व्यापक-लक्षण तथा मुख्य-रोग प्रकृति | लक्षणों में कमी |
जुकाम, खांसी, ज्वर आदि रोगों में ब्रायोनिया की गति, धीमी, एकोनाइट तथा बेलाडोना की जोरों से और एकाएक होती है। | दर्द वाली जगह को दबाने से रोग में कमी होना |
हरकत से रोगी की वृद्धि और विश्राम से रोग में कमी | ठडी हवा से आराम |
जिस तरफ दर्द हो उस तरफ लेटे रहने से आराम (जैसे, प्लुरिसी में) | आराम से रोग में कमी |
श्लैष्मिक-झिल्ली का खुश्क होना और इसलिये देर-देर में, बार-बार अधिक मात्रा में पानी पीना | गठिये में सूजन पर गर्म सेक से और हरकत से रोगी को आराम मिलना |
रजोधर्म बन्द होने पर नाक या मुँह से खून गिरना या ऐसा होने से सिर-दर्द होना | लक्षणों में वृद्धि |
सूर्योदय के साथ सिर-दर्द शुरू होना सूर्यास्त के साथ बन्द हो जाना | हरकत से रोग बढ़ जाना |
क्रोध आदि मानसिक-लक्षणों से रोग | खाने के बाद रोग में वृद्धि |
गठिये में गर्मी और हरकत से आराम | क्रोध से वृद्धि |
(1) जुकाम, खांसी, ज्वर आदि रोगों में ब्रायोनिया की गति धीमी, एकोनाइट तथा बेलाडोना की तेज, जोरों की, और एकाएक होती है – प्राय: लोग जुकाम, खांसी, ज्वर आदि रोगों में एकोनाइट या बेलाडोना दे देते है, और समझते हैं कि उन्होंने ठीक दवा दी। परन्तु चिकित्सक को समझना चाहिये कि जैसे रोग के आने और जाने की गति होती है, वैसे ही औषधि के लक्षणों में भी रोग के आने और जाने की गति होती है। इस गति को ध्यान में रखकर ही औषधि का निर्वाचन करना चाहिये, अन्यथा कुछ लक्षण दूर हो सकते हैं, रोग दूर नहीं हो सकता। उदाहरणार्थ, एकोनाइट का रोगी हिष्ट-पुष्ट होता है, ठंड में जाने से उसे बड़ी जोर का जुकाम, खांसी या बुखार चढ़ जाता है। शाम को सैर को निकला और आधी रात को ही तेज बुखार चढ़ गया। बेलाडोना में भी ऐसा ही पाया जाता है, परन्तु उसमें सिर-दर्द आदि मस्तिष्क के लक्षण विशेष होते हैं। ब्रायोनिया में ऐसा नहीं होता। रोगी ठंड खा गया, तो उसके लक्षण धीरे-धीरे प्रकट होंगे। पहले दिन कुछ छींके आयेंगी, दूसरे दिन नाक बहने लगेगा, तीसरे दिन बुखार चढ़ जायगा। बुखार, जैसे धीरे-धीरे आय वैसे धीरे-धीरे ही जायेगा। इसीलिये टाइफॉयड में एकोनाइट या बेलाडोना नहीं दिया जाता, उसके लक्षण ब्रायोनिया से मिलते हैं। औषधि देते हुए औषधि की गति और प्रकृति को समझ लेना जरूरी है। रोग के लक्षणों और औषधि की गति तथा प्रकृति के लक्षणों में साम्य होना जरूरी है, तभी औषधि लाभ करेगी। रोग दो तरह के हो सकते हैं-स्थायी तथा अस्थायी। स्थायी-रोग में स्थायी-प्रकृति की औषधि ही लाभ करेगी, अस्थायी-रोग में अस्थायी-प्रकृति की औषधि लाभ करेगी। एकोनाइट और बेलाडोना के रोग तेजी से और एकाएक आते हैं, और एकाएक ही चले जाते हैं। ऐसे रोगों में ही ये दवायें