व्यापक-लक्षण तथा मुख्य-रोग
(1) स्थूल-काय स्त्रियां जिन्हें ऐमोनिया कार्ब सूंघने की आदत पड़ जाती है।
(2) दमेवाला श्वास-कष्ट; शीत-प्रधान रोगी दमे के कष्ट में भी ठंडी हवा चाहता है।
(3) कफ के कारण श्वास-कष्ट
(4) एन्फलुएनजा के बाद की बची खांसी
(5) ऐमोनिया कार्ब के स्राव तीखे और लगने वाले होते हैं
(6) रज-काल में जननांगों की भीतरी दुखन
(7) मासिक-धर्म जल्दी, बहुत अधिक खून, काला खून तथा खून के थक्के होना
(8) रजोधर्म होने से पहले दिन हैजे के-से दस्त
(9) प्रात:काल 3 बजे रोग का बढ़ना
(10) लैकेसिस तथा ऐमोनिया कार्ब का संबंध
लक्षणों में कमी
(i) दबाने से रोग में कमी
(ii) पेट पर लेटने से कमी
(iii) पीड़ा-ग्रस्त अंग की तरफ लेटने से रोग में कमी
लक्षणों में वृद्धि
(i) ठंड, नमी या बदली वाले दिन रोग का बढ़ना
(ii) खुली हवा से रोग बढ़ना
(iii) तीन चार बजे प्रात: बढ़ना
(iv) रजोधर्म के दिनों में बढ़ना
(v) स्नान से रोग का बढ़ना
(vi) सोने के बाद रोग बढ़ना
(1) स्थूल-काय स्त्रियां जिन्हें ऐमोनिया कार्ब सूंघने की आदत पड़ जाती हैं – एलोपैथ उन रोगियों को जिन्हें हृदय के रोग के कारण श्वास-कष्ट प्रतीत होता है, सूंघने के लिये क्रूड ऐमोनिया कार्ब दिया करते हैं। प्राय: स्त्रियां ऐमोनिया कार्ब की बोतल पास रखती हैं और श्वास-कष्ट में इसे सूधा करती हैं।
अत्यन्त कमजोरी, कठिन श्वास, ऐसा लगता है कि हृदय काम नहीं करेगा। रोगी हृदय की धड़कन से बिस्तर पर लेटा रहता है और जरा भी हिलने-जुलने में उसे सांस लेने में कष्ट होता है। अस्ल में उसे और कुछ नहीं, केवल कमजोरी होती है, किसी दवा से लाभ होता प्रतीत नहीं होता। औषधियों की प्रतिक्रिया होती नहीं दिखाई पड़ती। ऐसे रोगियों को प्राय: आराम करने को कहा जाता है। ऐसी एक रोगिणी जो कभी एक विशेषज्ञ के पास, कभी दूसरे विशेषज्ञ के पास टक्करें खाती रही। उसे शक्तिकृत ऐमोनिया कार्ब की एक मात्रा ने ही स्वस्थ कर दिया।
(2) दमेवाला श्वास-कष्ट, शीत-प्रधान रोगी दमे के कष्ट में भी ठंडी हवा चाहता हैं – इस रोगी के दमे का विलक्षण लक्षण यह है कि अगर कमरा गर्म हो तो भी इस शीत प्रधान रोगी का श्वास-कष्ट बढ़ जाता है, मालूम होता है गला घुटा जायगा, मानो हवा के अभाव में रोगी मर जायगा। वह शान्ति के लिये ठंडी हवा में जाता है। ध्यान रखने की बात यह है कि गर्म हवा में श्वास-कष्ट बढ़ जाता है, परन्तु रोगी अपनी प्रकृति से, शारीरिक अनुभूति से तो ठंड से डरता है, परन्तु दमे में गर्मी से डरता है। शरीर की शिकायतें, सिर-दर्द तो ठंड से कष्ट पाते हैं, परन्तु श्वास-कष्ट में रोगी ठंडी हवा से अपने को अच्छा अनुभव करता है।
(3) कफ के कारण श्वास-कष्ट – ऐमोनिया कार्ब औषधि में कफ के लक्षण बहुत पाये जाते हैं। छाती में और श्वास-प्रणालियों में कफ खड़कता है। इसी कफ के अटकने के कारण सांस लेने में भारीपन अनुभव होता है। छाती में इतना कफ भर जाता है कि निकलता ही नहीं। क्षय-रोग की अन्तिम अवस्था में जब फेफड़े कफ से भर जाते हैं, ऐमोनिया कार्ब औषधि कष्ट को कुछ कम कर देती है। छाती में कफ भर जाना स्टैनम की तरह का इसमें भी होता है। रोगी इतना कमजोर होता है कि जोर से खांस ही नहीं सकता, एन्टिम टार्ट की तरह कफ बाहर निकाल ही नहीं सकता। रोगी ठंड सहन नहीं कर सकता, ठंडी हवा में घूमना नहीं चाहता।
(4) इन्फ्लुएनजा के बाद बच रहने वाले खासी – डॉ० यूनान ने लिखा है कि उन्हें इन्फ्लुएनजा हो गया और उसके बाद जो बची हुई खांसी थी वह किसी दवा से ठीक नहीं हई। साधारण: ब्रायोनिया से उसे ठीक हो जाना चाहिये था, परन्तु वह भी काम नहीं करता था। कई रात उन्होंने बेचैनी से काटी। उसके बाद उन्होंने ऐमोनिया कार्ब 200 की एक मात्रा ली जिससे सब रोग एकदम शान्त हो गया। वे लिखते हैं कि इस अनुभव के बाद इन्फ्लुएनजा से बची हुई खांसी में वे सदा इस औषधि का प्रयोग करते और उन्हें सदा सफलता मिली।
