लैक कैनाइनम के लक्षण तथा मुख्य-रोग
( Lac Caninum uses in hindi )
[ कुतिया का दूध ] – यह दवा नाक और गले में घाव, डिपथीरिया, उपदंश, गठिया आदि बीमारियों में बहुत अच्छा लाभ करता है।
Lac Caninum का मुख्य लक्षण :-
(1) दर्द का एक जगह से दूसरी जगह चले जाना;
(2) दर्द आज दाहिनी ओर तो कल बायीं ओर, आज दाहिनी ओर के पैर में दर्द होगा तो कल बायीं ओर के पैर में होगा ( crosswise ) इस तरह की एक ओर का दर्द दूसरी ओर चला जाना इसका लक्षण है।
Lac Caninum का मानसिक लक्षण :-
नर्वस रहना, भूल जाना, कोई चीज खरीदना तो उसे घर ले जाने की याद न रहना, जहाँ की तहाँ छोड़कर चले आना । लिखने में भूल करना, लिखना कुछ है और लिख कुछ और ही देना, शब्दों का आखिरी अंश लिखने में भूल करना । निराश होना, ऐसा समझना कि उनकी बीमारी आराम होनेवाली नहीं है, जरा-सी बात में गुस्सा हो जाना; ऐसा लगना जैसे साँप ने काट लिया, जबकि ऐसा कुछ होता नहीं है।
(1) भुलक्कड़पन तथा अनमनापन (Forgetfulness and absent mindedness) – मानसिक-लक्षणों की दृष्टि से रोगी भुलक्कड़ और अनमना होता है। बाजार में खरीदारी करता है, परन्तु सामान वहीं भूल जाता है। मन को केन्द्रित नहीं कर सकता। भुलक्कड़पन तथा मन को केन्द्रित न करने आदि की दृष्टि से इसकी निम्न औषधियों से तुलना की जा सकती है :
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भुलक्कड़पन की मुख्य-मुख्य औषधियां
ऐसिड फॉस – अधिक स्त्री-प्रसंग करने से मन कही नहीं टिकता।
ऐनाकार्डियम – अधिक मानसिक कार्य करने से व्यक्ति भुलक्कड़ हो जाता है। प्रात:काल भुलक्कड़पन अधिक दिखाई देता है।
बैराइटा कार्ब – वृद्धावस्था में जब सब इन्द्रियां शिथिल हो जाती हैं।
कैनेबिस इंडिका – रोगी इतना भुलक्कड़ हो जाता है कि बोलते-बोलते भूल जाता है कि मुझे क्या कहना था।
ग्लोनॉयन – इतना भुलक्कड़ हो जाता है कि जिस जगह बरसों से रह रहा है वहां के गली-मोहल्ले, अपने घर का नंबर आदि सब भूल जाता है।
मैडोराइनम – अपना नाम भी भूल जाता है।
थूजा, कैलि बाईक्रोम – नींद से उठने पर भुलक्कड़ होता है और ज्यों-ज्यों समय बीतता है स्मृति लौटने लगती है।
(2) स्पर्श-कातरता (General hyperaesthesia) – त्वचा में स्पर्श कातरता उत्पन्न हो जाती है। रोगी कई दिन तक हाथ की अंगुलियों को फैलाकर पड़ा रहता है और एक अंगुली को दूसरी से नहीं छूने देता। अगर उन्हें कोई छू दे तो चीख उठता है। स्पर्श से इतनी घबराहट दो दवाओं में ही है – इनमें और लैकेसिस में। पेट से चादर छूना भी रोगी बर्दाश्त नहीं करता। इन दोनों में यह लक्षण है। लैकेसिस में स्पर्श कातरता गले के प्रति विशेष रूप में पायी जाती है। लैकेसिस का रोगी गले में टाई या मफलर नहीं बांध सकता।
(3) अपने को आसमान में चलता या आसमान में लटकता अनुभव करना – इसके मानसिक लक्षणों में एक विचित्र लक्षण यह है कि रोगी जब चलता है तब ऐसा अनुभव करता है जैसे जमीन पर न चल रहा हो, आसमान में चल रहा हो; जब लेटता है तब ऐसा अनुभव करता है मानो बिस्तर पर न लेटकर आसमान में लटक रहा हो। यह लक्षण भी इसमें और लैकेसिस दोनों में हैं।
