[ जंगली कुम्हड़ा ] – यह औषधि हाल के पैदा हुए बच्चों के पित्त के दस्त और कामला तथा हैजा, ज्वर, पेट की बीमारियों में सफलता पूर्वक प्रयोग की जाती है।
अत्यधिक मात्रा में पानी जैसे पतले जलशोथ (dropsy), बेरी -बेरी, बरसात और पानी शुदा तर मौसम में बीमारी होना, इसके विशेष लक्षण है।
अतिसार, हैजा – आंतों में तेज काटता हुआ दर्द। मितली तथा वमन के साथ भारी दुर्बलता। पानी की तरह पतले और सात में फेन मिले दस्त आना, दस्त का रंग हल्का हरा होता है। पाखाना बड़े वेग के साथ निकलना और पाखाने की हाजत होने से पहले पेट में तेज दर्द होना। इस बीमारी के साथ रोगी को जाड़ा मालूम होना, जम्हाई और अंगडाई आना। हाथों की उंगलियों तथा अंगूठों में, घुटनों में, पैरो की उंगुलियों तथा उनके अन्दरुनी भागों में तेज दर्द होना, डंक मारने जैसी पीड़ा और जलन, त्वचा का रंग संतरे जैसा हो जाना।
ज्वर – रोगी को सर्दी बहुत लगती है, जब तक ठण्ड लगती है तब तक अंगड़ाइयां व जम्हाइयां आती रहती हैं। शीतकम्प तथा ज्वर से साथ पिचकारी के समान दस्त होते है।
बाह्यांगों तथा हाथ-पैर की उंगुलियों में पीड़ा होती है। इन लक्षणों में इस औषधि के प्रयोग से बहुत फायदा होता है।
सम्बन्ध – ब्रायो, क्रोटन, गम्बोजिया से तुलना करो।
मात्रा – 3, 30 शक्ति तक।