सोरिनम का होम्योपैथिक उपयोग
( Psorinum Homeopathic Medicine In Hindi )
लक्षण तथा मुख्य-रोग | लक्षणों में कमी |
संपूर्ण शरीर से अत्यंत बदबू आना; (क्रियोजोट में भी बू है) | गर्मी से रोगी को आराम |
त्वचा-सम्बन्धी अनेक प्रकार के रोगों की प्रकृति | गर्म पोशाक पहनने से आराम |
गर्म-मौसम में भी ठंड महसूस करना | सिर पर कपड़ा लपेटने से रोगी को आराम अनुभव करना |
शीत-प्रकृति का होते हुए भी एक्जिमा पर ठंडी हवा चाहता है | चुपचाप लेटे रहने से आराम |
दमे में लेटने तथा जिस्म से हाथ अलग फैला कर पड़ने में आराम | लक्षणों में वृद्धि |
रोग के आक्रमण के एक दिन पहले अत्यंत स्वस्थ अनुभव करना | ठंड, ठंडी हवा से वृद्धि |
गर्भपात के बाद कुछ-दिन थोड़ा-थोड़ा खून झरना | स्नान से रोग की वृद्धि |
पतला दस्त भी मुश्किल से निकलना | बिस्तर की गर्मी से वृद्धि |
बच्चे का दिन भर खेलना, रात भर रोना | प्रति-वर्ष रोग का अागमन |
सुनिर्वाचित-औषधि से भी जीवनी-शक्ति में प्रतिक्रिया का न होना; सल्फ़र से तुलना | त्वचा के रोग के दबने से वृद्धि |
(1) संपूर्ण शरीर से अत्यंत बदबू आना; (क्रियोजोट में भी बू है) – सोरिनम औषधि का सर्वप्रधान लक्षण इसकी बदबू है। सड़े मांस की-सी, या सड़े-अंडे की-सी रोगी से बदबू आती है। रोगी के प्रत्येक स्राव से-मल-मूत्र, कान की पस, प्रदर पसीना, माहवारी से ऐसी दुर्गन्ध आती है कि पास खड़ा नहीं रहा जाता। डॉ० टायलर ने ऐसे कुछ रोगियों का जिक्र किया है जिनसे इतनी दुर्गन्ध आती थी कि उनके पास से हट जाने पर उस दुर्गन्ध को भगाने के लिये चिकित्सक को ठंडी हवा लेने की आवश्यकता महसूस होती थी। ऐसे रोगियों को सोरिनम देने से उनका रोग तो ठीक होता ही है, उनकी दुर्गन्ध भी जाती रहती है। इस औषधि का निर्वाचन तभी किया जाना चाहिये जब रोगी में इस प्रकार की दुर्गन्ध आती हो। ऐसी दुर्गन्ध का लक्षण क्रियोजोट में भी है।
(2) त्वचा-सम्बन्धी अनेक प्रकार के रोगों की प्रकृति – स्नान न करना, रोगी की त्वचा, खासकर चेहरा गन्दा लगता है। रोगी की आकृति ऐसी प्रतीत होती है जैसे कब से उसने स्नान नहीं किया। वह स्नान करने से घबराता भी है, स्नान कम करता है, या नहीं भी करता। अपने को खूब धो भी ले तो भी वह गन्दा, मैला ही दिखाई पड़ता है। त्वचा खुरदरी होती है, कहीं से साफ कहीं से मैली, जगह-जगह फटी हुई। खुजली, छिलकेदार फुन्सियां, त्वचा में दराड़ें जिनमें से आसानी से खून निकलता है, खोपड़ी तथा चेहरे पर एक्जिमा, सिर पर पपड़ियां, बाल झड़ना आदि त्वचा के रोग इस औषधि की प्रकृति में हैं। रात को बिस्तर में रोगी खुजली से दीवाना हो जाता है। अगर रात को कपड़ा उतार फेंकता है तो सर्दी सताती है, अगर बदन पर कपड़ा ओढ़ लेता है तो खुजली सताती है।
(3) गर्म-मौसम में भी ठंड महसूस करना – रोगी इतनी ठंड महसूस करता है कि गर्म-मौसम में भी गर्म कपड़े पहने रहता है। आसमान में बादलों के आते ही मकान में घुस जाता है, बाहर की ठंडी हवा बर्दाश्त नहीं कर सकता। यद्यपि उसने पहले ही गर्म कपड़े पहने होते हैं, वह उनसे भी ज्यादा गर्म कपड़े ओढ़ लेता है। यह रोगी एक तरह का बैरोमीटर होता है। मौसम का उतराव चढ़ाव उसमें दिखाई पड़ता है।
