व्यापक-लक्षण तथा मुख्य-रोग
(1) नमीदार या बरसाती मौसम में ठंड लगने के कारण रोग – डलकेमारा में ‘प्रकृति’ (Modality) ही औषधि-निर्वाचन का मुख्य साधन है। बरसाती मौसम में यकायक ठंड लग जाने से जुकाम, खांसी, चर्म-रोग, वात-रोग, ज्वर, दमा – कोई भी रोग हो जाय, तो इस औषधि से लाभ होता है। इसका सबसे बड़ा लक्षण है ‘नमीदार हवा से ठड लगना‘। नमीदार हवा से ठड लगने पर दस्त आने लगे, नमीदार हवा से ठंड लगने पर पेशाब की तकलीफ हो जाय, नमीदार हवा से ठंड लगने पर नाक, गले, छाती त्वचा-कहीं भी कोई शिकायत हो जाय, तो डलकेमारा ही औषधि है। नम, बरसाती हवा से रोग की वृद्धि में रस टॉक्स, कॉस्टिकम तथा नैट्रम सल्फ़ की तरफ भी ध्यान जाना चाहिये।
(2) डलकेमारा तथा एकोनाइट में भेद – इन दोनों दवाओं में ठंड लगने से रोग होता है, परन्तु इनमें भेद यह है कि डलकेमारा में तर, नमीदार, बरसाती ठंडी हवा से रोग उत्पन्न होता है, एकोनाइट में सूखी ठंडी हवा के लगने से रोग-जुकाम, खांसी, दस्त आदि होता है। एकोनाइट तो ठंडी ऋतु आ जाने पर रोग के लिये लाभप्रद है, डलकेमारा ऋतु-परिवर्तन में लाभप्रद है – गर्मी के दिन और ठंडी रातें, गर्म-सर्द हो जाने वाले रोग में लाभप्रद है।
(3) गर्मी के बाद बरसात आने पर उत्पन्न होने वाले रोग – गर्मी की मौसम में शरीर गर्म होता है, उसके बाद बरसात आ जाती है। जब गर्म हवा यकायक तर हो जाती है, तब उस तरावट में ठंड भी रहती है। उस ठंडक से कोई भी रोग क्यों न हो – जुकाम, खांसी, अंगों में दर्द ज्वर-वह डलकेमारा से ठीक हो जायेगा।
(4) पानी से भींग जाने से पैदा होने वाले रोग – बरसात में भीग जाने से, बरसाती ठंडी हवा के लगने से गर्दन अकड़ जाय, जबड़ा टेढ़ा हो जाय, पीठ में दर्द हो जाय, बरसाती हवा से दमा उठ खड़ा हो, तो इसे स्मरण करना चाहिये।
(5) पसीना आते हुए ठंड लग जाना – पसीना आ रहा हो और व्यक्ति ठंड में चला जाय, तब भी लगभग वैसी ही स्थिति उत्पन्न हो जाती है जैसी बरसाती ठंड लगने से होती है। ऐसी अवसथा के रोगों में भी डलकेमारा लाभ करता है। बीमारी का कुछ भी नाम क्यों न हो, अगर गर्मी के बाद नमीदार ठंड से रोग पैदा हो – जोड़ों में दर्द, गर्दन अकड़ जाना, पीठ का दर्द, अंगों का पक्षाघात, गला पड़ना – इन सब में इसी औषधि से उपचार करना उचित है। रस टॉक्स में भी गर्म-सर्द होने से ये लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं।
(6) गर्मी-सर्द हो जाने से होने वाले रोगों के उदाहरण – ऊपर जो कुछ कहा गया है उसका अधारभूत सिद्धान्त यह है कि शरीर गर्म हो और उसे नमीदार ठंड लग जाय तो रोग हो जाता है, और उस अवस्था में डलकेमारा लाभ करता है। इस बात को और अधिक स्पष्ट करने के लिये इस रोग की अवस्थाओं के हम कुछ दृष्टांत दे रहे हैं –
