श्वासनली और वायु-नली, जो फेफड़ों को जाती हैं, के प्रदाह का नाम ही ब्रोंकाइटिस है । इसमें इन नलियों के चारों ओर कफ जकड़कर बैठ जाता है। पहले सूखी खाँसी आती है जो बाद में तर हो जाती है जिसके साथ पीला कफ आता है । जीभ पर मैल की परत जम जाती है, गले में घरघराहट होती है, साँस लेने में कष्ट होता है। ठण्डा पसीना, बुखार, आलस्य, सिरदर्द आदि लक्षण भी प्रकट होते हैं । यह रोग मूलतः ठण्ड लग जाने के कारण होता है। साथ ही, फ्लू, खसरा, चेचक, टाइफाइड, डिफ्थीरिया आदि के साथ भी हो सकता है ।
बैलसमम पेरुवियेनम 1x,2x- ब्रोंकाइटिस में मवादी गाढ़ा कफ निकलने की उत्तम दवा है । छाती में घरघराहट, बुखार, रात को पसीना आना आदि में लाभप्रद है । पुराने ब्रोंकाइटिस में विशेष लाभकारी है ।
स्टैनम मेट 30, 200– हँसने-रोने से खाँसी आये, शाम से आधी रात तक तेज खाँसी, दिन में हरी आभा का कफ निकले, छाती में तेज दर्द, छाती में बाँयी ओर सुई चुभने जैसा दर्द जिससे रोगी बाँई करवट सी भी न सके, रोगी कमजोर यहाँ तक कि बोल भी न पाये ती देनी चाहिये ।
फॉस्फोरस 30, 200– स्वरयंत्र में भयानक दर्द, रोगी को काम करने में तकलीफ हो, छाती गरम मालूम हो, श्वास लेने में कष्ट हो, खाँसी की धमक से शरीर कॉप जायें, सोने में सॉय-सॉय की आवाज आये तो देवें ।
एण्टिम टार्ट 3x, 30- गले में खरखराहट की आवाज, खाँसते-खाँसते निस्तब्ध पड़ा रहे, छाती में सुई चुभने जैसा दर्द आदि लक्षणों में दें । ।
सैगुनेरिया केन 30, 200– ब्रोंकाइटिस के साथ सूखी खाँसी, छाती में रहना चाहे ती देनी चाहिये । ब्रोंकाइटिस रोग में खाँसी में बताई गई प्रत्येक दवा लक्षणानुसार प्रयोग की जा सकती है ।