(5) ऐमोनिया कार्ब के स्राव तीखे और लगने वाले होते हैं – ऐमोनिया कार्ब के सब प्रकार से स्राव तीखे होते हैं, लगने वाले, खाल को छील देने वाले। नाक से जो पानी बहता है उससे होंठ छिल जाते हैं, मुख का सेलाइवा होंठ को बीच में से काट डालता है, होंठों के दोनों सिर छिल जाते हैं, कटे-से हो जाते हैं। रोगी होठों की त्वचार को छीलता रहता है, वे सूखे रहते हैं, छिलकेदार। आंख के पानी से आखें जलती रहती हैं, मानो छिल रही हों। पाखाना भी त्वचा को लगता है। स्त्री के गुह्मांग भी दुखने लगते हैं, मानो पक रहे हों। यह भी वहां के स्राव के लगने के कारण होता है। अगर शरीर पर कोई घाव हो जाता है तो उसमें से भी लगने वाला स्राव बहता है। यह लगना, त्वचा को छील देना ऐमोनिया कार्ब औषधि के स्रावों की विशेषता है।
(6) रज:काल में जननांगों की आभ्यन्तरिक दुखन – स्त्री का संपूर्ण आभ्यन्तरिक जननांग दुखने लगता है, ऐसे लगता है जैसे जननांगों के भीतर गहरी दुखन है। यह दुखन बहुत गहरी होती है। इस दुखन का अभिप्राय सिर्फ स्पर्श-असहिष्णुता ही नहीं है, बिना स्पर्श के भी आन्तरिक-स्रावों से दुखन बनी रहती है। रज:काल में यह आभ्यन्तरिक दुखन बढ़ जाती है। जब तक रजोधर्म होता रहता हैं तब तक भीतर के जननांग दुखते रहते हैं।
(7) मासिक-धर्म जल्दी, बहुत अधिक खून, काला खून, खून के थक्के – यह तो हम लिख ही चुके हैं कि इस औषधि में लगने वाले प्रदर, जननांगों की दुखन, लगाने वाले स्राव से जननांगों की सूजन हो जाती है, साथ-साथ ही मासिक-धर्म बहुत जल्दी हो जाता है, समय से पहले, बहुत अधिक खून जाता है, खून का रंग काला होता है, खून के थक्के हो जाते हैं, और रुधिर की विशेषता यह है कि वह जमा नहीं, तरल ही रहता है।
(8) रजोधर्म होने से पहले दिन हैजे की तरह के दस्त – इसका विशेष लक्षण यह है कि रजोधर्म होने से पहले दिन हैंजे के-से दस्त आते हैं, ऋतुस्राव के दिनों में भी दस्त बने रहते हैं। साइलीशिया में ऋतु-स्राव से पहले और ऋतु-स्राव के दिनों में कब्ज रहती हैं।
(9) प्रात:काल 3 बजे रोग का बढ़ना – वृद्ध-पुरुष में प्रात:काल 3 बजे खांसी आती है, जोर की खांसी, खांसते-खांसते पसीना आ जाता है, साथ ही दम घुटता है।
(10) लैकेसिस तथा ऐमोनिया कार्ब का संबंध – लैकेसिस का प्रभाव बाई तरफ है, ऐमोनिया कार्ब का दाई तरफ। इस भेद के होने पर भी इन दोनों औषधियों का आपस में संबंध है। वह संबंध क्या है?
(क) दोनों औषधियों में काले खून का बहना पाया जाता है, खून जो जमता नहीं।
(ख) दोनों औषधियों में सोने के बाद लक्षणों का बढ़ना पाया जाता है।
ऐमोनिया कार्ब औषधि के अन्य लक्षण
(i) बालों का झड़ना इस का प्रधान लक्षण है।
(ii) नाख़ून पीले पड़ जाते हैं
(iii) प्रात:काल मुख धोते समय नकसीर बहने लगती है – यह विलक्षण लक्षण है।
(iv) स्नान के बाद त्वचा पर लाल धब्बे उभर आते हैं।
(v) स्नान के बाद त्वचा पर खून लहरें मारने लगता है, स्नान के बाद धड़कन होने लगती है।
(vi) हड्डियों में दर्द होता है, मानो वे टूट जायेंगी। दांतों में, जबड़ों में दर्द होता है।
(vii) घाव के गलित-घाव में बदल जाने की आशंका में यह लाभप्रद हैं।
(viii) रोगी का कमजोरी से हृदय डूबता दीखे, तब आर्सेनिक या ऐमोनिया कार्ब रोगी को बचा सकते हैं।
शक्ति तथा प्रकृति – 6, 30, 200 (यह दीर्घकालिक एनटीसोरिक दवा है। औषधि सर्द-Chilly – प्रकृति के लिये है)