लक्षण तथा मुख्य-रोग प्रकृति
(1) स्नायु, स्नायु-परिवेष्टन, कुरकुरी हड्डियों, पेशी-बन्धनों पर इसकी क्रिया है।
(2) विद्यार्थियों, विचारकों व्यापारियों की मानसिक थकावट
(3) (स्वर-लोप) गवैय्यों तथा भाषणकर्ताओं का गला बैठ जाना
(4) फेफड़े, गले, योनिद्वार, मूत्रद्वार, आँख से भूरे रंग का स्राव
(5) सोने पर बिजली के धक्के जैसे अनुभव से जाग उठना
(6) बहुमूत्र, खुश्क मुख, भरपेट भोजन के बाद फिर भूख, गिट्टों में सूजन
(7) नपुंसकता तथा स्वप्नदोष
लक्षणों में कमी
(i) सिर लपेटने से रोग में कमी
(ii) चलने-फिरने से, गति से रोग में कमी हो जाना
लक्षणों में वृद्धि
(i) बोलने से रोग में वृद्धि
(ii) मानसिक-श्रम से रोग में वृद्धि
(iii) दोपहर में रोग बढ़ना
(iv) ठण्ड तथा नमी से रोग बढ़ना
(1) स्नायु, स्नायु-परिवेष्ठन, कुरकुरी हड्डियों तथा मांसपेशी-बन्धनों पर इसकी क्रिया हैं – स्नायु जिस मार्ग से जाता है उस पर दर्द हुआ करता है। शरीर में अनेक स्थानों पर कुरकुरी हड्डियां हैं जिन्हें कार्टिलेज कहते हैं। इनमें दर्द होता है। जोड़ों की हडिड्यों में दर्द होना। जोड़ों की हड्डियों के गठिये में यह अर्जेन्टम मेटैलिकम दवा विशेष लाभप्रद हैं। कई रोगियों के नाक के भीतर की हड्डी कार्टिलेज बढ़ जाती है जिससे सांस लेने में कष्ट होता है। सर्जन इस हड्डी को काट देते हैं, परन्तु अर्जेन्टम मेटैलिकम से यह ठीक हो जाती है। जहां-जहां कार्टिलेज बहुत ज्यादा बढ़ गई हों। वहां-वहां अर्जेन्टम मेटैलिकम औषधि का प्रयोग होता हैं। कभी-कभी आंख की पलक ऐसी मोटी हो जाती हैं कि हड्डी सी बन जाती हैं। उस रोग में भी इस औषधि से लाभ होता है।
(2) विद्यार्थियों, विचारकों व्यापारियों की मानसिक थकावट – इस औषधि की विशेषता यह है कि इसका मन के उद्वेगों-प्रेम द्वेष आदि हृदय के भावों-पर प्रभाव नहीं पड़ता, परन्तु मानसिक-शक्तियों पर प्रभाव पड़ता है। उदाहरणार्थ, रोगी की स्मृति-शक्ति तथा विचार-शक्ति का ह्रास विशेष तौर पर पाया जाता है। विद्यार्थियों, विचारकों, बहुत पढ़ने-लिखने वालों, व्यापारियों आदि वर्ग जो हर समय दिमाग से काम लेते हैं – इनकी विचार शक्ति ऐसे स्तर पर आ गिरती हैं कि वे जरा-सा मानसिक-कार्य करते ही थक जाते हैं, उन्हें चक्कर आने लगता है। जवान आदमी जो चालीस वर्ष का है, मानसिक दृष्टि से इतना थका लगता है मानो साठ बरस का हो। चिंताग्रस्त, जल्दी भूल जाने वाले रोजगारी, विद्यार्थी, पढ़ने-लिखने वाले लोगों के लिये अर्जेन्टम मेटैलिकम उत्तम है।
(3) (स्वर-लोप ) गवय्यों तथा भाषणकर्ताओं का गला बैठ जाना – गले पर इस औषधि की विशेष क्रिया है। जब गला बैठ जाता हैं, बोलने से श्वास नलिका पकी-सी अनुभव होती है, बोलने या गाने से दर्द महसूस होता है, भाषणकर्ता बोल नहीं सकता, तब इस औषधि से विशेष लाभ होता है। अगर वह जोर से बोलने का प्रयत्न करे, या विद्यार्थी जोर से पढ़ने लगे, तो इस पके-से गले से खांसी आने लगती है। सेलेनियम तथा स्टैनम में भी यह लक्षण है।
