘, इसे प्रति 4 घण्टे के अन्तर से दें।
(6) प्रत्येक वस्तु का स्वाद कड़वा लगना – ‘नेट्रम-म्यूर 6‘, ‘चायना 3‘, ‘पल्स 3’ अथवा ‘कैम्फर 3‘ – इनमें से किसी भी एक औषध को प्रति 4 घण्टे के अन्तर से दें ।
(7) प्रत्येक वस्तु का स्वाद खट्टा, धातु जैसा अथवा चिकनाई जैसा अनुभव होना – ‘रस टाक्स 3‘, इसे प्रति 4 घंटे के अंतर से दें।
(8) खाना खा चुकने के बाद भी, मुंह में भोजन का स्वाद बना रहना – ‘नाइट्रिक एसिड 6‘ अथवा ‘नेट्रम-म्यूर 6‘ – इनमें से किसी भी एक औषध को प्रति 4 घण्टे के अन्तर से दें ।
स्वाद के अनुसार औषध प्रयोग
किसी प्रकार का स्वाद अनुभव होने पर, कौन-सी औषध लाभ करती है, इसे निम्नानुसार समझना चाहिए :-
आर्जेण्टम-नाइट्रिकम 6 – मिट्टी जैसा स्वाद आने पर।
आर्निका 3, अथवा आरम म्यूर 3x – सड़ाँध जैसा स्वाद आने तथा मुंह से भी सड़ाँध जैसी गन्ध आने पर ।
एल्यूमिना 3 – रक्त जैसा स्वाद आने पर ।
एस्कुलस 3 – ताँबें जैसा अथवा धातु जैसा स्वाद आने पर ।
कैल्केरिया-कार्ब 30 – दुर्गन्धित तथा खट्टा स्वाद आने पर ।
चायना 30 – कड़वा स्वाद आने पर ।
चेलिडोनियम 3 – खाते-पीते समय सही स्वाद का अनुभव होना, परन्तु अन्त समय में कड़वे स्वाद की अनुभूति तथा कभी-कभी रक्त जैसा मीठा स्वाद आने पर।
नक्स-वोमिका 30 – प्रात:काल मुंह का बे-स्वाद रहना, खाना-पीना खट्टा लगना, मुंह में खट्टा अथवा कड़वा स्वाद तथा मुंह से बुरी गन्ध आने पर ।
नाइट्रिक-एसिड 6 – खाँसते समय मुंह में खून जैसा स्वाद आने पर।
पल्सेटिला 30 – घृणास्पद, झागदार तथा पित्त-प्रकृति का स्वाद आने पर ।
बोरैक्स 3 – फीका-फीका स्वाद आने पर ।
मर्कसोल 6 – नमकीन तथा मीठा स्वाद, सड़े अण्डे जैसा स्वाद तथा रोटी भी मीठी-सी लगने पर ।
मर्क-कोर 6 – कड़वा, झाग तथा धातु जैसा स्वाद लगने पर ।
रियुम 3, 6 – सोकर उठते समय मुंह का बुरा-बुरा स्वाद होने पर ।
लाइकोपोडियम 30 – प्रत्येक वस्तु खट्टी लगने पर ।
सल्फर 30 – कड़वा, लेई जैसा, धातु, पित्त, रक्त अथवा सिरके जैसा स्वाद लगने पर ।
हाइड्रैस्टिस 30 – प्रातःकाल मुंह का स्वाद बिगड़ा हुआ, भोजन का स्वाद आजीब-सा तेजाबी अथवा मिर्चों जैसा लगना ।