एक पुरानी कहावत है -‘स्वस्थ दांत तो स्वस्थ आंत’ स्वास्थ्य, सौंदर्य एवं संबंधों के माधुर्य के लिए स्वस्थ, सुन्दर, चमकते दांत जरूरी है।
पांच वर्ष की उम्र तक 85 प्रतिशत बच्चों के दांत खराब हो जाते हैं। साथ ही 16 वर्ष से कम उम्र के अधिकतर बच्चों के हर साल कीड़ों की वजह से दांत भरवाने पड़ते हैं।
यदि स्वयं सुचारु रूप से देखभाल की जाए, तो दांतों और मसूड़ों की समस्या कम होगी। थूक या लार ऐसी चीज है, जो दांतों और मसूड़ों की रक्षक होती है। इससे न केवल भोजन के बचे हुए अंश साफ करने में मदद मिलती है, वरन् यह बैक्टीरिया के दुष्प्रभावों से भी बचाती है गौरतलब के बैक्टीरिया से दांतों में गड्ढे (कैविटीज) पड़ जाते हैं और मसूड़ों की बीमारी उत्पन्न होती है।
फ्लोराइड भी एक सक्षम प्राकृतिक रक्षक है। वैज्ञानिकों के अनुसार, जिन क्षेत्रों में जल में, पलोराइड की मात्रा पर्याप्त होती है, वहां ‘दंतक्षय’ कम पाया जाता है।
दांतों में गडढा (कैविटी) : दांतों में गड्ढे, ‘प्लाक’ (दांतों पर जमी मैल) के कारण उत्पन्न होते हैं। प्लाक में स्थित बैक्टीरिया जब भोजन में शामिल चीनी और स्टार्च से मिलता है, तब एक एसिड बनता है, जिससे दांतों का इनेमल नष्ट होने लगता है और दांतों में छेद हो जाता है। यदि इलाज समय पर न किया जाए, तो यह और गहरा होता चला जाता है तथा अन्ततः दांतों के पल्प तक पहुंच जाता है, जिससे दांतों में दर्द उत्पन्न होता है एवं दांतों की मज़्ज़ा भी नष्ट हो जाती है।
दांतों के चिकित्सक दांतों की कैविटी को कुछ रसायनों द्वारा सिर्फ भर सकते हैं, किन्तु कुछ होमियोपैथिक दवाओं द्वारा कैविटी का बनना रोका जा सकता है।
मसूड़ों की बीमारी : दांतों के इर्द-गिर्द के तन्तुओं (मसूड़ों और हड्डी) की बीमारी को पैरियो डाण्टल डिजीज कहते हैं। यह बीमारी धीरे-धीरे बढ़ती है। इस बीमारी के प्रथम चरण को जिजिवाइटिस कहते हैं। इसमें पहले मसूड़े मुलायम पड़ जाते हैं, उनमें जलन होने लगती है और मुंह से खून आने लगता है। ऐसा ‘प्लाक’ में मौजूद बैक्टीरिया के कारण होता है। ये धीरे-धीरे मसूड़े के अन्दर प्रवेश कर जाते हैं और तंतुओं को प्रभावित करने लगते हैं। यह इंफेक्शन धीरे-धीरे फैलता है और हड्डियों की जड़ तक पहुंच जाता है। इससे दांत की जड़ें कमजोर हो जाती हैं और दांत हिलने लगते हैं। इस एडवांस स्टेज को ‘पैरियोडांटाइटिस’ कहते हैं। यदि इसका इलाज नहीं हुआ, तो दांत टूट जाते हैं। बच्चों एवं युवकों में भी यह बीमारी हो सकती है।
दांतों में नासूर : दांतों का सबसे आंतरिक हिस्सा पल्प (मज़्ज़ा) होता है, जिसमें नस, रक्तशिराएं और तंतु होते हैं। यह दांतों की जड़ से लेकर उस तंतु तक फैला होता है, जहां दांत की जड़ मसूड़े की हड्डी से जुड़ी होती है। यदि दांतों में गहरी चोट लग गई हो अथवा कैविटी बहुत गहरे होते हुए पल्प तक पहुंच गई हो, तब पल्प नष्ट हो जाता है और दांतों में दर्द शुरू हो जाता है। कभी-कभी पल्प के सड़ने से मसूड़े के पास छोटा फोड़ा बन जाता है और उसमें से मवाद (पस) निकलता रहता है।
पैरिएपिकल ग्रेन्यूलोमा : इसमें समस्त लक्षण नासूर जैसे ही होते हैं। बस, एक अन्तर यह होता है कि फोड़ा दांत की जड़ के ऊपर बनता है, जिसमें से मवाद निकलता रहता है।