(4) रोगी के चित्त-विक्षेप को दूसरे नहीं जान पाते – रोगी का चित्त किसी बात पर जमता नहीं, सब-कुछ भूला-सा रहता है। ख़याल करता है कि वह जो कुछ कहता है ठीक नहीं, सब झूठ है। ख़याल करता है कि नाक उसकी नहीं है, घर की सामग्री उसकी नहीं है। चित्त चिन्ताओं से ग्रस्त रहता है। रोगिणी दिन भर घर के सब काम करती रहती है, उसके चित्त में जो उलट-पुलट होता रहता है उसे कोई जान नहीं पाता। हां, अगर वह स्वयं किसी से दिल खोले तभी उसे उसके चित्त-विक्षेप का पता चलता है।
(5) दर्द का एक तरफ से दूसरी तरफ जाकर पहली तरफ लौट जाना – इसका प्रमुख और विचित्र-लक्षण यह है कि कोई भी शिकायत क्यों न हो, वह पहले एक तरफ प्रकट होती है, फिर दूसरी तरफ, उसके बाद फिर पहली तरफ आ जाती है। उदाहरणार्थ, वात-रोग में अगर पहले दायें गिट्टे में दर्द हो फिर बायें में, उसके बाद फिर दायें गिट्टे में आ जाय, और इस प्रकार पासे बदलता रहे, तो यह इसी औषधि का लक्षण है। यही बात सिर-दर्द के विषय में कही जा सकती है। पहले दायें भाग में, फिर बायें भाग में, उसके बाद फिर पहले वाले भाग में दर्द आ जाता है। स्नायु-शूल भी इसी प्रकार अदला-बदली करता है। डिम्ब-ग्रन्थियों के शोथ या दर्द में भी अगर यह अदला-बदली दिखाई दे, तो इसी औषधि की तरफ ध्यान देना उचित है। गला पड़ने पर अगर ये लक्षण दिखाई दें, तो लैक कैनाइनम ही दिया जाता है। कभी-कभी चिकित्सक यह देखकर कि टांसिल दायें से बायें चला गया है लाइकोपोडियम दे देते हैं, परन्तु अगर उससे लाभ न हो, और टांसिल का शोथ फिर अपनी पुरानी जगह पर लौट आये, तो इसी औषधि से लाभ होगा। पल्सेटिला में भी दर्द जगह बदला करता है, परन्तु उसमें दर्द कभी जोड़ में, कभी कन्धे में, कभी घुटने में-इस प्रकार वह जगह बदलता है, लैक कैनाइनम में तो पासा ही बदल देता है, और पासा बदलते हुए अगर दायीं तरफ बांह में था, बांयी तरफ भी बांह में ही दर्द जाता है, और फिर लौटकर दायीं बांह में आ जाता है। डॉ० नैश का कहना है कि इन लक्षणों पर वात-रोग को उन्होंने इस औषधि की C.M. की एक मात्रा देकर ठीक कर दिया।
(6) मासिक-धर्म के साथ गला दुखना और उसके बन्द होने के साथ दुखना बन्द हो जाना – इस औषधि का एक विचित्र लक्षण यह है कि स्त्री के मासिक-धर्म शुरू होने के साथ गला दुखना शुरू हो जाता है, और मासिक-धर्म के बन्द होने के साथ गले का दुखना भी बन्द हो जाता है।
(7) मासिक-धर्म से पूर्व और उन दिनों में स्तनों की सूजन और दर्द (Mastitis) – मासिक-धर्म के संबंध में एक दूसरा लक्षण यह है कि रजोधर्म से पहले और उसके दिनों में स्तनों की गिल्टियां सूज जाती हैं, उनमें दर्द होता है, उनसे कपड़े का भी स्पर्श सहन नहीं होता, चलते समय या सीढ़ी से उतरते समय स्तनों को मजबूती से पकड़े रहना पड़ता है ताकि उन पर कपड़े तक का धक्का न लगे। अगर इस समय मासिक स्राव लगातार आने के स्थान पर रह-रह कर आये, तब तो इसी औषधि का प्रयोग करना उचित है।
(8) दूध सुखाने के लिए उपयोगी – जब किसी स्त्री का बच्चा मर जाता है और स्तन का दूध सुखाना होता है, तब लैक कैनाइनम दिया जाता है। स्तन का दूध बढ़ाना हो तो लैक डिल्फोरेटम दिया जाता है। दूध सुखाने-बढ़ाने में ये दोनों एक-दूसरे से विपरीत हैं।
(9) शक्ति तथा प्रकृति – 30, 200, 1000 (औषधि ‘गर्म’ – प्रकृति के लिये है।