मधु और मेह की संधि से मधुमेह शब्द बना है, जिसका भावार्थ है मधु के समान मूत्र विसर्जित होना। मूत्र में माधुर्य यानी शक्कर की मौजूदगी मधुमेह रोग का प्रमुख लक्षण है, किन्तु ऐसा हमेशा और हर एक अवस्था में नहीं होता। अत: ‘प्रायोमध्विवमेहति’ के अनुसार प्राय: मधु के अनुसार मूत्र होना शास्त्र में कहा गया है।
आयुर्वेद ने मधुमेह की गणना ‘प्रमेह’ के अंतर्गत की है। ‘प्रमेह’ शब्द का अर्थ अधिक मात्रा में विकृत मूत्र होना है। यही रोग आगे चलकर, यदि आहार-विहार में उचित सुधारन किया जाए, तो उपेक्षा करने से धीरे-धीरे मधुमेह रोग में बदल जाते हैं।
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में ‘मधुमेह’ का वर्णन ‘डायबिटीज’ नाम से मिलता है। डायबिटीज रोग के दो भेद बताए गए हैं –
1. डायबिटीज मेलीटस।
2. डायबिटीज इंसीपीडस।
डायबिटीज मेलीटस : पेशाब में तो शक्कर बिलकुल ही नहीं होनी चाहिए, लेकिन रक्त में 100 मिलि होनी चाहिए. रक्त में उपवास की स्थिति में 80 से 120 मिग्रा. मात्रा के बीच शक्कर हो, तब तो ठीक, अन्यथा इससे ज्यादा मात्रा में शक्कर हो, तो इसे ‘डायबिटीज मेलीटस’ कहेंगे। मधुमेह रोग होने पर पेशाब में भी शक्कर जाने लगती है और रक्त में भी इसकी मात्रा बढ़ जाती है।
शुगर के कारण
‘पेंक्रियाज’ (अग्नाशय) नामक अंग जब इन्सुलिन (मधुनिबूदिनी) नामक हारमोन बनाने में असफल होने लगता है, तब यह डायबिटीज नामक रोग उत्पन्न होता है। शरीर में शक्कर की मात्रा (उचित मात्रा) को कायम रखना और शरीर में इसका सदुपयोग होने की व्यवस्था बनाए रखना इन्सुलिन का काम होता है।
अग्नाशय नामक अंग की निष्क्रियता का कारण अभी भी अज्ञात है, लेकिन सम्भव है कि कुछ वंशानुगत प्रवृत्तियां डायबिटीज रोग को उत्पन्न करती हों।
• यदि यह रोग वंशानुगत कारणों से हो, तो किसी भी आयु में हो सकता है।
• अधिक दिमागी काम करने पर।
• चिंता व तनावग्रस्त रहने पर।
• शारीरिक परिश्रम या व्यायाम न करने पर।
• आरामतलब जीवन जीने की स्थिति में।
• ज्यादातर बैठे ही रहने वाले लोग।
• विलासी रहन-सहन।
• ज्यादा मात्रा में आहार करने।
• मीठे पदार्थों के अति सेवन एवं।
• चर्बी और मोटापा आदि कारणों से मधुमेह रोग की उत्पत्ति होती है।
मधुमेह के लक्षण
• त्वचा रूखी-सूखी होना,सिर में भारीपन दर्द
• प्यास का बढ़ना
• मूत्र की मात्रा और मूत्र-विसर्जन की संख्या बढ़ना
• भूख ज्यादा लगना
• मूत्र में शक्कर जाना
• शरीर कमजोर और दुबला होने लगना
• रात में पेशाब के लिए मजबूरन बार-बार उठना
• खून की जांच करवाने पर शर्करा की बढ़ी मात्रा आदि लक्षण इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं।
डायबिटीज इंसीपीडस : यह डायबिटीज रोग का दूसरा प्रकार है, जिसमें पेशाब की मात्रा बहुत बढ़ जाती है। पीयूष ग्रंथि के पश्चिमी खंड के स्राव में कमी होने पर यह रोग होता है। इस रोग में न तो मूत्र में शक्कर पाई जाती है और न रक्त में शक्कर की मात्रा बढ़ी हुई होती है। इसमें मूत्र का वर्ण (रंग) और सापेक्षिक घनत्व जल के समान ही हो जाता है। ‘प्रकर्षेण प्रभूत’ अर्थात् बार-बार भारी मात्रा में पेशाब आना इसका मुख्य लक्षण है। अत: इसे ‘बहुमूत्र’ रोग भी कहते हैं। पेशाब स्वच्छ जल जैसा होता है, गंदला व दुर्गंधवाला नहीं होती, न उसमें एल्युमिन पाया जाता है और न ही शक्कर पाई जाती है। इस रोग के रोगी को भूख व प्यास बहुत लगती है, कब्ज रहता है या पतले दस्त होते हैं, शरीर दुबला व कमजोर होता जाता है, त्वचा रूखी-सूखी हो जाती है, नींद कम हो जाती है, बेचैनी रहती है और मुंह बार-बार सूखता है। आयुर्वेद इसे ‘उदकमेह’ या ‘बहुमूत्र’ रोग कहता है।