(i) गर्मी के दिनों में पहाड़ पर गर्म-सर्द हो जाने से रोग – जब गर्मी के मौसम में हम पहाड़ों पर जाते हैं, तब क्योंकि दिन में सूर्य का ताप तीव्र होता है, हम बच्चे को घुमाने के लिये बाहर नहीं ले जाते। शाम को सैर के लिये निकलते हैं, जब ठंडी हवा का झोंका हड्डियों तक को कंपा देता है। यह डलकेमारा की ठंड है। दिन को गर्मी के कारण हम बच्चे को बाहर नहीं ले गये, वह मकान में रहा, उसका शरीर गर्म हो गया, अब शाम को बाहर ले गये और ठंडी बरसाती हवा का झोंका खाकर वह बीमार पड़ गया। ऐसी अवस्थाओं से उत्पन्न होने वाले रोगों के लिये इस औषधि का प्रयोग करना उचित है। इसी प्रकार युवा-व्यक्ति जब गर्म कोट पहने हुए गर्मी अनुभव करता है, और ठंडक में एकदम कोट उतार देता है, तब उसे खांसी-जुकाम पकड़ लेता है। गर्म हो और यकायक सर्दी खा जाय तब डलकेमारा औषधि है।
(ii) बर्फ में काम करने वालों या धोबियों के गर्म-सर्द हो जाने से रोग – इस प्रकार जो लोग अपने निजी व्यापार के लिये बर्फ को इधर-उधर ले जाते हैं, कभी बर्फीले कमरे में जाते हैं, कभी उससे बाहर आते हैं, या धोबी लोग जो हर समय ठंडे पानी में खड़े रहते हैं, उन्हें अपने निजी काम-धंधे के कारण ऐसी परिस्थिति में रहना होता है जिस में गर्म-सर्द होने की हर समय संभावना बनी रहती है, धोबी तो कपड़े पीटता-पीटता गर्म भी हो जाता है, ठंडे पानी में खड़ा-खड़ा ठंडा भी हो जाता है, यह स्थिति डलकेमारा के रोगों के लिये अत्यन्त अनुकूल है। इस प्रकार के जीवन से अगर खांसी जुकाम हो जाय, जोड़ों में दर्द हो जाय, गठिये का आक्रमण हो जाय, तो यह औषधि उपयुक्त है।
(iii) ग्रीष्मान्त में गर्म-सर्द हो जाने से डायरिया – गर्मी के दिन जब समाप्त होने लगते हैं, बरसात के दिन आने लगते हैं, हवा में ठंडक आ जाती है, दिन गर्म और रातें ठंडी होते है, तब बच्चों को प्राय: गर्म-सर्द हो जाने से डायरिया हो जाता है। इस डायरिया की यह सर्वोत्तम औषधि है। जब बच्चों को कभी किसी और कभी किसी रंग के दस्त आयें, दस्तों में अपच भोजन निकले, तब पल्सेटिला उत्तम है, परन्तु अगर इन दस्तों का कारण बच्चे का गर्म-सर्द हो जाना हो, तब डलकेमारा ही औषधि है।
(iv) बरसाती हवाओं के आने पर जुकाम-खांसी – गर्मी के बाद जब ठंडी रातें आने लगती हैं, बरसात की ठंडी हवाएं चलने लगती है, तब डलकेमारा की ‘धातुगत-अवस्थाएँ’ (Constitutional states) प्रकट होने लगती हैं और तब व्यक्ति के जुकाम-खांसी, जोड़ों में दर्द आदि धातुगत-लक्षण प्रकट हो जाते हैं जिनके लिये यह उत्तम औषधि है।
डलकेमारा, नक्स वोमिका और एलियम सीपा के जुकाम में भेद – जुकाम में डलकेमारा का जुकाम खुली, ठंडी हवा में बढ़ जाता है, गर्म हवा में, गर्म स्थान में उसे आराम मिलता है; नक्स का रोगी यद्यपि शीत-प्रधान होता है और गर्मी पसन्द करता है, परन्तु जुकाम में वह खुली, ठंडी हवा पसन्द करता है, बन्द कमरे में, रात को, गर्म बिस्तर में उसकी तकलीफ बढ़ जाती है। डलकेमारा का रोगी अगर ठंडे कमरे में जायगा, तो उसे नाक की हड्डी में दर्द शुरू हो जाएगा, छींकें आने लगेंगी और नाक से पानी बहने लगेगा; सीपा भी नक्स की तरह है, ये दोनों बन्द कमरें में लगते हैं। इस दृष्टि से जहां तक जुकाम का संबंध है, डलकेमारा से नक्स और सीपा – इन दोनों के लक्षण विरुद्ध हैं।
