परिचय : 1. इसे हिंगु (संस्कृत), हींग (हिन्दी), हिंग (बंगला), हिंग (मराठी), हींग (गुजराती), पेरूगायम (तमिल), इंगु (तेलुगु), हिल्लीत (अरबी) कहते हैं।
लेटिन नाम – फैर्यूला आसाफोइटिडा (Ferula asafoetida)
2. हींग का वृक्ष छोटा, झाड़ के समान 6-8 फुट तक ऊँचा होता है। हींग के पत्ते अनेक भागों में विभक्त, अजमोदा के पत्तों के समान 1-2 फुट लम्बे पक्षयुक्त होते हैं। एक डंठल में एक ही पत्ता होता है। हींग के फूल गुच्छों में टहनियों के अन्त में तथा फल तिहाई इंच लम्बे और चौथाई इंच चौड़े, अंडाकार होते हैं।
3. हींग भारत में पंजाब तथा कश्मीर में मिलती है। अधिकतर पेशावर, काबुल, फारस तथा अफगानिस्तान आदि में होती है।
4. मुख्यत: हींग दो तरह की है – हीरा हींग (सफेद वृक्ष का निर्यास, हीरे के समान चमकदार) तथा हींगड़ा या हींग (काली जाति का दुर्गन्धित निर्यास)। वर्तमान बाजार में हींग की अनेक शुद्ध-अशुद्ध जातियाँ देखने में आती हैं। पुराने वृक्ष की जड़ मूल से कुछ छोड़कर तिरछी काट देते हैं, तो कटे भाग पर रस जम जाता है। इसी प्रकार कई बार थोड़ा छोड़कर काटते रहने पर पर्याप्त मात्रा में निर्यास एकत्रित हो जाता है। यही हींग है। चाकू से जड़ की छाल उतारकर भी निर्यास संग्रह किया जाता है। एक वृक्ष से लगभग 2 से 6 छटाँक तक हींग प्राप्त हो सकती है।
रासायनिक संघटन : इसमें उड़नशील तेल 6 -10 प्रतिशत, राल (एसार-सोनोटा एत्रोल) 65 प्रतिशत, क्षार व लवण 3-4 प्रतिशत, फेरूएलिक एसिड, एसेटिक एसिड, मेल्की एसिड, फॉर्मिक एसिड होते हैं।
हींग के गुण : हींग रस में चरपरी, पचने पर कड़वी तथा गुण में हल्की, चिकनी और तीक्ष्ण है। यह शूलहर, वायुसारक, कृमिनाशक, हृदय को बलदायक, कफनि:सारक, मूत्रजनक और आर्तवजनक है। इसका मुख्य प्रभाव वातनाड़ी संस्थान पर होता है।
प्रकृति – हींग पित्तप्रधान प्रकृति का होता है। यह गर्मी पैदा करता है। अत: गर्भवती महिला को नहीं देना चाहिये। इसे अल्प मात्रा में प्रयोग करें। यह वायुनाशक होता है। अत: मसाले के रूप में सेवन करना लाभकारी है।
सेवन विधि – चने की दाल के बराबर हींग निगलकर भर पेट पानी ऊपर से पीना चाहिये। बच्चों को कम दें।
शुद्ध हींग की पहचान – (1) हींग में रंगा हुआ गोंद या राल मिला देते हैं। शुद्ध हींग की पहचान है – इसे पानी में घोलने से सफेद रंग का घोल बनता है। यदि घोल का रंग सफेद हो तो शुद्ध है। (2) हींग को माचिस से जलाने पर यदि पूरा जल जाये तो हींग शुद्ध है, असली है। शुद्ध हींग अति सुगन्धित होता है। (3) अशुद्ध या कृत्रिम हींग पानी में घोलने पर नीचे बैठ जाता है।
पसीना निकालने के लिए – ज्वर, बदन में दर्द होने पर पसीना आने से लाभ होता है। पसीना निकालने के लिए हींग, अजवायन, सेंधा नमक, सोंठ सभी समान मात्रा में मिलाकर पीस लें। इसकी आधा चम्मच गर्म पानी के साथ फंकी लेकर कम्बल ओढ़कर सो जायें। इससे रोम-रोम से पसीना निकलेगा। चार-चार घण्टे से दो खुराक इसी प्रकार लें।
जलना – जरा-सा हींग पानी में घोलकर जले हुए स्थान पर लगाने से शीघ्र जलन बन्द हो जातीं है। फफोला नहीं उठता।
कान में दर्द – ठण्ड से कान में दर्द होने पर जरा सी हींग एक चम्मच सरसों के तेल में उबालकर, इस तेल की दो बूंदें कान में टपकाने से दर्द शीघ्र ठीक हो जाता है।
दर्द – हींग को घी में सेंककर, पीसकर गर्म पानी में घोलकर दर्द वाले स्थान पर लेप करने से दर्द ठीक हो जाता है।