लाभप्रद हैं। ब्रायोनिया, पल्सेटिला के रोग शनै: शनै: आते हैं, और कुछ दिन टिकते हैं। इसलिये शनै: शनै: आनेवाले और कुछ दिन टिकने वाले रोगों में इन दवाओं की तरफ ध्यान जाना चाहिये। थूजा, साइलीशिया, सल्फर आदि के रोग स्थायी-प्रकृति के होते हैं, अत: चिर-स्थायी रोगों के इलाज के लिये इन औषधियों का प्रयोग करना चाहिये। इसीलिये जब रोग बार-बार अच्छा हो-हो कर लौटता है तब समझना चाहिये कि यह स्थायी-रोग है, तब एकोनाइट से लाभ नहीं होगा, तब सल्फर आदि देना होगा क्योंकि एकोनाइट की प्रकृति ‘अस्थायी’ (Acute) है, और सल्फर की प्रकृति ‘स्थायी’ (Chronic) है।
(2) हरकत से रोग की वृद्धि और विश्राम से कमी – दर्द होने पर हरकत से रोग बढ़ेगा इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है, परन्तु हरकत से रोग बढ़ने का गूढ़ अर्थ है। अगर रोगी लेटा हुआ है, तो आंख खोलने या आवाज सुनने तक से रोगी कष्ट अनुभव करता है। डॉ० मुकर्जी ने अपने ‘मैटीरिया मैडिका’ में स्वर्गीय डॉ० नाग का उल्लेख करते हुए लिखा है कि उन्होंने हैजे के एक रोगी को यह देखकर कि आंखें खोलने से ही उसे पाखाना होता था, ब्रायोनिया देकर ठीक कर दिया। वात-रोग, गठिया, सूजन, गिर जाने से दर्द आदि में हरकत से रोग की वृद्धि होने पर ब्रायोनिया लाभ करता है। इस प्रकार के कष्ट में आर्निका से लाभ न होने पर ब्रायोनिया से लाभ हो जाता है। ब्रायोनिया में हरकत से रोग की वृद्धि होती है-इस लक्षण को खूब समझ लेना चाहिये। अगर किसी व्यक्ति को ठंड लग गई है, रोग धीरे-धीरे बढ़ने लगा है, एक दिन छीकें, दूसरे दिन शरीर में पीड़ा तीसरे दिन बुखार-इस प्रकार रोग धीरे-धीरे बढ़ने लगा है, और वह साथ ही यह भी अनुभव करने लगता है कि वह बिस्तर में आराम से, शान्तिपूर्वक पड़े रहना पसन्द करता है; न्यूमोनिया, प्लुरिसी का दर्द शुरू नहीं हुआ, परन्तु वह देखता है कि रोग की शुरूआत से पहले ही उसकी तबीयत आराम चाहती है, हिलने-डुलने से उसका रोग बढ़ता है; ऐसी हालत में ब्रायोनिया ही दवा है। दायें फफड़े के न्यूमोनिया में उक्त-लक्षण होने पर ब्रायोनिया और बांये फफड़े के न्यूमोनिया में उक्त-लक्षण होने पर एकोनाइट फायदा करता है।
यह तो ठीक है कि ब्रायोनिया में हरकत से रोग की वृद्धि होती है, परन्तु कभी-कभी ब्रायोनिया का रोगी दर्द से इतना परेशान हो जाता है कि चैन से लेट भी नहीं सकता। वह उठकर घूमना-फिरना नहीं चाहता, परन्तु दर्द इतना प्रबल होता है कि पड़े रहने में भी उसे चैन नहीं मिलता। शुरू-शुरू में वह चैन से पड़े रहना चाहता था, परन्तु अब तकलीफ़ इतनी बढ़ गई है कि न चाहते हुए भी इधर-उधर टहलने लगता है। इस हालत में चिकित्सक रस टॉक्स देने की सोच सकता है, परन्तु इस बेचैनी से टहलने में जिसमें रोग की शुरूआत में रोगी टहल नहीं सकता था, जिसमें अब भी दिल तो उसका आराम से लेटने को चाहता है, परन्तु दर्द लेटने नहीं देता, ऐसी हालत में हिलने-डुलने पर भी ब्रायोनिया ही दवा है। रोग का उपचार करते हुए रोग की समष्टि को ध्यान में रखना चाहिये, सामने जो लक्षण आ रहे हैं उनके पीछे छिपे लक्षणों को भी आँख से ओझल नहीं होने देना चाहिये।