इस रोग के होने का सर्वमान्य कारण पीयूष ग्रंथि की क्षति पहुंचना होता है, जो कि सिर में भारी आघात लगने, कोई शल्य क्रिया (आपरेशन) होने या रेडियो थरेपी (सेंक करना) आदि किसी कारण से पहुंची हो सकती है। किसी ट्यूमर (गांठ) के होने से पड़ने वाले दबाव के कारण भी ऐसी क्षति पहुंच सकती है या एन्सेफलाइटस (मस्तिष्क शोथ) या मेनिनजाइटिस (मस्तिष्क आवरण शोथ) होने के बाद भी कभी-कभी ऐसा हो जाता है।
मधुमेह के जटिलताएं
‘डायबिटीज मेलीटस’ में जब प्रारंभिक लक्षण खूब बलवान हो जाते हैं, तो प्रारंभिक लक्षणों के साथ ही अन्य लक्षण भी प्रकट होने लगते हैं। यथा, त्वचा रूखी-सूखी हो जाती है, कब्ज बनी रहती है, सिर में भारीपन एवं दर्द, भूख एवं प्यास की अधिकता, बार-बार पेशाब होना आदि ऐसा रोगी जिस जगह पर पेशाब करता है, वहां चीनी जैसा सफेद पदार्थ जम जाता है और वहां चींटें-चींटियां और मक्खियां बैठती हैं। जब रोग की अवस्था काफी बढ़ जाती है, तो भूख कम हो जाती है, शरीर कमजोर व दुबला होता जाता है। नेत्रज्योति घटने लगती है, किसी-किसी को पीठ में फोड़ा हो जाता है, रक्त में शक्कर बढ़ जाने से घाव भरने की प्राकृतिक शक्ति (हीलिंग पावर) नष्ट हो जाती है। अतः मधुमेह के रोगी को जरा-सा घाव हो जाए, तो वह भयंकर रूप धारण कर लेता है। कभी-कभी तो अत्यधिक शर्करा होने की स्थिति में अंगों में गलाव पड़ जाता है और अच्छा-खासा व्यक्ति काल का ग्रास बनने की स्थिति में पहुंच जाता है। साथ ही कई बार व्यक्ति अत्यधिक शर्करा की मात्रा रक्त में बन जाने के कारण अचेतन भी हो सकृता है। ऐसी परिस्थितियों में इलाज कर पाना अत्यंत जटिल हो जाता है।
शुगर की दवा
‘आर्सेनिक ब्रोमेट्रम’, ‘कोका’, ‘कोडीनम’, ‘सीजिजियम’, ‘फॉस्फोरस’, ‘इंसुलिन’, ‘यूरेनियम नाइट्रिकम’, ‘ओरम’, ‘हेलोबोरस’ आदि।
यूरेनियम नाइट्रिकम : अत्यधिक कमजोरी, वजन गिरते जाना, एब्डोमिनल केविटी में द्रव भरने की प्रवृत्ति, पेशाब बार-बार, पेरीटोनियलकेविटी में गैस वगैरह की वजह से अनियमित फैलाव, यूरेथ्रा (पेशाब के मार्ग) में जलन, रात में पेशाब निकलना, अत्यधिक भूख, उल्टी होना, पेट फूलना, चिड़चिड़ाहट आदि लक्षणों के आधार पर द्वितीय शक्ति एवं 6 शक्ति की दवा कारगर रहती है। दवा लगातार कुछ दिन खिलानी चाहिए। साथ ही, शक्कर का विशेष परहेज आवश्यक है।
सीजिजियम जेम्बोलेनम : यह ‘डायबिटीज मेलीटस’ की अत्यधिक उपयोगी दवा है। अन्य कोई भी दवा इतनी शीघ्रता से पेशाब में शर्करा को कम नहीं करतीi शरीर के ऊपरी हिस्से में खुजली, जलन एवं गमीं मालूम देना, अत्यधिक प्यास, कमजोरी, वजन गिरना, अत्यधिक मात्रा में पेशाब, सापेक्षिक घनत्व (पेशाब का) अधिक, त्वचा के पुराने घाव।
