हाई-ब्लड-प्रेशर के लक्षण – काम करने से अरुचि, नींद न आना, सिर की गुद्दी तथा खोपड़ी में दर्द, सिर में भारीपन का अनुभव, श्वास फूलना, नींद की झपकियाँ आते रहना, स्वभाव में चिड़चिड़ाहट, कभी-कभी नकसीर फूटना तथा हृदय-प्रदेश में दर्द होना, शारीरिक अंगों का सो जाना (सुन्नता), शारीरिक अवयवों में सुरसुराहट का अनुभव, दिल बैठता हुआ सा लगना, किसी न किसी हृदय-रोग का बने रहना तथा आलस्य आदि ।
हाई-ब्लड-प्रेशर में लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियाँ लाभ करती हैं :-
प्लम्बम 3, 30 – यह औषध हाई-ब्लड-प्रेशर में लाभ करती है । डॉ० डोनर के मतानुसार इस औषध को उच्च शक्ति में देना हितकर रहता है।
बैराइटा-म्यूर 6x – यह इस रोग की मुख्य औषध मानी जाती है । डॉ० ब्लैकवुड के मतानुसार किसी भी कारण से होने वाले हाई-ब्लड-प्रेशर में यह औषध लाभ करती है। रात को सोने के लिए बिस्तर पर लेटते समय भयंकर सिरदर्द होने के लक्षण में यह औषध बहुत हितकर है। वृद्ध लोगों की इस शिकायत में तो इसे रामबाण ही समझना चाहिए। यदि ‘संकोचन’ अधिक ऊँचा हो तथा ‘प्रसारण’ कम हो तो उस स्थिति में यह विशेष लाभ करती है । इसे 3, 6 अथवा 30 में से किसी भी शक्ति में अधिक समय तक प्रयोग में लाना चाहिए ।
लैकेसिस 1M – यह भी इस रोग की मुख्य औषध मानी जाती है । सोने के बाद तकलीफ का बढ़ जाना, तंग कपड़ा न पहन पाना अथवा गले में टाई अथवा कमर में कपड़ा कस कर न बाँध पाना-इन लक्षणों में इस औषध का प्रयोग करना चाहिए ।
पिकरिक-एसिड 6, 30 – यदि गुर्दे की बीमारी के कारण यह रोग हो तो इसका प्रयोग हितकर सिद्ध होता है ।
ग्लोनाइन 6, 30 – अँगुलियों के किनारे तक हृदय की धड़कन का अनुभव होना, सम्पूर्ण शरीर में नाड़ी के स्पन्दन की अनुभूति, रक्त के सिर में चढ़ने अथवा हृदय में जाने की अनुभूति, सिर की धमनियों का उभर आना, सूर्य की गर्मी से सिर में दर्द हो उठना, सीधे बैठने पर चक्कर आना तथा सिर-दर्द एवं हृदय में दर्द होना-इन लक्षणों वाले हाई-ब्लड-प्रेशर में यह औषध बहुत लाभ करती है।
विरेट्रम-विरिडि 6x – डॉ० रेमांड सीडल के मतानुसार ‘हृदय प्रसारण के दबाव को’ कम करने की यह उत्तम औषध है । डॉ० बोरिक के मतानुसार ‘सिस्टोलिक’ तथा ‘डायस्टोलिक’ – दोनों प्रकार के ब्लड-प्रेशर को यह औषध कम कर देती है ।
बेलाडोना 30 – यदि रोगी का चेहरा लाल तथा तमतमाया हुआ हो, आँखें बाहर को उभर आई हों, गले की नसों में तपकन हो, मुँह तथा गला सूख रहा हो, फिर भी रोगी पानी नहीं पीना चाहता हो, स्नायुओं में दर्द तेजी से आता और चला जाता हो एवं मन में उत्तेजना हो तो इन लक्षणों वाले हाई-ब्लड-प्रेशर में यह औषध हितकर सिद्ध होती है । इसे कई बार दुहराने की आवश्यकता पड़ती है ।
आरम-म्युरियेटिकम 2x, 3x – डॉ० बोरिक के मतानुसार यदि स्नायु-संस्थान के उत्तेजित अथवा अशान्त होने के कारण हाई-ब्लड-प्रेशर हो तो यह औषध लाभ करती है । थोड़ा-सा परिश्रम करने अथवा चढ़ाई पर चढ़ते समय छाती पर एकदम बोझ का सा अनुभव होने पर इसका प्रयोग करना चाहिए।
आरम-मेट 30 – हार्ड-ब्लड-प्रेशर में इसको भी लाभकर माना जाता है ।
एसिड-फॉस 1x, 30, 200 – स्नायु-संस्थान की कमजोरी के कारण होने वाले हाई अथवा लो – दोनों ही प्रकार के ब्लड-प्रेशर में यह औषध लाभ करती है ।
नेट्रम-म्यूर 200 – अधिक नमक खाने की इच्छा करने वाले, सदैव चिन्ताशील अथवा क्रोध को मन में दबाये रखने वाले लोगों के हाई-ब्लड-प्रेशर में यह औषध अत्युत्तम लाभ करती है।
जेल्सीमियम 1M – यदि किसी अशुभ समाचार को सुनने के कारण मानसिक आघात से ब्लड-प्रेशर ‘हाई’ हो जाय तथा सिर-दर्द, माथे में सुन्नता, भारीपन, सिर की गुद्दी में दर्द, आलस्य एवं तन्द्रालुता के लक्षण दिखाई दें तो इस औषध का प्रयोग हितकर रहेगा ।
आर्सेनिक-एल्बम 30 – हाई-ब्लड-प्रेशर के साथ अत्यधिक बेचैनी, साँस लेने में परेशानी, रात को बिस्तर पर लेटने से दम घुटना, सीढ़ियों पर चढ़ते समय श्वास-फूलना, आँखों का फूलना तथा पाँवों में सूजन होना – इन लक्षणों में लाभकर है।
क्रेटेगस Q – यह औषध धमनियों के कड़ेपन को दूर कर हाई-ब्लड-प्रेशर में लाभकर सिद्ध होती है। इसे 5 से 10 बूंद तक की मात्रा में हर 8 घण्टे बाद लगातार देते रहना चाहिए। इसे अधिक समय तक इस्तेमाल करना पड़ता है। यह औषध हृदय को बल देती है । जब इसका प्रभाव परिलक्षित हो, तब इसे देना बन्द कर देना चाहिए। यह औषध लो-ब्लड-प्रेशर में भी लाभ करती है ।