यह गठिया-वात, शोथ, उदरी, पीलिया ( कामला ) और पेशाब की बीमारी में लाभदायक है।
वात – गठिया-वात, जोड़ों का फूलकर लाल हो जाना, तेज दर्द, इसके अलावा – अंगूठे के वात तथा अन्य अंगुलियों के सन्धि-वात में भी यह लाभदायक है।
शोथ और उदरी ( dropsy ) – जिन रोगियों के पेशाब में अण्डलाल ( albumen ) रहता है, पेशाब परिमाण में बहुत थोड़ा होता हो, पेशाब रख छोड़ने पर उसमे धुएँ जैसा गँदलापन दिखाई देता है, पेशाब में बहुत कटु गंध रहती है, कभी-कभी पेशाब लाल रहता है और उसमे लाल रंग की ही गाढ़ी तली जमती है – उनकी बीमारी में और शोथ मे यह दवा ज्यादा फायदा करती है।
पाण्डु रोग ( jaundice ) – पित्त की क्रिया रुक जाने से उत्पन्न कामला, इसमें शरीर फूल जाए और उसके साथ पेशाब में भी कटु गंध हो तो यह दवा ज्यादा फायदा करती है। बच्चों के यकृत रोग की अन्तिम अवस्था में जब यकृत सिकुड़कर शोथ हो जाता है तो बीमारी बिगड़ जाती है, ऐसे मौके पर यह दवा धीरज के साथ उपयोग करने पर फायदा होने की सम्भावना रहती है।
सदृश – एपिस, आर्निका, ओपियम, टेरिबिन्थ, कार्बो वेग, कैलि कार्ब।
क्रम – 3x, 6x विचूर्ण।