इंसुलिन : पेंक्रियाज से एकत्रित कोशिकाओं के स्राव (इंसुनिल) को होमियोपैथिक पद्धति से शक्तिकृत करके 3 × से लेकर 30 शक्ति तक में, कुछ समय में सेवन कराना अत्यन्त फायदेमंद रहता है।
लैक्टिक एसिड : सुबह के समय बुखार, जीभ सूखी हुई, प्यास अधिक, भूख अधिक, मुंह से बदबूदार लार एवं बदबू आना, उल्टी महसूस होना, अधिक मात्रा में बार-बार पेशाब आना, पीला-जर्द बदन, रक्ताल्पता, चुभने वाली गर्म डकारें, खाना खाने के बाद बेहतर महसूस करना, सिगरेट पीने के बाद अधिक कमजोरी महसूस करना आदि लक्षणों के आधार पर 3 से 30 शक्ति तक की दवा की 5 से 10 बूंदें आधा कप पानी में सुबह-शाम पिलाने से फायदा मिलता है।
कोडीनम : सारे शरीर में कंपन, हाथ-पैरों की मांसपेशियों की अनैच्छिक ऐंठन, खुजली, गर्मी, चेतनाशून्यता के साथ डायबिटीज होने पर अत्यधिक प्यास एवं कड़वे पदार्थों की खाने की इच्छा होने पर, मदरटिंचर (मूल अर्क) अथवा 3 x शक्ति की दवा कुछ दिन नियमित लेना लाभकारी है। इन सब दवाओं के साथ ही लक्षणों की समानता के आधार पर कांस्टीट्यूशनल (प्रकृतिजनित) दवा लेना श्रेयस्कर एवं शीघ्र और उचित लाभ प्रदान करने वाला हैं। जैसे फॉस्फोरस आदि।
इन सबके साथ ही निम्नमिश्रण नियमित रूप से कम-से-कम 20 दिन सेवन कराने पर चमत्कारिक असर प्राप्त किए हुए हैं। जामुन की गुठलियां, करेले के बीज, निबोली (नीम का फल), मूली के बीज, ये सूभी चीजें समान मात्रा में 5-5 ग्राम सुबह-शाम सादा पानी के साथ 21 दिन लेने पर अत्यंत फायदा मिलता है।
•शर्करा का प्रयोग बिलकुल बंद करना चाहिए
• आलू, शकरकंद, चुकंदर आदि का प्रयोग भी निषिद्ध है
• मूली, करेला, जामुन, नीम की निबोली खाना अत्यंत फायदेमंद होता है
•चालीस वर्ष की उम्र के पश्चात् नियमित रूप से हर छह माह बाद रक्त एवं पेशाब में शर्करा की जांच करवाते रहना चाहिए
• मोटापे से बचना चाहिए एवं हर उम्र में हल्के-फुल्के व्यायाम करते रहना चाहिए।
इससे हम सिर्फ डायबिटीज से ही नहीं बचते, वरन शरीर भी चुस्त-दुरुस्त बना रहता है। याद रखिए‘ इलाज से बचाव बेहतर है।’
बायोकेमिक औषधियां मधुमेह रोगियों के लिए
‘कैल्केरिया फॉस’ 3 x ,’फेरमफॉस’ 12 x, ‘कालीफॉस’ 3 x, ‘मैगफॉस’ 3 x, ‘नेट्रमफॉस’ 3 x, ‘नेट्रमसल्फ’ 3 x सारी औषधियों को बराबर-बराबर लेकर एक कप कुनकुने पानी में डालकर घोल लें इसके चार भाग करके सुबह-दोपहर-शाम व रात को सोने से पहले पी लिया करें दवा लेने के आधा घंटा पहले व बाद में कुछ खाएं-पिएं नहीं। पानी सिर्फ एक बार ही गर्म लेना है, बाद में गर्म करने की जरूरत नहीं।
कोई भी होमियोपैथिक औषधि लेने के आधा घंटा पहले व बाद में कुछ भी न खाना-पीना ही हितकर रहता है।
वसा खाने से बचे
बहुत ज्यादा सैचुरेटेड वसा खाने से दिल की बीमारी की आशंका बढ़ जाती है। और दिल की बीमारी कितनी खतरनाक है, यह तो आप जानते ही हैं। इससे बचने के लिए कुछ एहतियात बरतना बहुत जरूरी है जैसे बहुत ज्यादा वसा वाले मांस, तले-भुने भोज्य पदार्थ, आईसक्रीम, केक और मक्खन खाने से बचे खाना पकाने के लिए कम वसा वाले वनस्पति तेलों का प्रयोग करें। इसके विपरीत फाइटोएस्ट्रोजेंस से भरपूर भोजन कैंसर की आशंका को कम करता है। सोया उत्पाद, मटर, अनाज, सूखे मेवे, फल-सब्जियों और दालों में भी यह प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।