Liquor Vitamini A Concentrates (B.P.C. Co.) – हल्का, पीले रंग का तेल, मामूली गन्ध, स्वाद मछली के तेल जैसा। मात्रा 1 से 10 बूंद । एक बूंद में 2500 यूनिट, 10 बूंद में 25000 यूनिट विटामिन A होता है ।
प्रेपालिन Prepalin ( निर्माता : ग्लैक्सो ) – इस नाम से विटामिन ‘ए’ के इन्जेक्शन 1 M.L. के एम्पुल में 1 लाख यूनिट तथा इसी नाम से फोर्ट इन्जेक्शन 1 मि.ली. में 3 लाख यूनिट विटामिन ‘ए’ होता है ।
विटामिन ‘ए’ की बहुत अधिक कमी हो जाने पर 1 या 3 लाख का इन्जेक्शन मांसपेशी (इन्ट्रामस्कुलर 1ML) में लगायें । दूसरा इन्जेक्शन 3 या 7 दिन बाद लगाना काफी है । फोर्ट का दूसरा इन्जेक्शन 7 या 14 दिन बाद लगाया जाता है । इस प्रकार 6 से 10 सप्ताह तक चिकित्सा जारी रखी जाती है ।
ऐक्वासोल ए Aquasol A (यू. एस. वी. एण्ड पी. कम्पनी) – इस नाम से उपलब्ध कैप्सूल को एक कैप्सूल प्रतिदिन दें । अथवा तीव्र दशा में इसी नाम से उपलब्ध 2 M.L. 1 लाख यूनिट का इन्जेक्शन प्रत्येक तीसरे दिन मांस में लगायें । शार्कलीवर ऑयल का प्रयोग भी उक्त प्रकार किया जा सकता है ।
विशेष – विटामिन A खाद्य जितना अधिक रोगी को खिलाएंगे उतना ही अधिक उसके रोग दूर हो जाते हैं। उसको शक्ति प्राप्त होती है और आयु बढ़ती है। विटामिन A युक्त खाद्य पदार्थ और भोजन बार-बार खाते रहने से भी कोई हानि नहीं होती है परन्तु विटामिन A से बनी औषधियां अधिक मात्रा प्रयोग करने से रोगी को हानि भी पहुँच सकती है।
यदि यह विटामिन को अधिक मात्रा में अधिक समय तक प्रयोग किया जाये तो वजन घट जाना, गंजापन, नेत्रों में घाव, रक्तस्राव, हड्डियों का नरम हो जाना, हड्डियाँ बार-बार टूट जाना, भूख कम हो जाना, रक्ताल्पता, यकृत विकार, चिड़चिड़ापन, चर्म की खुश्की, नाक का दर्द, पाण्डु रोग, यकृत वृद्धि, भूख न लगना, ओष्ठों का फट जाना, चर्म के नीचे पीड़ाजनक ग्रन्थियाँ हो जाना और खराश इत्यादि रोग हो जाते हैं। प्रतिदिन की आवश्यकता के अनुसार यह विटामिन बच्चों को 4000 यूनिट और बड़ों को 6 से 8 हजार यूनिट तक दें। गर्भाशय और दूध पिलाने वाली स्त्री को 5 हजार यूनिट, रोग में इस विटामिन की मात्रा कम हो जाने पर 15 हजार से 25 हजार यूनिट तक प्रतिदिन 1 या 2 बार प्रयोग करें। यह विटामिन अधिकतर मुख द्वारा खिलाया जाता है, परन्तु संग्रहणी और दूसरे रोगों में शीघ्र लाभ के लिए इसके एम्पुल के इन्जेक्शन मांस में लगाये जाते हैं ।