हरकत से दस्त आना परन्तु रात को दस्त न होना – जब तक रोगी रात को लेटा रहता है दस्त नहीं आता, परन्तु सवेरे बिस्तर से हिलते ही उसे बाथरूम में दौड़ना पड़ता है। पेट फूला रहता है, दर्द होता है और टट्टी जाने की एकदम हाजत होती है। बड़ा भारी दस्त आता है, एक बार ही नहीं, कई बार आ जाता है, और जब रोगी टट्टी से निबट लेता है तब शक्तिहीन होकर मृत-समान पड़ा रहता है, थकावट से शरीर पर पसीना आ जाता है। अगर लेटे-लेटे जरा भी हरकत करे, तो फिर बाथरूम के लिये दौड़ना पड़ता है। जो दस्त दिन में कई बार आयें और रात को जब मनुष्य हरकत नही करता बन्द हो जायें, उन्हें यह दवा ठीक कर देती है। पैट्रोलियम में रोगी रात को कितनी भी हरकत क्यों न करे उसे दस्त नहीं होता, सिर्फ दिन की दस्त होता है, रात को नहीं होता; ब्रायोनिया में दिन को दस्त होता है, रात को जरा-सी भी हरकत करे तो दस्त की हाजत हो जाती है, अन्यथा रात को दस्त नहीं होता।
(3) जिस तरफ दर्द हो उस तरफ लेटे रहने से आराम (जैसे, प्लुरिसी) – यह लक्षण हरकत से रोग-वृद्धि के लक्षण का ही दूसरा रूप है। जिधर दर्द हो उधर का हिस्सा दबा रखने से वहां हरकत नहीं होती इसलिये दर्द की तरफ लेटे रहने से रोगी को आराम मिलता है। प्लुरिसी में जिधर दर्द हो उधर लेटने से आराम मिले तो ब्रायोनिया लाभ करेगा। प्लुरिसी में ब्रायोनिया इसलिये लाभ करता है क्योंकि फेफड़े के आवरण में जो शोथ हो जाती है, वह सांस लेते हुए जब साथ के आवरण को छूती है, तब इस छूने से दर्द होता है, परन्तु उस हिस्से को दबाये रखने से यह छूना बन्द हो जाता है, इसलिये कहते हैं कि ब्रायोनिया में जिस तरफ दर्द हो उस तरफ लेटने से आराम मिलता है। असल में, यह लक्षण ‘हरकत से रोग की वृद्धि’ – इस लक्षण का ही दूसरा रूप है। जब दर्द का हिस्सा दब जाता है तब हरकत बन्द हो जाती है।
डॉ० बर्नेट प्रसिद्ध होम्योपैथ हुए हैं। वे पहले एलोपैथ थे। उन्हें होम्योपैथ बनाने का श्रेय ब्रायोनिया की है। वे लिखते हैं कि बचपन में उन्हें बायीं तरफ प्लुरिसी हो गई थी जिससे नीरोग होने पर भी उन्हें फेफड़े में दर्द बना रहा। सभी तरह के इलाज कराये-एलोपैथी के, जल-चिकित्सा के, भिन्न-भिन्न प्रकार के फलाहार के, भोजन में अदला-बदली के, परन्तु किसी से रोग ठीक न हुआ। अन्त में यह देखने के लिये कि होम्योपैथ इसके विषय में क्या कहते हैं, वे होम्योपैथी पढ़ने लगे। पढ़ते-पढ़ते ब्रायोनिया में उन्हें अपने लक्षण मिलते दिखाई दिये। उन्होंने ब्रायोनिया खरीद कर उसका अपने ऊपर प्रयोग किया और जो कष्ट सालों से उन्हें परेशान कर रहा था, जो किसी प्रकार के इलाज से ठीक नहीं हो रहा था, वह 15 दिन में ब्रायोनिया से ठीक हो गया। यह अनेक कारणों में से एक कारण है जिसने उन्हें एलोपैथ से होम्योपैथ बना दिया।
