संसार का कोई भी देश गरीबी से अछूता नहीं है, हमारा देश भी बहुत गरीब देश है । यहाँ के करोड़ों लोगों को आज भी शक्तिशाली भोजन नहीं मिलता है, जिसके कारण उनके शरीर की आवश्यक पौष्टिक पदार्थ (विटामिन और खनिज लवण) नहीं मिलते हैं, जिसके फलस्वरूप उनमें कमजोरी आ जाती है और उनको कई प्रकार के रोग हो जाया करते हैं। जब रोगी के शरीर में औषधि द्वारा वह विटामिन पहुँचाये जाते हैं तो थोड़े ही समय में उसके शरीर के कई रोग स्वत: घटने लग जाते हैं जिसके फलस्वरूप, रोगी तन्दुरुस्त हो जाता है और उसकी काया पलट जाती है। इन औषधियों से बड़े-बड़े भयानक पुराने रोग, संक्रामक रोग, पुराने घाव और शारीरिक कमजोरी को शीघ्र दूर कर लिया जाता है ।
जन्म से लेकर 5 वर्ष आयु के बालकों को यह विटामिनीय औषधियों को खिलाने से वह शक्तिशाली और मोटे-ताजे हो जाते हैं । ऐसे बालकों को जवान में बहुत कम रोग होते हैं । इनको विटामिन A, B, C और D काफी मात्रा में दिया जाना चाहिए । दूध को सम्पूर्ण भोजन माना गया है, क्योंकि उसमें आवश्यकता की सभी वस्तुएँ पाई जाती हैं । बच्चों के लिए अपनी माता का दूध अत्यन्त ही लाभप्रद होता है, इसके बाद बकरी या गाय का दूध अच्छा होता है ।
डॉ० ल्यूनिन (Lunin) ने सन् 1881 में यह सिद्ध कर दिया कि जानवरों के बच्चों को समस्त पदार्थ दिये जायें जो भोजन में होते हैं, परन्तु विटामिन न दिये जाये तो उनका विकास बन्द हो जाता है और वे अल्पायु में ही मर जाते हैं।
पुरुष और स्त्रियों को जवान होने पर उनके मुख पर कील-मुँहासे और फुन्सियाँ निकल आती हैं। ऐसे पुरुषों और स्त्रियों को यदि उचित मात्रा में विटामिन (जैसे-ताजा दूध, अधिक मात्रा में हरी शाक-सब्जियाँ और ताजा फल) खिलायें जायें तो उनको यह कष्ट होने ही न पाये और यदि हो भी जाये तो शीघ्र ही दूर हो जायें । 20 वर्ष की आयु के बाद विटामिनों का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है।
इस आयु में पुरुषों एवं स्त्रियों को खेलने, कूदने, दौड़ने, भागने (दिमाग और शरीर को थका देने वाले) काम करने के लिए शक्ति की आवश्यकता होती है ।
इस आयु की स्त्रियों को बच्चे पैदा हो जाने के कारण, उनको विटामिनों की और भी अधिक आवश्यकता पड़ती है । यदि बच्चा पैदा होने (प्रसव) के बाद स्त्रियों को आवश्यक विटामिन न मिले तो उसके बाद और उत्पन्न होने वाले बच्चे कमजोर हो जायेंगे और उनका शरीर रोगग्रस्त रहेगा। इसलिए आजकल बच्चे पैदा होने पर स्त्री को काफी समय तक विटामिनी औषधियाँ दी जाती हैं ।
स्त्रियों और मादा पशुओं में विटामिन ई न रहने (अर्थात् इस विटामिन की कमी) से उनको गर्भ नहीं ठहरता है तथा इसके अतिरिक्त उन्हें गर्भपात अथवा रक्तस्राव भी होने लग जाता है। इसीलिए विवाहित स्त्री और पुरुषों को गर्भधारण कराने के लिए यह विटामिन (विटामिन ई) खिलाया जाता है ।
35-40 वर्ष की आयु के बाद मनुष्य का शरीर शिथिल होने लग जाता है और इसी आयु में काम भी अधिक करना पड़ता है। अधिक परिश्रम के ही कारण प्राय: नजला, जुकाम इत्यादि रोग बार-बार हो जाते हैं जिसके फलस्वरूप मनुष्य थकावट प्रतीत करने लग जाता है और उसको नाड़ी संस्थान सम्बन्धी रोग हो जाते हैं। इसीलिए इस आयु में विटामिन ‘सी’ और विटामिन बी कम्पलेक्स खिलाना अति आवश्यक है । इन विटामिनों के प्रयोग न करने और दिन-रात काम करते रहने से मनुष्य की शारीरिक शक्ति घटती रहती है ।
अधेड़ आयु हो जाने पर मनुष्य का शरीर कठोर होने लगता है और रक्त ले जाने वाली शिरायें कठोर हो जाने के कारण हृदय भली प्रकार सम्पूर्ण शरीर में रक्त संचार नहीं कर सकता है । ऐसी अवस्था में विटामिन ‘ए’ और ‘ई’ खिलाते रहने से यह रोग दूर हो जाता है । इसलिए 40-50 वर्ष की आयु के मनुष्यों को दोनों विटामिन का अधिक मात्रा में खिलाने की राय देते हैं जिससे रोगी के शरीर में नई शक्ति और नया जीवन उत्पन्न हो जाता है ।
बुढ़ापे में भी मनुष्य को विटामिन का प्रयोग अत्यन्त ही जरूरी है क्योंकि वृद्धावस्था में मनुष्यों को भूख नहीं लगती है और भोजन कम खाने से उनमें विटामिन की मात्रा और भी अधिक घट जाती है। बुढ़ापे में शरीर में शक्ति पहुँचाने के लिए विटामिनों की अधिक आवश्यकता होती है। इन विटामिन के प्रयोग से बूढ़े मनुष्यों में उनकी कमजोरी, काम करने को मन नहीं चाहना, चलने-फिरने की शक्ति घट जाना इत्यादि दूर हो जाते हैं। वृद्धावस्था में विभिन्न विटामिन अर्थात् मल्टी विटामिन टिकियों के रूप में खिलाते रहने से मनुष्यों की शक्ति और आयु बढ़ जाती है ।
अस्तु, यह निर्विरोध रूप से कहा जा सकता है कि-जन्म से लेकर मृत्यु होने तक प्रत्येक मनुष्य को और रोगी को इन विटामिनों की आवश्यकता रहती है ।