शिशु के जन्म के साथ ही उसके तन-मन के वृद्धि विकास की प्रक्रिया आरम्भ हो जाती है।
सामान्यतः बच्चा जन्म के साथ ही रोता है और संवेदना का अनुभव करता है। फिर 1-2 दिन तक वह अपनी आंखें कम ही खोलता है। उसके हिलने तथा अंग चलाने का क्रम तो मां के पेट से ही शुरू हो चुका होता है। बस इसी प्रकार और इसी गति से उसके प्रत्येक अंग की वृद्धि और विकास की प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है। यदि उसके स्वास्थ्य में कोई विकास या रोग होता है, तो यह प्रक्रिया अवरुद्ध हो जाती है या मंद पड़ जाती है।
वृद्धि विकास के मापदंड : बच्चे की वृद्धि की प्रक्रिया सही तरह से हो रही है या नहीं, इसे जानने के लिए निम्न बातों की जानकारी होना आवश्यक है।
वजन : स्वस्थ बच्चों का जन्म के समय वजन 2.5 से 3.5 कि.ग्रा. के बीच होता है। जन्म के बाद प्रथम सप्ताह में बच्चा अपने मूल वजन का 10 प्रतिशत वजन (लगभग 250-300 ग्राम) गंवा देता है, किन्तु बाद के दस दिनों में वह अपना खोया वजन पुनः प्राप्त कर लेता है। तत्पश्चात् होने वाली वजन वृद्धि की प्रक्रिया नियमित होने पर प्रतिदिनं 20-30 ग्राम वजन की वृद्धि होती है। इस प्रकार लगभग एक माह के अंत में उसका वजन लगभग 500 ग्राम बढ़ता है।
लम्बाई : जन्म के समय बच्चे की औसत लम्बाई करीब 50 सेंमी. या 20 इंच होती है। बच्चे को यदि पर्याप्त पोषक आहार प्राप्त हो, उसके तन-मन का स्वास्थ्य ठीक रहे और अपवाद स्वरूप कोई क्षति न हो, तो एक महीने के अंत तक उसकी लम्बाई में करीब एक इंच की वृद्धि होती है अर्थात् वह औसतन 21 इंच लम्बाई का हो जाता है। वृद्धि की यह प्रक्रिया 9 -10 वर्ष तक सामान्य रूप से चलती रहती है। फिर 11 से 14 वर्ष की उम्र के दौरान बच्चे की लम्बाई अधिक तेज (वेगवान) बनती है। अधिकतर लड़कों की लम्बाई लड़कियों से अधिक होती है।
सिर का घेरा : जन्म के समय बच्चों के सिर का घेरा औसत रूप से 33-35 सेंमी. तक होता है, किन्तु एक माह के अंत में उसमें करीब 13 सेंमी. के लगभग वृद्धि होती है। इस प्रकार उसमें क्रमशः वृद्धि होती है।
छाती का घेरा : यह विचित्र-सी बात है कि स्वस्थ बच्चे की छाती का घेरा उसके जन्म काल में उसके सिर के घेरे की अपेक्षा एक से दो सेंमी. (1-2 सेंमी.) कम होता है, किन्तु उसमें दिन-प्रतिदिन वृद्धि होती है। करीब 10-11 माह पर छाती का घेरा सिर के घेरे के बराबर हो जाता है।
मज्जा तंत्र और इंद्रियों का विकास : बच्चे की प्रत्येक हलचल और आंख, नाक, कान, जीभ, त्वचा आदि इंद्रियों की कार्यक्षमता की वृद्धि को हम ‘विकास’ के रूप में पहचानते हैं। जन्म के तुरन्त बाद बच्चा संवेदनाओं को महसूस कर सकता है।
थर्ड टु हर्ड : तीसरे महीने में सुनता है या चौंक कर सामने देखता है।