(4) श्लैष्मिक-झिल्ली का खुश्क होना और इसलिये देर-देर में, बार-बार अधिक मात्रा में पानी पीना – खुश्की के कारण रोगी के होंठ सूख जाते हैं, खुश्की के कारण वे चिटक जाते हैं, खून तक निकलने लगता है। एरम ट्रिफि में हम देख आये हैं कि होठों और नाक की खुश्की इस कदर बढ़ जाती है कि रोगी उन्हें नोचता-नोचता खून तक निकाल देता है। नाक में अंगुली घुसेड़ता जाता है। ब्रायोनिया में इसी खुश्की के कारण उसे प्यास बहुत लगती है। देर-देर में पानी पीता है परन्तु अधिक मात्रा में पीता है। एकोनाइट में जल्दी-जल्दी, ज्यादा-ज्यादा; आर्सेनिक में जल्दी-जल्दी थोड़ा-थोड़ा; ब्रायोनिया में दिन-रात देर-देर में ज्यादा-ज्यादा ठंडा पानी पीता है। नक्स मौस्केटा और पल्स में प्यास नहीं रहती।
श्लैष्मिक-झिल्ली की खुश्की और कब्ज – श्लैष्मिक-झिल्ली की खुश्की का असर आंतों पर भी पड़ता है। रोगी को कब्ज रहती है। सूखा, सख्त, भुना हुआ-सा मल आता है। बहुत दिनों में टट्टी जाता है। सख्त मल को तर करने के लिये पेट में श्लेष्मा का नामोनिशान तक नहीं होता। अगर पेट में से म्यूकस निकलता भी है तो टट्टी से अलग, टट्टी खुश्क ही रहती है। भयंकर कब्ज को यह ठीक कर देता है।
श्लैष्मिक-झिल्ली की खुश्की और खुश्क खांसी – श्लैष्मिक-झिल्ली की शुष्कता का असर फफड़ों पर भी पड़ता है। खांसते-खांसते गला फटने-सा लगता है, परन्तु कफ भीतर से नहीं निकलता। ठंड से गरम कमरे में जाने से खांसी बढ़ने में ब्रायोनिया और गरम कमरे से ठंडे कमरे में जाने से खांसी बढ़े तो फॉसफोरस या रुमेक्स ठीक हैं। ब्रायोनिया की शिकायतें प्राय: नाक से शुरू होती हैं। पहले दिन छीकें, जुकाम, नाक से पानी बहना, आंखों से पानी, आंखों में और सिर में दर्द। इसके बाद अगले दिन शिकायत आगे बढ़ती है, तालु में गले में, श्वास प्रणालिका में तकलीफ बढ़ जाती है। अगर इस प्रक्रिया को रोक न दिया जाय, तो प्लुरिसी, न्यूमोनिया तक शिकायत पहुंच जाती है। इन सब शिकायतों में रोगी हरकत से दु:ख मानता है, आराम से पड़े रहना चाहता है। श्वास-प्रणालिका की शिकायतों-जुकाम, खांसी, गला बैठना, गायकों की आवाज का पड़ जाना, गले में टेटवे का दर्द आदि-में इस औषधि पर विचार करना चाहिये।
