इस रोग में व्यक्ति को ऑव या रक्त मिले दस्त बार-बार आते हैं और रोगी के पेट में मरोड़ने की भाँति का दर्द होता रहता है । यह रोग मुख्यतः दूषित पदार्थों का सेवन करने, दूषित पानी पीने, दूध का सदैव खाली पेट खाने आदि के कारण होता है ।
एकोनाइट 30– पेचिश की प्रारम्भिक अवस्था में लाभकारी है जबकि पेट में काटने की तरह का दर्द हो और प्यास अधिक लगती हो | पतझड़ के मौसम में होने वाली पेचिश की पहली दवा है ।
कैमोमिला 30– एकोन के बाद लाभप्रद है जबकि ज्वर, प्यास और शरीर के अंगों में दर्द शेष रह गया हो । यदि रोग पसीना दब जाने के कारण हुआ हो तो यही दवा देनी चाहिये ।
मर्ककॉर 30, 3x- पेट में भयानक ऐंठन हो, मरोड़ हो, बार-बार थोड़ाथोड़ा शौच आता हो, शौच के साथ विशेषकर रक्त अधिक आये, रोगी के मुख में बार-बार पानी भर आता हो तो लाभ करती है । जबकि रोगी खूब चीखता-चिल्लाता हो तो यही दवा देनी चाहिये ।
मर्कसॉल 30, 3x, 6x- यह दवा भी उपरोक्त लक्षणों में ही लाभकर है | अंतर केवल इतना है कि मर्ककोर में शौच के साथ रक्त की अधिकता रहती है जबकि मर्कसॉल में शौच के साथ ऑव की अधिकता रहती है ।
ब्रायोनिया 30– गरम मौसम में पेचिश हो जाने पर उसकी प्रारम्भिक अवस्था की दवा है । यदि रोग कच्चे फल खाने के कारण उत्पन्न हुआ हो तो भी यही दवा देनी चाहिये ।
चायना 30- तराई वाले या दलदली स्थानों पर निवास से पेचिश होने पर लाभकर हैं । यदि रोग प्रत्येक तीसरे दिन बढ़ता हो तो भी यही दवा देनी चाहिये, लाभ होगा ।
रसटॉक्स 30, 6x- ठण्डे स्थानों पर निवास से अथवा बरसात के मौसम में पेचिश होने पर लाभकर है ।
कोलोसिन्थ 30– पेट में ऐसा दर्द कि रोगी दोहरा हो जाता हो, ऑतों पर दबाव पड़ता जान पड़े, पेट ढोल की तरह फूल जाये, पेट से लहर-सी उठकर सारे शरीर में फैलती जान पड़े, मुँह का स्वाद बिगड़ जाये तो दें ।
नक्सवोमिका 30– बार-बार थोड़ा-थोड़ा शौच हो, हाजत बने लेकिन शौच हेतु जाने पर हाजत खत्म हो जाये, पेट में मरोड़ रहे, गरमी और प्यास ज्यादा लगती हो तो यही दवा देनी चाहिये ।
आर्सेनिक एल्ब 30, 3x- शौच से दुर्गन्ध आती हो, मुँह से भी बदबू आये, शरीर कमजोर हो जाये, इन्द्रियाँ शिथिल पड़ जायें, रोगी उत्साहहीन हो जाये, शरीर पर लाल या नीले दाग पड़ जायें तो लाभ करती है । अगर रोग संक्रामक हो गया हो तो यही दवा देनी चाहिये ।