[ एक तरह के ताजे पके फल से टिंचर तैयार होता है ] – यह औषधि ह्रतपेशियों पर क्रिया करती है और हृदय को बल देती है। हृदयावरण पर इसका कोई प्रभाव नही होता। ह्रतपेशियों का प्रदाह, जब हृदय अपने विकारों को स्वयं सुधारने में विफल रहता है। हृदय के गति की अनियमितता, अनिद्रा, खून की कमी, त्वचा की शीतलता, धमनियों का भारी तनाव, चिड़चिड़े स्वभाव वाले हृदय रोगी के लिये यह एक उत्तम औषधि है।
पुराने हृदय रोग, जिसमें अत्यधिक दुर्बलता बनी रहती है, साथ ही सिर के पिछले भाग और गर्दन में दर्द रहता है। हाथ पैर और सारे शरीर का रंग पीला पड़ जाता है। आंतों में रक्तस्राव, नाड़ी और श्वास की चाल अनियमित हो जाती है। कन्धे के जोड़ छाती के बाएं भाग में दबाव का अहसास होता है।
हृदय – जरा सी मेहनत करने से ही सांस लेने में बहुत परेशानी होती है, परन्तु नाड़ी की चाल अधिक नहीं बढ़ती। खांसी, हृदय फैला हुआ लगता है। हृदय प्रदेश तथा बाएं कन्धे के जोड़ के नीचे दर्द रहता है, ऐसा लगता है जैसे हृदय की पेशियां दुर्बल पड़ गयी हों या रुक गयी हों। सक्रांमक रोगों में हृदय को प्रतिरक्षण प्रदान करती हैं।
सिर – रोगी निराश तथा शंकालु हो जाता है। मन्द बुद्धि स्नायविक और चिड़चिड़ा होने के साथ सिर के पिछले भाग और गर्दन में पीड़ा होती है। आंख के सफेद पर्दे का क्षोम और नासिक स्राव।
वाह्यांग – बच्चों में मधुमेह का रोग हो जाता है। पसीना अधिक मात्रा में आता है। रोगी की त्वचा पर दाने से हो जाते हैं। महाधमनी के रोगियों को नींद नहीं आती। गरमी से रोग की वृद्धि होती है। रोगी शान्त रहना पसन्द करता है।
सम्बन्ध – डिजिर्ट, आइबैटिस, नैजा, कैक्टस, स्ट्रोफेथस।
मात्रा – मूलार्क, 10 बूंद तक। उत्तम परिणाम के लिए कुछ समय लगातार लेना चाहिए।