(5) रजोधर्म बन्द होने के बाद नाक या मुँह से खून गिरना या सिर-दर्द – यह ब्रायोनिया का विश्वसनीय लक्षण है। अगर रोगिणी नाक या मुँह से खून निकलने की शिकायत करे, तो उसे यह पूछ लेना चाहिये कि उसका रजोधर्म तो बन्द नहीं हो गया। मासिक बन्द होने से भी सिर-दर्द हो जाया करता है।
(6) सूर्योदय के साथ सिर-दर्द शुरू होना, सूर्यास्त के साथ बन्द हो जाना – कब्ज़ होने से भी सिर-दर्द शुरू हो जाता है। इस सिर-दर्द का लक्षण यह है कि यह सूर्योदय के साथ शुरू होता है, सूर्यास्त के साथ बन्द हो जाता है। इसके साथ ब्रायोनिया के अन्य लक्षण भी रह सकते हैं, यथा हिलने-डुलने से सिर-दर्द का
बढ़ना, आँख खुलते ही बढ़ना।
सिर-दर्द में ब्रायोनिया और बेलाडोना की तुलना – सूर्योदय के साथ संबंध न होने पर भी ब्रायोनिया में सिर-दर्द हो सकता है। प्रत्येक अस्थायी-रोग में सिर-दर्द उसके साथ जुड़ा ही रहता है। इतना सिर-दर्द होता है कि सिर को दबाने से ही आराम आता है। ब्रायोनिया के सिर-दर्द में रोगी को गर्मी सहन नहीं होती। हरकत से सिर-दर्द बढ़ता है, आँख झपकने तक से सिर में पीड़ा होती है। इस सिर-दर्द का कारण सिर में रक्त-संचय है। बेलाडोना में भी सिर में रक्त-संचय के कारण सिर-दर्द होता है, परन्तु दोनों में अन्तर यह है कि बेलाडोना का सिर-दर्द आधी-तूफान की तरह आता है, यकायक आता है, ब्रायोनिया का सिर-दर्द धीरे-धीरे आता है, उसकी चाल मध्यम और धीमी होती है। दोनों औषधियों की यह प्रकृति है – एकदम आना बेलाडोना की, और धीमे-धीमे आना ब्रायोनिया की प्रकृति है।
(7) क्रोध आदि मानसिक-लक्षणों से रोग की उत्पत्ति – ब्रायोनिया में अनेक मानसिक-लक्षण हैं। बच्चा क्रोध करता है और जो वस्तु मिल नहीं सकती उसे फौरन चाहता है और दिये जाने पर उसे परे फेंक देता है; तरह-तरह की चीजों के लिये जिद करता और दे दी जायें तो लेने से इन्कार करता है; घर में होने पर भी कहता है-घर में जाऊंगा, उसे ऐसा गलता है कि वह घर में नहीं है। बड़ा आदमी अपने रोजगार की बातें अंटसंट बका करता है। ये लक्षण मानसिक रोग में, डिलीरियम आदि में प्रकट होते हैं। क्रोध से उत्पन्न मानसिक-लक्षणों में स्टैफ़िसैग्रिया भी उपयोगी है। अगर रोगी कहे: डाक्टर, अगर मेरा किसी से झगड़ा हो जाय, तो मैं इतना उत्तेजित हो जाता हूँ कि सिर-दर्द होने लगता है, नींद नहीं आती, तो ऐसे रोगी को स्टैफिसैग्रिया ठीक कर देगा।
(8) गठिये के रोग में गर्मी और हरकत से आराम – ब्रायोनिया का उपयोग गठिये में भी होता है। ब्रायोनिया का रोगी ठंडी हवा पसन्द करता है, ठंडा कपड़ा ओढ़ना चाहता है, परन्तु गठिये के दर्द में अपनी प्रकृति के विरुद्ध उसे गर्मी से आराम मिलता है। इसके अतिरिक्त यह भी ध्यान रखना चाहिये कि यद्यपि ब्रायोनिया में रोगी आराम से लेटे रहना चाहता है, तो भी गठिये के रोग में वह चलने-फिरने से ही ठीक रहता है क्योंकि इस प्रकार उसके दुखते