हम अपने बुज़ुर्गों का काफी ख्याल रखते हैं, उम्र बढ़ने के साथ ही उनका खास ख्याल रखना जरुरी हो जाता है। सभी लोग कभी न कभी वृद्ध होते ही हैं। आमतौर पर 45 की उम्र तक हमारा शरीर काफी तंदरुस्त रहता है और इस उम्र को हम वृद्ध की श्रेणी में नहीं रखते। लेकिन जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है वैसे वैसे हमे कई सारी बीमारियां होती जाती है और हमारा शरीर ज्यादा थकने लगता है। ऐसी स्थिति में हम कई सारी बीमारियों से जल्द से जल्द छुटकारा पाने के लिए कई सारी एलोपैथी दवाइयों का सेवन करते है, जिसके ज्यादा इस्तेमाल से कई सारे side effects का सामना करना पड़ता है।
65 के आस पास की उम्र में कई सारी बीमारियां होती है जिनको हम दो वर्गों में बाँट सकते हैं। curable disease और incurable disease.
Curable disease वह होती हैं हो जल्दी ठीक हो जाती है या दवाइयों के सेवन से आसानी से ठीक हो जाती है और incurable disease वह होती है जो जल्दी ठीक नहीं होती। curable disease में बुखार, खांसी, जुकाम, उच्च रक्तचाप आदि आती हैं। incurable disease के अंतर्गत कई सारी वह बीमारियां है जो ठीक नहीं होती रहती जल्दी जैसे मधुमेय की समस्या। वृद्धों को जो बीमारी सबसे अधिक होती है वह है पार्किंसन की बीमारी। पार्किंसन बीमारी आमतौर पर 70 की उम्र में होने लगती है, और यह भी एक incurable disease है जो ठीक नहीं होती केवल नियंत्रित की जा सकती है। इस उम्र में घुटने में दर्द, चलने फिरने में समस्या होती ही है। यदि आप महिला हैं और बुज़ुर्ग है तो आपको एक और समस्या होती है, आपकी हड्डियां कमजोर होने लगती है, शरीर में ताकत कम रह जाती है। इन सब incurable disease को केवल नियंत्रित किया जा सकता है ठीक नहीं होती यह आसानी से।
इन सभी incurable disease के लिए होम्योपैथिक की दवाइयों का ही सेवन करना चाहिए क्योंकि अगर आप एलोपैथी का ज्यादा सेवन करेंगे तो यह आपके सेहत के लिए और भी खतरनाक हो सकता है। होम्योपैथिक के कोई भी side effects नहीं होते जिससे यह दवाइयां शरीर के लिए पूरी तरह ठीक है जबकि एलोपैथी का ज्यादा सेवन करने से पाचन तंत्र कमजोर हो जाता है जोकि वृद्धावस्था के कारण वैसे भी कमजोर हो चुका होता है। होम्योपैथिक के सेवन से पाचन तंत्र कमजोर नहीं रहता, यह दवाई पाचनतंत्र के लिए अच्छी होती है।
एलोपैथी की दवाइयों के अधिक सेवन से वह भी वृद्धावस्था के दौरान शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता पर गलत प्रभाव पड़ता है और वह कम होती जाती है, इसे विपरीत होम्योपैथिक के इस्तेमाल से रोगप्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है।
एलोपैथी के सेवन से जैसा की पहले कहा जा चुका है की side effects की समस्या हो जाती है जबकि होम्योपैथिक के सेवन से ऐसा कोई नकारात्मक प्रभाव शरीर पर नहीं पड़ता। होम्योपैथिक के सारे प्रभाव सकारात्मक ही होते हैं।
बुजुर्गों में ओवरडोज की समस्या काफी देखी जाती है, कई बार बुजुर्ग गलती से एक ही दवाई का सेवन एक दिन में कई बार कर लेते है तो उससे नयी समस्या शुरू हो जाती है, लेकिन होम्योपैथिक में अगर ऐसा कभी गलती से हो जाये तो इसमें चिंता की बात नहीं होती क्योंकि होम्योपैथिक दवाई के कोई भी side effects नहीं है।
कम उम्र के लोगों के मुकाबले बुजुर्गों में होम्योपैथिक दवाइयां बहुत अधिक असर करती है। इसके अच्छे परिणाम देखने को मिलते है, होम्योपैथिक दवाइयां लम्बे समय तक इस्तेमाल की जा सकती है, साथ ही होम्योपैथिक दवाइयां खाने में भी कड़वी नहीं होती तो बुज़ुर्ग आसानी से इसे खा सकते है। होम्योपैथिक दवाइयों से वह बीमारियां नियंत्रित रहती है जो अधिक उम्र के बाद पूरी तरह ठीक नहीं हो सकती।