साडर्स जमना : दांतों की उचित देखभाल न करने, तम्बाकू सेवन एवं अन्य अनेक (वंशानुगत आदि) कारणों से दांतों में गंदगी (साडर्स) जमा होने लगती है। ऐसे में तम्बाकू आदि का सेवन नहीं करना चाहिए। साथ ही दांतों की उचित सफाई के साथ-साथ ‘बेप्टेशिया’, ‘हायोसाइमस’, ‘म्यूरियाटिक एसिड’, ‘स्टेफिसेग्रिया’ आदि दवाएं अत्यंत लाभदायक हैं। यदि मसूड़ों में सूजन, खून, मुंह से बदबू एवं दांतों पर काली परत जमी हो और दंतक्षय भी हो, तो ‘स्टेफिसेग्रिया’ एवं ‘क्रियोजोट’ दवाएं अत्यंत कारगर हैं।
टी एम जे डिसाडर्स : बहुत-से लोगों को लगातार सिरदर्द, कान दर्द रहता है, जो दांतों की समस्या के कारण हो सकता है। इसे ‘टैम्पोरो मैडिबूलर डिसाडर्स’ कहा जाता है। किन्हीं कारणोंवश जब मांसपेशियां और जबड़ा एक साथ ठीक ढंग से काम नहीं करते, तो प्रतिक्रियास्वरूप चेहरे में और इर्द-गिर्द दर्द होने लगता है। यह दर्द कान व गर्दन तक भी फैल सकता है। मैंडिबिल हड्डी में गलाव, जबड़ा खोलने में परेशानी एवं किर्र-किर्र की आवाज होना आदि लक्षणों के मिलने पर ‘हेक्ला-लावा’ नामक होमियोपैथिक औषधि अत्यन्त फायदेमंद है।
ब्रश से संबंधित : दांतों और मसूड़ों के मिलने के स्थान पर ध्यान रखें, ब्रश को ज्यादा दबाव देकर इस्तेमाल न करें, दांतों के अन्दर और बाहर-दोनों सतहों पर सफाई होनी चाहिए। दांतों में फंसे हुए टुकड़ों को अवश्य निकाल दें। दिन में दो बार ब्रश अवश्य करें (रात में सोने से पूर्व ब्रश करें)। ब्रश घिस जाने पर नया ब्रश इस्तेमाल करें। घिसा ब्रश मसूड़ों के लिए नुकसानदायक है, जीभ को भी नियमित साफ रखना आवश्यक है, अन्यथा मुंह से बदबू आती रहेगी। फ्लोराइडयुक्त टूथपेस्ट अधिक फायदेमंद होते हैं, क्योंकि फ्लोराइड दांतों की इनेमल को मजबूत बनाता है एवं प्लाक में बनने वाले जीवाणुओं को मारता है। बार-बार शर्करा (मिठाई) दांतों के लिए हानिकारक है, क्योंकि इससे लार की अम्लता बढ़ती है और बैक्टीरिया (जीवाणु) अधिक तीव्रता से पनपने लगते हैं। सिगरेट, तम्बाकू, पान, बीड़ी, पान-मसाले का प्रयोग न करें।
भोजन और दंत स्वास्थ्य : अच्छे और संतुलित आहार का दांतों के सौन्दर्य और स्वास्थ्य पर बहुत प्रभाव पड़ता है। प्रत्येक मनुष्य को प्रोटीन, हरी सब्जियां, दूध से बनी वस्तुएं तथा फल जरूर खाने चाहिए, किन्तु खट्टे फल, जैसे संतरा व नीबू बार-बार नहीं खाने चाहिए। कैल्शियम हड्डियों एवं दांतों को मजबूत बनाता है। प्रत्येक मनुष्य को प्रतिदिन 7 से 7.5 ग्राम कैल्शियम की आवश्यकता पड़ती है, जो हमें दूध, पनीर, मछली, फल, हरी सब्जियों आदि से मिलता रहता है।
उपचार
दांतों का दर्द : प्लेन्टेगो – दांतों के दर्द की यह महौषधि है। किसी भी कारण से दांत में दर्द हो, तो प्लेन्टेगो मेजर 3 शक्ति की 5-6 गोली 10 -10 मिनट तक चूसनी चाहिए। इसके मूल अर्क में रूई भिगोकर दुखते दांत और मसूड़े पर घिसना चाहिए। गाल का वह हिस्सा, जो दुखते हुए दांत के पास हो और दुख रहा हो, उस पर भी मूल अर्क लगाकर मलना चाहिए और जिस तरफ का दांत दुखता हो, उस तरफ के कान में एक बूंद मूल अर्क में रूई भिगोकर कान के अन्दर डालकर घुमा देना चाहिए। इतने उपाय करने से दांत का दर्द बंद हो जाता है।