अंगों को गति से गर्मी मिलती है। इस प्रकार हम देखते हैं कि ब्रायोनिया में परस्पर-विरुद्ध प्रकृतियां काम कर रही हैं। वह प्रकृति से ऊष्णता-प्रधान है परन्तु गठिये में उसे गर्मी पसन्द है, यह होते हुए भी उसकी आधारभूत प्रकृति ऊष्णता-प्रधान ही रहती है। गठिया ठीक होने पर आँख में दर्द-अगर यह देखा जाय कि जिस अंग में गठिये का दर्द था वह तो ठीक हो गया, परन्तु आंख में दर्द शुरू हो गया, आंख लाल हो गई, सूज गई, उसमें से रुधिर आने लगा, तब ब्रायोनिया से यह ठीक होगा।
ब्रायोनिया औषधि के अन्य लक्षण
(i) नौ बजे रोग की वृद्धि – ब्रायोनिया के ज्वर के लक्षण 9 बजे शाम को बढ़ जाते हैं। 9 बजे ज्वर आयेगा या सर्दी लगनी शुरू हो जायगी। कैमोमिला के लक्षण 9 बजे प्रात: बढ़ जाते हैं।
(ii) रोगी खुली हवा चाहता है – ब्रायोनिया का रोगी एपिस और पल्स की तरह दरवाजे-खिड़कियां खुली रखना पसन्द करता है। बन्द कमरा उसे घुटा-घुटा लगता है। बन्द कमरे में उसकी तकलीफें बढ़ जाती है। खुली हवा उसे रुचती है।
(iii) खाने के बाद रोग वृद्धि – खाने के बाद रोग बढ़ जाना इसका व्यापक लक्षण है। रोगी कहता है कि खाना खाने के बाद तबीयत गिर जाती है।
(iv) दांत के दर्द में दबाने और ठंडे पानी से लाभ – दांत के दर्द में मुँह में ठंडे पानी से लाभ होता है क्योंकि ब्रायोनिया ठंड पसन्द करने वाली दवा है। जिधर दर्द हो उधर लेटने पर दर्द वाली जगह को दबाने से आराम मिलता है। यह भी ब्रायोनिया का चरित्रगत-लक्षण है। होम्योपैथी में रोग तथा औषधि की प्रकृति को जान कर उनका मिलान करने से ही ठीक औषधि का निर्वाचन हो सकता है। ठंडे पानी से और दर्द वाले दांत को दबाने से रोग बढ़ना चाहिये था, परन्तु क्योंकि ब्रायोनिया में ठंड से और दर्द वाली जगह को दबाने से आराम होना इसका ‘व्यापक-लक्षण’ (General symptom) है, इसलिये ऐसी शिकायत में ब्रायोनिया से लाभ होता है।
(v) गर्म-शरीर में शीत से रोग में वृद्धि – शरीर गर्म हो जाने पर ठंडा पानी पीने, या उसमें स्नान से रोग बढ़ जाता है। यद्यपि ब्रायोनिया के रोगी को ठंड पसन्द है, ठंडा पानी उसे रुचता है, परन्तु अगर वह गर्मी से आ रहा है, शरीर गर्म हो रहा है, तब ठंडा पानी पीने या ठंडे स्नान से उसे गठिये का दर्द बढ़ जायगा। अगर उसे खांसी होगी या सिर-दर्द होता होगा, वह बढ़ जायगा, या हो जायगा। शरीर के गर्म रहने पर ठडा पानी पीने से जोर का सिर-दर्द हो जायगा। ब्रायोनिया की तरह रस टॉक्स में भी शरीर हो, तो ठडे जल से सिर-दर्द आदि तकलीफ भयंकर रूप धारण कर लेंगी। अगर शरीर की गर्मी की हालत में ठंडा पानी पी लिया जायगा, तो पेट की भी शिकायत पैदा हो सकती है जिसमें ब्रायोनिया लाभ करेगा।
शक्ति तथा प्रकृति – 6, 30, 200 (औषधि ‘गर्म’-Hot-प्रकृति को लिये है)