इस मेडिसिन का हिन्दी नाम काली तुलसी है। काली तुलसी श्लेष्मा-नाशक, कफ निकलने वाली और ज्वर निवारक है। सफेद तुलसी में श्लेष्मा-नाशक गुण कम होने पर भी वायुनाशक गुण अधिक है। तुलसी – हिचकी, पार्श्व वेदना व विष दोषनाशक है, वात-श्लेष्मानाशक, पित्तवर्धक और दुर्गन्धहारक है। पीने के 1-2 घण्टा पहले एक गिलास जल में 3-4 तुलसी के पत्ती डालकर उस जल को पीने से जल का सारा दोष दूर होता है व श्लेष्मा, सर्दी-खांसी घटती है। काली तुलसी का मूल – थोड़ी मात्रा में पान के साथ चबाकर खाने से वीर्य स्तम्भन होता है, स्वप्नदोष व शुक्रदोष दूर करने के लिए आध इंच परिमाण में मूल सप्ताह में 2-3 दिन सेवन करना चाहिए। उक्त मूल शरीर में धारण करने से वज्राघात का भय दूर होता है। ध्वजभंग के रोगी को नित्य 1 रत्ती तुलसी का मूल घृत के साथ सेवन करने से रोग दूर हो जाता है। तुलसी-बीज जल में भिगाकर उसे हिलाते डुलाते जब लसदार हो तो शुक्रमेह (spermatorrhoea) में पिलायें, फुसफुस के श्लेष्मा व कफ रोग में तुलसी गोल मिर्च के साथ उपयोग करना चाहिए।
साधारणतः निम्नलिखित लक्षणों व रोगों में या उपयोगी होता है –
- हर प्रकार के इन्फ्लुएंजा-ज्वर में तन्द्रा व सुस्तीपन का भाव।
- ब्रोंकाइटिस के साथ ज्वर।
- मुंह में बदबू, मुख में नासूर व होंठ के भीतर खूब छोटे-छोटे घाव।
- शिशुओं के उदरामय के साथ मुख में घाव ( एसिड सल्फ ), जीभ चमकीले लाल रंग की अथवा जीभ का अगला भाग व बगल लाल, मूल व बीच का हिस्सा मैल से ढका, दोनों होंठ खूब घने लाल रंग के, जीभ में घाव (जीभ के उक्त लक्षण में इन्फ्लुएंजा या प्रायः हर प्रकार के रोग में यह लाभदायक है)
- गले में दर्द, घूंट निगलने में दर्द, खांसने में दर्द, टॉन्सिल बढ़ा हुआ, स्वरभंग।
- पेट फूलना, मुंह में जल भर जाना, हिचकी, डकार, पेट गड़गड़ाना।
- बहुत बार दस्त होने पर भी पेट फूलना, पेट में भार लगना, पेट में दर्द, दबाने पर दर्द।
- पेट की गड़बड़ी के साथ ज्वर।
- शिशुओं के ज्वर में – ज्वर के साथ बदबूदार पाखाना।
- बदबूदार दस्त के साथ शिशु के मुख में घाव, स्तन पान न कर सकना, पुराना खुनी आंव।
- सर्दी ज्वर, छाती में दोष के साथ पेट का दोष।
- पेशाब करते समय जलन, बार-बार हाजत, अनजाने में पेशाब होना, पेशाब में श्लेष्मा आना, पेशाब के बाद दूषित स्राव, बदबूदार स्राव, सड़ा स्राव सब बहुत दिनों तक रहता है।
- पेशाब के साथ अत्यधिक रक्तस्राव, हर प्रकार का प्रदर, योनि से – सफ़ेद पीला श्लेष्मा युक्त पीब की तरह, मछली घुले जल की तरह नाना प्रकार का सड़ा स्राव निकलना।
- छाती सांय-सांय अथवा घड़घड़ाना, छाती में दर्द, तेज सांस, सोने में परेशानी, दमा के साथ ज्वर।
- अल्प आयु के शिशुओं का दमा और सर्दी, खांसी, ज्वर, ब्रोंकाइटिस, व काली खांसी
- प्लुरिसी का दर्द व पार्श्व-वेदना इत्यादि।
क्रम – Q, 3x, 6x, 30 इत्यादि।