• गर्भवती स्त्री को यदि दांत में दर्द हो, तो ठण्डी प्रकृति की स्त्री को ‘कैल्केरिया कार्ब’ 30 शक्ति में और गर्म प्रकृति की स्त्री को, जिसे प्यास न लगती हो और बेहद पसीना आता हो, ‘पल्सेटिला’ 30 शक्ति की 5-6 गोली चूसने से दांत का दर्द बन्द हो जाता है। गर्भावस्था में पल्सेटिला औषधि का प्रयोग कम करना चाहिए।
मर्कसॉल : यदि प्लेन्टेगो के प्रयोग से 1-2 घण्टे में भी आराम न हो, तब इस दवा का सेवन करना चाहिए। इस दवा के लक्षण हैं – दांत का ऊपरी हिस्सा सड़ चुका होना, मुंह में लार भरी रहती हो, फिर भी प्यास लगती हो और रात में दर्द बढ़ जाता हो, तो ‘मर्कसॉल’ 30 शक्ति की 5-6 गोली चूसनी चाहिए। लाभ न हो, तो घण्टे भर बाद एक खुराक और ले लेनी चाहिए। यह मसूड़ों के सड़ने पर भी दी जाती है।
स्टेफिसेग्रिया : दांत छूने से दर्द करें या ठंडा पानी लगने से दर्द होने लगे, तब‘स्टेफिसेग्रिया’ 30 शक्ति की 5-6 गोली सुबह-शाम चूसनी चाहिए।
कॉफिया क्रूडा : इस दवा का मुख्य लक्षण यह है कि ठंडा पानी लगने से दर्द में आराम हो जाता है। जब मुंह की ठंडक खत्म हो जाती है, तब फिर दर्द होने लगता है। इस लक्षण पर ‘कॉफिया क्रूडा’ 200 शक्ति की 5-6 गोली की एक ही खुराक लेने से दर्द में आराम हो जाता है।
स्पाइजेलिया : इस दवा का विशेष लक्षण यह है कि दांत दिखते तो ठीक हैं, पर दर्द करते हैं। दिन में दर्द नहीं होता, रात में ही होता है और दिन में तभी होता है, जब खाना खा लिया जाए। खाना खाते समय या कोई चीज चबाते समय दर्द नहीं होता, खाने के बाद होता है। इन लक्षणों पर ‘स्पाइजेलिया एन्थेलमिण्टिका’ 30 शक्ति की 5-6 गोली चूसनी चाहिए।
मसूड़े सड़ना, पस व खून आना –
साइलेशिया : मसूड़े फूलना व सूजना, दर्द होता हो, मुंह में गर्म चीज जाने पर आराम मालूम दे, तो ‘साइलेशिया’ 30 शक्ति में 5-6 गोली सुबह-शाम चूसनी चाहिए।
हेक्ला लावा : पायरिया रोग की यह एक उत्तम दवा है। मसूड़े पकना, फूलना, सड़ना, पस पड़ना, दांतों में कीड़ा लगना, मसूड़े सूजना एवं दुखना आदि लक्षणों पर हेक्ला लावा अन्य सभी दवाओं से अधिक गुणकारी दवा है। इसकी 2 × शक्ति का 2 ग्राम चूर्ण 15 ग्राम वैसलीन या ग्लिसरीन में मिलाकर मसूड़ों एवं दांतों पर लगाना चाहिए। बच्चों के दांत निकलते समय उनके मसूड़ों पर लगाना हितकारी रहता है। लगातार कुछ समय तक सुबह-शाम इसे दांत व मसूड़ों पर लगाते रहने से पायरिया के सारे लक्षण लुप्त हो जाते हैं। पायरिया के रोगी को कठोर पदार्थ नहीं खाने चाहिए, प्याज-लहसुन, तेज मिर्च-मसाले, मांस अंडा, तम्बाकू और तीखे पदार्थ नहीं खाने चाहिए। दातून या ब्रश नहीं करना चाहिए, बल्कि उंगली से आहिस्ता-अहिस्ता मंजन करना चाहिए। अगर दांतों के बीच दूरी हो, तो उनमें फंसे हुए कण दांत-कुरेदनी से निकालकर पानी से कुल्ले करके मुंह साफ करते रहना चाहिए। दांतों में फंसे कण सड़कर बदबू पैदा करते हैं। इसलिए मुंह साफ रखना जरूरी है। दांतों की व्याधियों को दूर करने वाली इन दवाइयों को अपने अनुभव में गुणकारी पाया है।
लाभदायक होमियोपैथिक टिप्स
• गले के बाहर की ओर दर्द होने पर – लैकेसिस
• टॉन्सिल में सूजन, दर्द, टॉन्सिल में घाव और छेद हो जाना – कैल्केरिया आयोड
• मोतियाबिंद, धुंधला दिखना, आंख के आगे चिंगारियां – सी उड़ती दिखें और सफेद त्वचा में दाग रहे तो – कैल्केरिया पलोर