कान में दर्द के कारण
कान को बार-बार सींक या सलाई से कुरेदने, सर्दी लगने, कान में कोई चीज (पानी, कीड़ा आदि) प्रवेश कर जाने, चोट लगने, कान के भीतर मैल जम जाने या कान में फुंसी निकल आने आदि के कारण कान में दर्द होने लगता है।
कुछ बच्चों तथा बड़ों के कान बहने भी लगते हैं। कान बहने के मुख्य कारणों में काली खांसी, कान में दूषित या अशुद्ध पानी चले जाना, पुराना जुकाम, तपेदिक, कंठमूल की गांठ की पीड़ा आदि हैं।
कान में दर्द के लक्षण
कान में दर्द होने के कारण भारीपन, कान में शूल, पलकों पर सूजन, कान के परदों में सूजन, सर्दी लगने के साथ बुखार, कान में घूं-घूं के शब्द, सुनने की शक्ति कम हो जाना, कान से पीब निकलना आदि लक्षण दिखाई देते हैं। कान में खुश्की बढ़ जाती है।
कान में दर्द के घरेलू उपचार
(Home Remedies for Earache)
- कान में पीड़ा होने की हालत में नीम का तेल, लहसुन का तेल या सप्तगुण तेल का प्रयोग करना चाहिए।
- प्याज को भूभल में भून लें, फिर उसका रस निचोड़कर कान में डालें।
- कान में यदि सांय-सांय की आवाज़ आती हो, तो चार-पांच बूंदें तुलसी के पत्तों का अर्क या रस डालें। इसके साथ ही एक चम्मच पिसी हुई सोंठ तथा 25 ग्राम गुड़ का सेवन भी करें।
- कान से यदि मवाद बाहर आता हो, तो बछिया का ताजा मूत्र डालें।
- नीम की निंबोली का तेल कान में लगातार तीन-चार दिन तक डालने से कान की पीड़ा, खुश्की, फुंसी आदि खत्म हो जाती है।
- बबूल की पत्तियों का अर्क बनाकर कान में डालें। थोड़ी-सी बबूल की पत्तियों को दो गिलास पानी में डालकर उबलने के लिए रख दें। बरतन के ऊपर चौड़े मुंह का गहरा बरतन ढांप दें। थोड़ी देर बाद उस बरतन (ढक्कन) को हटा लें। ढक्कन पर जो भाप जम जाएगी, उसे एक शीशी में भर लें। यह बबूल के पत्तों का अर्क होगा।
- दो पूतियां लहसुन की नीम की दस कोंपलें, चार निंबोली। इन सबको कुचलकर सरसों के तेल में अच्छी तरह पकाएं। फिर इस तेल को छानकर शीशी में भर लें। यह तेल कान में फुंसी, जख्म, बहना या कम सुनना आदि रोगों के लिए बहुत लाभकारी है।
- कान में यदि कीड़ा प्रवेश कर जाए, तो सरसों का तेल गुनगुना करके डालें, कीड़ा बाहर आ जाएगा।
- तुलसी की पत्तियों का रस कपूर में मिलाकर कान में डालने से दर्द दूर हो जाता है।
- कान में यदि सूक्ष्म कीड़ा प्रवेश कर जाए, तो पुदीने का रस डालें।
- लहसुन, मूली और अदरक। तीनों का रस गुनगुना करके कान में बूंद-बूंद करके डालें। यह कान की पीड़ा को दूर करने की रामबाण औषधि है।
- नीम के पानी से कान धोने से कान का घाव भर जाता है।
- कान यदि बहता है, तो फिटकिरी के पानी से कान को धोएं।
- चुकंदर के हरे पत्तों का रस बूंद-बूंद करके कान में डालने से कान का दर्द चला जाता है।
- मूली के पत्तों को आग में भूनकर राख कर लें। फिर इस राख में सरसों का तेल गर्म करके मिला लें। यह तेल बूंद-बूंद करके कान के कूप में डालने से इसका दर्द दूर हो जाता है।
- थोड़ी-सी हलदी को सरसों के तेल में डालकर तेल को खूब पकाएं। फिर कपड़छान कर लें। इस तेल को कान में बूंद-बूंद करके डालें। इससे कान का दर्द, बहना, पीब निकलना, खुजली, खुश्की आदि खत्म हो जाएगी।
- शाल वृक्ष की थोड़ी-सी छाल लेकर कूट लें। फिर उसे सरसों के तेल में पकाकर छान लें। यह तेल कान का बहना बंद कर देता है।
- अरंडी के पत्ते के ऊपर सरसों का तेल चुपड़कर पत्ते को कान पर बांधे, दर्द रुक जाएगा।
- 10 बूंद अजवाइन के तेल में थोड़ा-सा सरसों का तेल मिलाकर कान में बूंद-बूंद करके डालें।
- कान बहने पर केले के पत्ते के रस में समुद्री फेन मिलाकर कान में डालें।
- थोड़े-से इमली के पत्तों को तिल के तेल में पकाकर तथा छानकर कान में डालें।
- आम के नए पत्तों का रस कान में डालने से कान में होने वाली हर प्रकार की खुश्की तथा पीड़ा जाती रहती है।
- कान में चंदन का तेल डालने से भी दर्द बंद हो जाता है।
- दो लौंग और थोड़े-से अनार के छिलकों को सरसों के तेल में अच्छी तरह पकाएं। फिर इस तेल को छानकर कान में डालें।
- कान में गुलाब के फूल का रस डालने से रोगी को काफी आराम मिलता है।
- सिरस तथा आम के पत्तों का रस गुनगुना करके कान में डालने से दर्द जाता रहता है।
घरेलू इलाज से कान की फुंसी, झुंझलाहट, दर्द, हल्के इन्फेक्शन को ठीक किया जा सकता है। फिर भी अगर दर्द में कमी न आये तो किसी वैध या डॉक्टर से अवश्य परामर्श लें।
कान के दर्द की प्राकृतिक उपचार
- कान के आसपास वाली त्वचा पर मिट्टी की पट्टी बांधे।
- गुनगुने पानी में नीबू की कुछ बूंदें मिलाकर कान में डालें। थोड़ी देर बाद कान को रुई से साफ कर दें। इसके बाद कान में तुलसी के पत्तों के रस की चार बूँदें डालें।
- यदि कान में फुंसी हो, तो पानी में जरा सी फिरकिरी डालकर उबाल लें। इसके बाद कान में इस पानी की भाप दें।
- पेट को साफ़ रखें तथा कब्ज न होने दें, क्योंकि प्राकृतिक चिकित्सा में सबसे पहले पेट के रोगों या विकारों को दूर किया जाता है, क्योंकि शरीर को जकड़ने वाली अधिकांश रोग पेट के खराबी के कारण होते हैं।