(4) शीत-प्रकृति का होते हुए भी एक्जिमा पर ठंडी हवा चाहता है – यद्यपि सोरिनम का रोगी शीत-प्रकृति का है, सर्दी से घबराता है, तो भी जहां तक उसके एक्जिमा का संबंध है, वह उस पर ठंडक ही चाहता है, उस पर गर्म सेंक से उसे तकलीफ होती है। रात को एक्जिमा का कष्ट बढ़ जाता है। रोगी की त्वचा ठंड से बचती है परन्तु उसकी त्वचा का एक्जिमा ठंड चाहता है। हम पहले भी कई जगह लिख आये हैं कि रोगी के लक्षणों में और रोगी के अंगों के लक्षणों में विरोध हो सकता है, परन्तु इस विरोध के होते हुए भी औषधि का चुनाव रोगी के ‘व्यापक-लक्षणों (General) के आधार पर ही होगा, एकांगी (Particulars) के आधार पर नहीं। इस प्रकार का विरोध फॉसफ़ोरस और आर्सेनिक में भी पाया जाता है। फॉस शीत-प्रधान-औषधि है, परन्तु इसका रोगी पेट में ठंड ही पसन्द करता है, आइसक्रीम खाना चाहता है, सिर नंगा रखना चाहता है। इसी प्रकार आर्सेनिक भी शीत-प्रधान-है, परन्तु सारे जिस्म पर कम्बल ओढ़े हुए भी वह अपना सिर खिड़की की हवा के सामने रखना चाहता है। क्योंकि फॉस का रोगी आइसक्रीम चाहता है या आर्स अपना सिर ठंडी हवा में रखता है-इस ‘एकांगी’ (Particular) लक्षण को महत्व नहीं दिया जायेगा, इसके ‘व्यापक-लक्षणों (Generals) को ही ध्यान में रखा जायेगा, यह देखा जायेगा कि अपने स्वरूप में रोगी किस प्रकृति का है।
(5) दमे में लेटने तथा जिस्म से हाथ अलग फैला कर पड़ने में आराम – दमे का रोगी साधारण तौर पर बैठा रहने में चैन अनुभव करता है, परन्तु दमे में इस औषधि का विचित्र लक्षण यह है कि वह लेटने पर अपने रोग में आराम अनुभव करता है। इस विचित्र लक्षण पर सोरिनम देने से दमे को लाभ हो जाता है। इसके साथ इसका भी लक्षण है कि रोगी अपने अंगों को एक-दूसरे के संपर्क में लाना पसन्द नहीं करता, बिस्तर में ऐसे लेटता है जिससे हाथ जिस्म से न मिले रहे हों, बिस्तर पर अलग फैले रहें। हाथ को छाती पर रखकर नहीं सो सकता। लैकेसिस हाथ को पेट पर रखकर नहीं सो सकता, उसे बद-आरामी होती है।
(6) रोग के आक्रमण के एक दिन पहले अत्यंत स्वस्थ अनुभव करना – इसका एक विचित्र-लक्षण यह है कि जब भी किसी रोग का आक्रमण होता है, उससे एक दिन पहले रोगी अत्यंत स्वस्थ अनुभव करता है। इस प्रकार के विचित्र तथा अद्भुत लक्षण होम्योपैथी में महत्वपूर्ण समझे जाते हैं।
(7) गर्भपात के बाद कुछ-दिन थोड़ा-थोड़ा खून झरना – कभी-कभी ऐसा होता है कि गर्भपात के बाद जब प्लेसेंट-खेढ़ी भी निकल जाता है, तब भी थोड़े-थोड़े दिन बाद कुछ ताजा खून, चमकीला, लाल, थक्केदार झरा करता है, या कई दिन या हफ्तों थोड़ा-थोड़ा लाल खून रिसा करता है। जब भी यह स्त्री खड़ी होती है नये सिर से यह रक्त-स्राव होने लगता है, रोगिणी ठीक होने में नहीं आती। ऐसी दशा में दो ही औषधियां हैं जो इस रोग को ठीक करती है – एक है सोरिनम, दूसरी है सल्फर।