(4) फेफड़े, गले, योनिद्वार, मूत्र-द्वार, आँख आदि से भूरे रंग का स्राव – अर्जेन्टम मेटैलिकम औषधि के लक्षणों में श्लैष्मिक-झिल्ली के स्थानों से जो स्राव निकलता हैं उसकी अपनी विशेषता है। वह गाढ़ा, चिकटनेवाला तथा भूरे रंग का होता है। छाती से, श्वास-प्रणालिका से, गले से भूरे रंग का कफ निकलता है, योनि-द्वार से, मूत्र-द्वार से भूरा श्लेष्मा तथा आंख से भूरी गीद निकलती है, यहाँ तक कि जख्मों से भी भूरे रंग का पस निकलता है। कभी-कभी अपवाद रूप से यह पीले रंग का भी हो सकता है। राजयक्ष्मा-रोग में या वंशानुगत राजयक्ष्मा में खांसने से भूरे रंग का कफ निकला करता है, बहुत ज्यादा खांसने से भीतर से कफ: छूटता है, बोलने, हसने या गर्म कमरे में यह कफ बढ़ जाता है। यह खुश्क कफ जो रोगी को बार-बार खांसने से परेशान कर देता हैं, जिसके पीछे यक्ष्मा की खांसी होती है, इस दवा से ठीक हो जाती है। छाती की यक्ष्मा की इस कमजोरी में स्टैनम भी उपयोगी है, परन्तु स्टैनम का थूक भूरा न होकर अंडे की सफेदी जैसा या पीला-हरा और मीठा होता है। अन्य बातों में स्टैनम की अर्जेन्टम मेटैलिकम से समानता है।
(5) सीने पर बिजली के धक्के जैसे अनुभव से जाग उठना – रोगी सोने के लिये जब लेटता है तब ऐसा अनुभव करता है कि उसे सिर से पांव तक बिजली का धक्का लगा है। एक बार, दो बार, कभी-कभी सारी रात इसी प्रकार के धक्के लगने के अनुभव से परेशानी में रात बीत जाती है। अंगों में फड़कन, ऐंठन होती है। अर्जेन्टम नाइट्रिकम में भी ऐसा है, परन्तु इस औषधि से भी अनेक रोगी इस लक्षण में ठीक हुए हैं।
(6) बहुमूत्र, खुश्क, मुख, भरपेट भोजन के बाद फिर भूख लगना, गिट्टों में सूजन – बहुमूत्र रोग में जब मुख खुश्क रहता हो, पेशाब बार-बार आता हों, भर पेट भोजन कर लेने के बाद भी रोगी फिर भूखा रहता हो और गिट्टों में सूजन हो तब अर्जेन्टम मेटैलिकम औषधि लाभदायक सिद्ध होती है।
(7) नपुंसकता तथा स्वप्नदोष – हस्त-मैथुन आदि से रोगी नपुंसक हो जाता है। हस्त-मैथुन के बाद प्रत्येक रात को स्वप्नदोष हो जाता है। इसमें यह दवा लाभ करती है।
(8) रोगी शीत-प्रधान होता हैं – रोगी सर्दी से बहुत डरता है। गर्म कपड़ा लपेटे रखता है। उसके दर्द गर्म सेक से आराम पाते हैं। सिर पर कपड़ा लपेटने से सिर-दर्द को आराम मिलता है।
अर्जेन्टम मेटैलिकम औषधि के अन्य लक्षण
(i) अर्जेन्टम मेटैलिकम औषधि का विशेष लक्षण यह है कि दोपहर को ठीक अपने समय पर शिकायतें शुरू होती हैं। दर्द होगा तो दोपहर को ठीक अपने समय, पर सिर-दर्द भी ऐसे ही दोपहर को ठीक अपने समय पर होता है।
(ii) अधसीसी-दर्द-सिर-दर्द सिर के आधे हिस्से में होता है, एक तरफ।
(iii) इसका एक विशेष लक्षण यह भी है कि पुरुषों में दायें पोते और स्त्रियों में बायें डिम्ब-कोश में कठोरता पायी जाती है।
(iv) सिर-दर्द धीरे-धीरे शुरू होता है, परन्तु जब अपने शिखर पर होता है तब यकायक एकदम समाप्त हो जाता है। सलफ्यूरिक ऐसिड का सिर-दर्द भी धीरे-धीरे शुरू होता और एकदम हट जाता है।
(v) मिर्गी का रोगी मिर्गी के दौर के उतरते ही जो निकट होते हैं उन्हें मारने लगता है।
शक्ति तथा प्रकृति – 6, 30, 200