इस विटामिन को बी-3 के अतिरिक्त निकोटिनिक एसिड (Nicotinic Acid), नियासिन (Niacin), निकोटिना माइड इत्यादि नामों से भी जाना जाता है । यह सभी पदार्थ एक ही है। इसको P.P. Factor (पैलाग्रा को दूर करने वाला अंश) कहते हैं ।
आजकल इसकी बजाय निकोटिनिक एसिड एमाईड अधिक प्रयोग किया जाता है क्योंकि इसमें बुरे प्रभाव बहुत कम हैं। इसका कार्य शरीर में कार्बोहाइड्रेट को समवर्तन करना है। इस पदार्थ की शरीर में कमी हो जाने से पैलाग्रा (Pellagra) जैसा भयानक रोग हो जाता है। इससे रोगी के पाचनांग हृदय और स्नायु संस्थान रोग ग्रस्त हो जाते हैं । चर्म फट जाता है । चर्म में नंगे स्थान जैसे चेहरे, पांव और हाथों पर धब्बे पैदा होकर वह स्थान खुरदुरा हो जाता है। मुँह, जीभ पक जाना और मुँह में छाले व सूजन, भूख न लगना, पेट फूल जाना, पेट दर्द और संग्रहणी (पुराने दस्तों) का रोग हो जाता है। इसके अतिरिक्त लो ब्लड प्रेशर, हृदय अधिक धड़कना, रक्ताल्पता, पागलपन जैसी अवस्था, स्नायविक कमजोरी, लड़खड़ाकर चलना, खुजली आदि रोग हो जाते हैं ।
यह विटामिन सभी विटामिनों में सबसे अधिक स्थायी विटामिन है । भोजन बनाने की सामान्य क्रियाओं तथा वायु और प्रकाश से इसका ओषजनीकरण अथवा ह्रास नहीं होता है। सभी जीवित कोषों में निकोटोनिक एसिड एमाइड पाया जाता है। जिगर, गुर्दे, खमीर, चोकर और आवरण सहित अनाज, माँस, अण्डे (यीस्ट, पशुओं की कलेजी में अधिक) मछली, मूंगफली, दालों, छिलके वाले चावल, ज्वार और बाजरा (छिलके वाले अनाजों) में पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है ।
यह विटामिन कार्बोज पदार्थों के संवर्तन से सम्बन्धित माना जाता है। डायबिटीज के रोगियों में यह इन्सुलिन के प्रभाव को बढ़ाता है। यह स्वयं भी अधिक मात्रा (500 मिलीग्राम) में दिये जाने पर रक्त में शर्करा का परिमाण कम करता है। स्नायविक तन्तु की कार्बोज संवर्तन प्रक्रियाओं में यह महत्वपूर्ण भाग लेता है । रक्तकोषों के स्वस्थ निर्माण और कार्य व्यापार के लिए भी यह आवश्यक है ।
सामान्य व्यक्ति में निकोटेनिक एसिड के प्रयोग के पश्चात् चेहरा और गर्दन लाल होकर तनतना जाते हैं । सारे शरीर में सनसनाहट, खुजली और गरमी छा जाती है। सिर में भारीपन, चक्कर, सिरदर्द, धड़कन, पीड़ा, जी मिचलाना तथा वमन भी हो सकती है । यह परिधिगत सूक्ष्म धमनियों (आर्टीरियोल) का प्रसार करता है ।
इस तत्त्व की हीनता से पैलाग्रा नामक रोग उत्पन्न होता है । यह शब्द इटालियन है जिसका शब्दार्थ है ‘त्वचा का खुरदरापन’ अर्थात् स्किनरफ हो जाना । पूर्वी उत्तरप्रदेश के किसानों जहाँ पर मक्का का भोजन अधिक किया जाता है, वहाँ पर यह रोग अधिक फैलता है । यह रोग प्राय: ग्रामीणों एवं निर्धनों को अधिक होता है । शरीर में क्षीणता, पाचन के विकार और मानसिक क्षीणता होने लगती है । त्वचा का खुरदरापन होना पैलाग्रा रोग का सबसे प्रधान लक्षण है । इस रोग में तो इस तत्त्व को काम में लिया ही जाता है साथ ही रक्त-नलिकाओं के प्रसार के लिए दमा, डायबिटीज, न्यूरेलजिया और उग्र तथा दीर्घ कालिक रोगावस्थाओं में भी इसका प्रयोग लाभकारी है ।
इस तत्त्व की दैनिक न्यूनतम आवश्यकता 10 मिलीग्राम प्रतिदिन है। वैसे औसतन 20 मिलीग्राम प्रतिदिन प्रयोग किया जाना चाहिए । रोग निवारणार्थ इसे 45 से 240 मिलीग्राम तथा सामान्यत: 60 या 30 मिलीग्राम 3-4 बार प्रतिदिन देना उपकारी रहता है ।
नोट – इस विटामिन के अभाव जन्य रोगों में – चिकित्सार्थ निकोटिनिक एसिड के बदले में निकोटिनामाइड या निकोटिक एसिड प्रयोग में लाते हैं, क्योंकि निकोटिक एसिड के प्रयोग से शरीर में जलन, खुजली, त्वचा में दाह, माथे में चक्कर तथा यदा-कदा मूर्च्छा आदि अनेक कष्टदायक, लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं। परीक्षणों द्वारा ऐसा अनुभव प्राप्त किया गया हैं कि यदि विटामिन B3 + B6 + B2 का प्रयोग एक साथ किया जाये तो रोग तथा कष्ट दूर करने में आशातीत सफलता प्राप्त होती है।