[ उत्तर अमेरिका, यूरोप और एशिया की जलीय-भूमि में पैदा होने वाली एक प्रकार के गुल्म से टिंचर तैयार होता है ] – स्नायविक सिर-दर्द, ज्वर, कलेजे में दर्द आदि दो-एक बीमारी के इलाज में – कभी-कभी इसकी जरुरत पड़ती है। डॉ टेस्टि का कहना है – ड्रोसेरा के लक्षणों से इसका इसका बहुत कुछ समानता है ; इसलिए ड्रोसेरा के लक्षणशुदा बीमारी में अगर ड्रोसेरा से फायदा न हो तो, अंत में – मेनिऐंथिस का प्रयोग का देखना चाहिए।
सिर दर्द – माथा भारी, माथे में दबाव मालूम होना, सीढ़ी चढ़ने-उतरने से अथवा ज्यादा इधर-उधर करने से सिर का दर्द बढ़ता है। सिर-दर्द गर्दन से शुरू होकर क्रमशः सारे माथे में फैल जाता है ; हाथ से खूब जोर से दबाने से दर्द कुछ घटता है, पर छोड़ देने से फिर बढ़ जाता है। गर्मी से घटने का लक्षण साइलीशिया में और बाँधने से घटने का अर्जेन्टम नाइट्रिकम में है।
वक्षःस्थल की बीमारी – कलेजे के दोनों तरफ दबाव का दर्द, इसके भीतर सुई गड़ती सी मालूम होना। सांस लेने से दर्द का बढ़ना जैसे लक्षण में मेनिऐंथिस लाभ करता है।
सविराम ज्वर – ज्वर में इसका प्रधान लक्षण यह है कि हाथ, पैर की उँगलियाँ बर्फ की तरह ठण्डी हो जाती है, कोहनी और घुटने तक ठण्डा हो जाता है, नाक की नोक ठण्डी हो जाती है। हाथ के नख नीले पड़ जाना, शीत और उत्तापवस्था में प्यास, हाथ-पैर में ठण्डक और साथ ही कलेजा धड़कना इत्यादि लक्षणों में इसका उपयोग होता है।
वृद्धि – विश्राम से, ऊपर चढ़ने से।
कमी – दबाव से, सिर झुकाने से।
क्रियानाशक – कैम्फर।
क्रिया की स्थितिकाल – 14 से 20 दिन।
क्रम – मदर टिंचर और निम्न शक्ति से ज्यादा फायदा होता है।