पेट की खराबी तथा अन्य कारणों से जीभ का स्वाभाविक रंग बदल कर सफेद, लाल, पीला, नीला, हरा, काला अथवा बादामी हो जाता है । इस प्रकार जीभ पर विभिन्न रंगों के लेप भी चढ़ जाते हैं । इस रोग में लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियाँ लाभ करती हैं :-
(1) यदि जीभ का सामने का भाग साफ हो और पीछे लेप चढ़ा हो तो – नक्स-वोमिका ।
(2) यदि जीभ के मध्य-भाग में मटमैली रेखा (टाइफाइड-ज्वर की भाँति) हो तो – आर्निका, बैप्टीशिया तथा म्यूरि-एसिड ।
(3) यदि जीभ का मध्य-भाग बादामी रंग का हो तो – बैप्टीशिया, प्लम्बम मेट ।
(4) यदि ऋतुस्राव के समय जीभ साफ रहती हो तथा ऋतुस्राव के बन्द हो जाने पर गन्दी हो जाती हो तो – सीपिया।
(5) यदि जीभ सूखी तथा बादामी रंग की हो तो – एलैन्थस, ऐण्टिम-टार्ट, आर्सेनिक, बैप्टीशिया, ब्रायोनिया, स्पंजिया, रस-टाक्स तथा लैकेसिस ।
(6) यदि जीभ का रंग बादामी हो, परन्तु वह सूखी न हो तो – ऐण्टिम-टार्ट, ऐमोन-कार्ब, बैप्टीशिया, आर्सेनिक, क्युप्रम-आर्स, हायोसायमस, मेडो, मर्क-सायेनेटस, नेट्रम-सल्फ, नेट्रम-फॉस, एसिड-म्यूर, ऐकिन्नेशिया तथा ब्रायोनिया।
(7) यदि जीभ का रंग काला, पील या नीला हो तो – क्युप्रम, मर्क सायने, एसिड-म्यूर, विरेट्रम-ऐल्ब, डिजि, आर्सेनिक तथा ओपियम ।
(8) यदि जीभ का रंग काला हो तो – क्युप्रम, मर्क-सायने, एसिड-म्यूर, विरेट्रम-एल्ब, बैप्टीशिया, ओपियम तथा लैकेसिस ।
(9) यदि जीभ थुलथुली, तर और दाँतों के निशान से युक्त हो तो – मर्ककोर, मर्क-सोल, नेट्रम-फॉस, स्ट्रैमो, सैनिक्यूला, हाइड्रैस्टिस, चेलिडोनियम, आर्सेनिक, कैलि-बाई, पोडो तथा रस-टाक्स ।
(10) जीभ का रंग सफेद हो तो – नेट्रम-सल्फ, प्लम्बम ।
(11) यदि जीभ का रंग लाल हो तो – आर्सेनिक, बेलाडोना, एपिस, ऐकोन, कैन्थरिस, रस-टाक्स, टेरिबिन्थ, मर्क-कोर, लैकेसिस, क्रोटेलस, जेल्सीमियम, मेजे, हायोसायमस, कैलिबाई, नक्स-वोमिका तथा पाइरोजेन ।
(12) यदि जीभ का रंग लाल हो और वह विशेष कर मध्य-भाग में सूखी हो तो – रस-टाक्स तथा ऐण्टिम-टार्ट ।
(13) यदि जीभ के किनारे लाल हों तो – नाइट्रिक-एसिड, एण्टिम टार्ट, कालिबाई, लैकेसिस, मर्क-कोर, मर्क-आयोड, पोडो, रस-टाक्स तथा सल्फ ।
(14) यदि जीभ के किनारे लाल तथा केन्द्र-स्थल सफेद हो तो – बेलाडोना या रस-टाक्स ।
(15) यदि जीभ का रंग लाल सुर्ख (गहरा लाल) हो तो – एरम, आर्सेनिक, टैरेक्स तथा कैन्थरिस ।
(16) यदि जीभ का रंग चमकदार लाल हो तथा जीभ चिकनी जैसे रोगन से पुती हुई हो तो – कैन्थरिस, एपिस, लैकेसिस, काली-बाई, पाइरोजन, टेरिबिन्थ, फॉस, नाइट्रिक-एसिड तथा रस-टाक्स
(17) यदि जीभ लाल रंग की तथा गीली सी हो और उसके केन्द्र-स्थल में दरार हो तो – नाइट्रिक-एसिड ।
(18) यदि जीभ का केन्द्र-स्थल (मध्य-भाग) लाल रंग का अथवा धारीदार हो तो – ऐण्टिम-टार्ट, क्रोटेलस, विरेट्रम-विरि, कास्टिकम तथा आर्सेनिक ।
(19) यदि जीभ पर लाल धब्बे हों तथा असहिष्णुता के लक्षण हों तो – टैरिबिन्थ तथा रैनान ।
(20) यदि जीभ की नोक लाल रंग की हो तो – फाइटोलैक्का, सल्फर, रसटाक्स, आर्सेनिक, अर्जेण्टम-नाई, मर्क, आर्स-फ्ले तथा साइक्ले ।
(21) यदि जीभ एक तरफ को लाल रंग की हो तो – लोवेल-इन, रस-टाक्स तथा डैफ्ने ।
(22) यदि जीभ नक्शानुमा हो और उस पर लाल किनारों से घिरे चकत्ते हों तो – नेट्रम-न्यूर ।
(23) यदि जीभ पर लाल रंग के काँटे (दाने) हों तो – ऐण्टिम-टार्ट, कास्टिकम, आर्सेनिक, क्रोटेलस तथा विरेट्रम-विरि ।
(24) यदि जीभ पर लाल रंग के दाने हों और यह छिली हुई सी हो तो – एलियम सिपा।
(25) यदि जीभ के मध्य भाग में पीले रंग के चकते हों तो – फाइटोलैक्का तथा बैप्टीशिया ।
(26) यदि जीभ पर पीले रंग का गहरा गन्दा लेप हो तो – बैप्टीशिया, ब्रायोनिया, एस्क्युलस, कार्बो-वेज, सिनकोना, पल्सेटिला, नेट्रम-सल्फ, मर्क-कालिबाई, तथा कैमोमिला ।
(27) यदि जीभ पर सफेद रंग का, लेई जैसा चिपचिपा लेप हो तो – ऐण्टिम-टार्ट, ऐण्टिम-क्रूड, साइक्ले, मर्क, सीपिया, पल्सेटिला, चेलिडोनियम, ब्रायोनिया, बिस्मथ तथा बैप्टीशिया ।
(28) यदि जीभ का रंग ‘स्ट्राबेरी’ जैसा हो तो – बैप्टीशिया ।
(29) यदि जीभ का पिछला भाग भूरापन लिए सफेद हो तो – कालि-म्यूर ।
(30) यदि जीभ के किनारों पर झाग-युक्त बुलबुले हों तो – नेट्रम-म्यूर ।
(31) यदि जीभ पर नक्शा जैसा बना हो तो – आर्सेनिक, ऐण्टिम-क्रूड, नेट्रम-म्यूर, कालि-बाई, लैकेसिस, फाइटोलैक्का, रस-टाक्स तथा नाइट्रिक एसिड ।