(v) बरसाती हवा से एक्जिमा, चित्त उछलना – बरसाती ठंड लगने से अगर चर्म-रोग हो जाय, एक्जिमा बहने लगे, पित्त उछल आये, तो डलकेमारा उपयोगी है।
(vi) बरसाती हवा से गठिया – बरसात की ठंडी हवा से गठिये का रोग हो जाय या उभर आये, तो इस औषधि की तरफ ध्यान जाना चाहिये।
(vii) सीलन से बुखार आ जाना – कई बार सीलन वाले कमरे में सोने से भी खांसी, जुकाम, ज्वर आदि आ जाता है। गीले बिछौने में सोने से भी रोग धर पकड़ता है। इन सब अवस्थाओं में डलकेमारा उपयोगी है। सीलन की असर बरसाती हवा सरीखा ही तो है।
(viii) बरसाती हवा से सिर-दर्द, आंख आ जाना, मूत्राशय का शोथ, कमर-दर्द – ठंडी नम हवा में सिर-दर्द, पसीना आते-आते कपड़े उतार फेंकने से ठंड लग जाने के कारण सिर-दर्द, जुकाम होना या आंख आ जाना, मूत्राशय में बरसाती ठंड का बैठ जाना, बरसात में कमर-दर्द हो जाना – ये सब डलकेमारा से ठीक हो जाते हैं। चिकित्सक के लिये ध्यान रखने की बात यह है कि रोग की उत्पत्ति किस प्रकार हुई है। अगर गर्म हालत से ठंड लगने के कारण रोग उत्पन्न हुआ है तब डलकेमारा से ठीक हो जायगा।
डलकेमारा औषधि के अन्य लक्षण
(i) सिर का दाद – सिर के बालों में दाद को यह ठीक करता है।
(ii) घुटने के नीचे की टांग की हड्डी का दर्द – रात को घुटने के नीचे की टांग की हड्डी में दर्द को यह दूर कर देता है। दर्द के कारण रोगी रात को उठकर टहलने लगता है, उसे दर्द इतना सताता है कि वह चैन से लेट नहीं सकता। यह दर्द आतशक का दर्द नहीं होता। आतशक के हड्डी के दर्द में ऑरम तथा ऐसाफेटिडा की तरफ ध्यान जाना चाहिये।
(iii) ठंड लगते ही पेशाब को जाना इससे ठीक हो जाता है।
(iv) ठंडी जगह पर जाते ही पाखाना आ जाने में यह लाभकारी है।
(v) त्वचा के फोड़े-फुन्सी – त्वचा पर भिन्न-भिन्न प्रकार के फोड़े-फुन्सी हो जाते हैं। सूखे, गीले, दानेदार, पसदार, एक्जिमा – ये सब सिर पर, गालों पर, शरीर के किसी भी भाग पर हो जाते हैं। सिर पर दूधिया पपड़ी जमने की यह प्रभावशाली दवा है। अगर नमीदार सर्दी से दाने छिप जायें और कोई कष्ट उठ खड़ा हो, तो इससे लाभ होता है। ऐसे फोड़े जो बढ़ते जाते और परिमाण में फैलते जाते हैं। परन्तु ठीक होने में नहीं आते बढ़ते-बढ़ते जिनमें से पीली मवाद निकलने लगती है और फोड़े के ठीक होने के आसार दीखने में नहीं आते, फोड़ा बढ़ता ही जाता है, तब डलकेमारा तथा आर्सेनिक – इन दो में से किसी औषधि की तरफ़ ध्यान देना होगा।
(vi) सर्दी की खांसी – ऐसी खांसी जो गर्मियों में नहीं रहती, सर्दियों में आ जाती है, खुश्क, परेशान करने वाली खांसी। नम, ठंडी हवा में यह आती है, गर्मी में चली जाती है। सोरिनम तथा आर्सेनिक में भी ऐसी खांसी पायी जाती है।
शक्ति तथा प्रकृति – 3, 6, 30 (औषधि ‘सर्द’ – प्रकृति के लिये है)