(8) पतला दस्त भी मुश्किल से निकलना – इस औषधि के इस लक्षण को भुलाया नहीं जा सकता। पतला दस्त तो आसानी से निकल जाना चाहिये। परन्तु इसमें पतला दस्त भी आसानी से नहीं निकलता। इस औषधि में पाखाने के लिये दौड़कर जल्दी बाथरूम जाने का सल्फर का लक्षण, पाखाने के समय पेट में हवा का एलो का लक्षण है, और पतले दस्त में भी कठिनाई से पाखाना निकलने का एलूमिना, चायना और नक्स मौस्केटा का लक्षण एक साथ पाया जाता है।
(9) बच्चे का दिन भर खेलना, रात भर रोना – बच्चा दिनभर खेलता है, रात भर रोता है। जेलापा में भी बच्चा दिन भर ठीक रहता है, रात भर परेशान रहता है। इस दृष्टि से सोरिनम तथा जेलापा एक समान हैं। लाइको इन दोनों के विपरीत दिन भर चिल्लाता है, रातभर सोता है।
(10) सुनिर्वाचित-औषधि से भी जीवनी-शक्ति में प्रतिक्रिया का न होना; सल्फ़र से तुलना – हनीमैन का कथन है कि अगर लक्षणों के आधार पर औषधि का चुनाव किया जाय, और फिर भी रोग पूर्णतया शान्त न हो, तो इसका यह अर्थ है कि रोगी के शरीर में कोई ऐसी ‘धातुगत-बाधा’ (Constitutional obstruction) है, जो उचित दवा के उपयोग से भी रोग को शान्त नहीं होने देती। इसलिये हनीमैन का कथन है कि अगर लक्षणानुसार दवा देने पर भी रोग जड़ से नहीं जाता या बार-बार उठ खड़ा होता है, तो इसका कारण सोरा-दोष है। इसका नाश करने के लिये सल्फर देना चाहिये। अगर सल्फर देने पर भी रोग जड़-मूल से नहीं जाता तब सोरिनम दिया जाना उचित है।
सोरिनम औषधि के विषय में अन्य ज्ञातव्य बातें
(i) गर्भावस्था में माता तथा बच्चे की दोष-नाशक है – जब माता गर्भवती होती है, तब उसकी शारीरिक-अवस्था होम्योपैथिक औषधि के प्रभाव के लिये इतनी उपर्युक्त हो जाती है कि उस समय उसके किसी भी रोग पर औषधि देने से उसके अपने तथा बच्चे के भावी-रोग जड़-मूल से जाते रहते हैं। इसलिये गर्भावस्था में किसी योग्य-चिकित्सक से होम्योपैथिक इलाज कराना भावी जीवन के लिये ठीक रहता है। सोरिक प्रकृति होने पर गर्भावस्था में सोरिनम 200 की मात्रा लेने से माता तथा शिशु के अनेक रोग दूर हो जाते हैं।
(ii) रजोधर्म के समय चेहरे पर फुन्सियां (Acne) – रजोधर्म के समय अगर युवती स्त्रियों के चेहरे पर फुन्सियां निकलें, तो इससे लाभ होता है। जो फुन्सियां हर जाड़े में प्रकट होती और गर्मी में चली जाती हैं उनमें भी यह फलप्रद है।
(iii) सुजाक जो न अच्छा हो, न दबे – ऐसे सुजाक में जो वर्षों से चल रहा हो, अच्छा होने में न आता हो, जिसमें ग्लीट का मवाद कपड़ों में लगता रहता हो, यह लाभ करता है।
(iv) हर सर्दी की ऋतु में खांसी – जिन लोगों को हर शीत-ऋतु में खांसी हो जाती है, या जिन्हें खुजली या एक्जिमा के दब जाने से खांसी आती रहती है, उनके लिये भी यह उपयोगी है। खखार का स्वाद नमकीन होता है।
(11) शक्ति तथा प्रकृति – सोरिनम 30, सोरिनम 200 ( औषधि ‘शीत’-प्रकृति के लिये है। )