मोतियाबिन्द – सौंफ, बच, हींग और सोंठ सब समान मात्रा में लेकर पीस लें। इसकी चौथाई चम्मच नित्य प्रात: शहद मिलाकर चाटें। एक माह निरन्तर सेवन करने से लाभ होगा।
आमवात – जोड़ों में दर्द हो, पैर में दर्द हो तो सुबह-शाम हींग, मूंग की दाल-बराबर एक गिलास पानी में डालकर उबालें तथा उबलते हुए आधा पानी रहने पर नित्य कुछ दिन पियें।
पसली का दर्द – हींग को गर्म पानी में घोलकर जिन पसलियों में दर्द हो रहा हो, वहाँ लेप करें।
सिरदर्द – सर्दी से सिरदर्द हो तो हींग गर्म पानी में घोलकर लेप करें।
सिरदर्द (आधे सिर में) – हींग को पानी में घोलकर सूंघने से आधे सिर का दर्द ठीक हो जाता है।
कब्ज़ – जरा-सा हींग व मीठा सोडा, चार चम्मच सौंफ सबको पीसकर एक चम्मच सुबह-शाम गर्म पानी के साथ फंकी लें। कब्ज़ दूर हो जायेगी।
अचार – बर्तन में पहले हींग का धुआँ दें, फिर उसमें अचार भरें। इससे अचार खराब नहीं होता।
पेट दर्द, गैस, डकारें आने पर हींग को गर्म पानी में घोलकर नाभि के आस-पास लेप करें तथा भुना हुआ हींग आधा ग्राम किसी भी चीज के साथ खाने से लाभ होता है। इसके सेवन से भूख बढ़ती है। यदि पेट दर्द वायु रुकने से हो तो 2 ग्राम हींग आधा किलो पानी में उबालें। चौथाई पानी रहने पर गर्म-गर्म पिला दें।
पेट दर्द – (1) मूंग के बराबर हींग को गुड़ में लपेटकर गर्म पानी से लें। गैस का पेट दर्द ठीक हो जायेगा। हींग को पानी में घोलकर नाभि के आसपास लेप करने से दर्द शीघ्र ठीक हो जाता है। हींग को घी के साथ हल्की आँच पर भून कर उसका चूर्ण बना कर रखें। पेट दर्द होने पर थोड़ा-सा चूर्ण पानी में घोल कर पीने से तुरन्त लाभ होता है। (2) बच्चा रोता हो, हाथ-पैर पटके, हाथ पेट की ओर ले जाये तो यह पेट दर्द का संकेत है। मूंग की दाल के बराबर हींग माँ के दूध में घोलकर बच्चे को पिलायें। पेट का सेंक करें। पेट दर्द ठीक हो जायेगा। इसके बाद राई व हींग को पीसकर पतला लेप नाभि के आसपास लगायें, बच्चों को आराम मिलेगा।
अपच – हींग, छोटी हर्र, सेंधा नमक, अजवायन – ये सब समान मात्रा में मिलाकर पीस लें। एक चम्मच नित्य तीन बार गर्म पानी के साथ फंकी लेने से अपच ठीक हो जाता है।
पेट दर्द, अपच – सेंकी हुई हींग और जीरा, सोंठ व सेंधा नमक मिलाकर चौथाई चम्मच गर्म पानी के साथ फंकी लें।
हैजा – जरा-सी हींग एक कप पानी में घोलकर पीने से हैजा के कीटाणु क्रियाशील नहीं रहते। मक्खी, मच्छर भगाने के लिए घर में आग पर हींग डालकर धुआँ फैलायें।
उल्टी – 5 ग्राम भुना हुआ हींग, चार चम्मच अजवायन, बीज सहित दस मुनक्का, स्वादानुसार काला नमक, सबको कूट-पीसकर चौथाई चम्मच नित्य तीन बार लेने से उल्टी होना, जी मिचलाना ठीक हो जाता है।
दस्त – आम की गुठली सेंककर गिरी निकाल लें। ऐसी गिरी 50 ग्राम में 5 ग्राम हींग सेंककर डालें। स्वादानुसार सेंधा नमक मिलाकर पीस लें। यह चूर्ण चौथाई चम्मच तीन बार रोजाना ठण्डे पानी के साथ फंकी लें। दस्त बन्द हो जायेंगे।
बाला (नारू) – (1) 60 ग्राम मोठ के आटे में दो चने-भर हींग मिलाकर पानी में घोलकर गर्म करें। जब लेई जैसा हो जाए, उतारकर बाला (नारू) पर इसकी पट्टी बाँधे। इस पुल्टिस से बाला का सूत-सा निकल जायेगा। (2) हींग में सरसों का तेल डालकर सेंक लें और जहाँ से नारू निकल रहा हो वहाँ यह तेल लगायें। लाभ होगा। (3) हाथ-पैरों में कहीं भी सूजन होकर एक फफोला-सा उठता है। फिर फफोला फटकर उसमें से तांत के समान एक धागा-सा निकलता है। यह बाला है। 5 ग्राम हींग एक गिलास ठण्डे पानी में घोलकर सुबह-शाम चार दिन पीने से बाला रोग कभी नहीं होता।