फोर्थ टु फ्राग : चौथे महीने में पैर के बल सरकने लगता है।
सिक्स टु सिट : छठे महीने में बैठता है।
ऐट टु स्ट्रेट : आठवें महीने में खड़ा होता है।
वन टु वाक : एक वर्ष में चलता है।
टू टु टॉक : दूसरे वर्ष तीन शब्दों का वाक्य बोलता है।
यदि आपका बच्चा शिशु बुद्धि विकास की उपर्युक्त बातों के अनुसार आचरण करता है, तो समझ लीजिए कि वह शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से सक्षम है और उसका विकास ठीक से हो रहा है।
शिशु काल में वृद्धि-विकास की महत्त्वपूर्ण बातें:
1. सिर और गर्दन का संभालना – 4-6 माह की उम्र में।
2. मुस्कराना – 8 सप्ताह की उम्र में।
3. माता-पिता को पहचानना – 3 माह की उम्र में।
4. प्रथम दांत निकलना – 6 से 7 माह की उम्र में।
5. बैठना – 6 माह में।
6. मामा, दादा, पापा बोलना – 9 माह में।
7. सहारे से खड़ा होना – दस माह में।
8. बिना सहारे खड़ा होना – एक वर्ष की उम्र में।
9. पैरों से चलना – 13-15 माह में।
10. कपड़े बदलना – 3 से 5 वर्ष में।
दांतों के निकलने का समय : बच्चे के 6-8 माह की उम्र में दांत निकलने शुरू होते हैं। प्रारम्भ में दूध के दांत निकलते हैं। इस प्रक्रिया के दौरान माता-पिता को बच्चे का ध्यान रखना चाहिए। सामान्यतः दांत निम्न समयानुसार निकलते हैं।
1. बीच में सामने के दो दांत, नीचे के जबड़े में 6-8 महीने में निकलते हैं।
2. इर्द-गिर्द के सामने के चार दांत, ऊपर के जबड़े में 8-9 महीने में निकलते हैं।
3. पहली चार दाढ़े, ऊपर-नीचे दोनों जबड़ों में, दोनों ओर 12-16 महीनों में आती हैं।
4. अन्य दाढ़े, ऊपर-नीचे के जबड़ों में दोनों ओर 12-16 महीने में आती हैं।
5. ढाई वर्ष की उम्र में बच्चे के पूरे 20 दांत (दूध के) होते हैं।
उपचार
प्रायः ऐसी उम्र के बच्चों को दस्त, उल्टी, बुखार, गर्दन की लिम्फ ग्रंथियों की सूजन, मिट्टी खाना, जमीन चाटना आदि विकार ही ज्यादा होते हैं। जिनमें क्रमशः ‘कैल्केरिया कार्ब’, ‘कैल्केरिया फॉस’, ‘कैमोमिला’ दस्त के लिए,’एथूजा’ उल्टी के लिए, ‘बेसीलाइनम’ एवं ‘आर्स आयोड’ ग्रंथि सूजन के लिए, ‘कैल्केरिया कार्ब’ व ‘एल्युमिना’ मिट्टी-चाक आदि खाने पर, पेट में कीड़े होने पर ‘सिना’, ‘चीनीपोडियम’, बुखार होने पर उपरोक्त में से कोई अथवा लक्षणों के आधार पर अन्य दवा का चुनाव करके दिया जाना हितकर रहता है। दांत निकलते समय बच्चों को ‘कैल्केरिया फॉस’ 3x एवं ‘फेरमफॉस’ 3 × में खिलानी चाहिए। इससे दांत आसानी से बिना किसी परेशानी के निकलते हैं व हड्डियां मजबूत बनती हैं। यदि दस्त होने लगें, तो ‘फेरमफॉस’ बन्द कर देनी चाहिए। 6 माह तक मां को बच्चे को अपना दूध ही पिलाना चाहिए। बच्चे की साफ-सफाई, मालिश एवं परवरिश का बखूबी ध्यान रखना आवश्यक है।