किसी मादक पदार्थ (प्राकृतिक अथवा कृत्रिम) का नियतकालीन एवं दीर्घस्थायी सेवन जो कि किसी व्यक्ति विशेष अथवा समाज के लिए घातक हो, अवरोधक हो, उसे ही नशाखोरी कहना समीचीन है। यह विश्व स्वास्थ्य संगठन की 1957 में प्रकाशित रिपोर्ट में पारिभाषित किया गया है। इसके मुख्य लक्षण हैं – (1) मादक पदार्थ को लेने की प्रबल इच्छा और इसे प्राप्त करने के लिए कोई भी तरीका अपनाना, (2) मादक पदार्थ की मात्रा बढ़ाते जाना, (3) मानसिक एवं शारीरिक अधीनता।
इन मादक पदार्थों को हम मुख्यत: निम्न प्रकारों में बांट सकते हैं:
नारकोटिक्स : बेहोश करने वाली निद्राकारी औषधि -जैसे अफीम, हेरोइन आदि।
डिप्रैसेन्ट्स : चंचल कराने वाली औषधि-जैसे मदिरा।
स्टीमुलेन्ट्स : उत्तेजक-प्रोत्साहक औषधि-जैसे कोकीन।
हाल्युसिनोजेन्स : मतिभ्रम, इन्द्रजाल पैदा करने वाली औषधि-जैसे धतूरा आदि।
कैनाबिस : कल्पना लोक में पहुंचाने वाली औषधियां-जैसे चरस, गांजा आदि।
किसी भी नशे के रोगी का इलाज प्रारम्भ करने से पूर्व निम्न बातों पर ध्यान देना आवश्यक है -शराब, सिगरेट अथवा मादक पदार्थ के सेवन की आदत यदि रोगी के पिता अथवा परिवार के किसी सदस्य में रही हो, जिसकी वजह से रोगी को स्वयं से ही उनकी देखा-देखी नशा करने की आदत पड़ गई हो, पारिवारिक परिस्थितियां जैसे तनाव, व्यवसाय से असंतुष्ट, अशिक्षा अथवा प्रेम, जलन आदि की वजह से नशे की लत का शिकार हुआ हो। बुरे लोगों की संगति में रहना, घर-परिवार-समाज से बिलकुल कट जाने की भावना भी व्यक्ति को नशे के शिकंजे में कस सकती है।
नशा करने का कारण
बेरोजगारी, रोजगारपरक व चरित्र निर्माण करने वाली शिक्षा की कमी, अधिक जेब खर्च मिलना, कुछ नया करने की इक्छा, अकेलापन, आर्थिक तंगी, घरेलु कलह, गलत संगति, जागरुकता का अभाव आदि।
चिकित्सा का प्रारूप
नशे के रोगियों का इलाज करने के लिए बहुआयामी प्रारूप की आवश्यकता होती है। इसमें मानसिक,शारीरिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक पहलुओं पर गौर किया जाता है। प्रथम भाग में, मरीज की दवाओं द्वारा, व्याख्यानों द्वारा, शिक्षाप्रद सामग्री द्वारा एवं वार्तालाप द्वारा नशे की लत छुड़ाने का प्रयास करते हैं। दूसरे भाग में, मरीज की पूर्वस्थिति में (रोग से मुक्त की अवस्था) पहुंचाने की प्रक्रिया प्रारम्भ होती है। इस अवस्था में रोगी डाक्टर, नर्स इत्यादि के साथ दैनिक प्रक्रियाएं प्रारम्भ करता है।
तीसरे भाग में, खेलकूद, सैर, समूह व्याख्यान द्वारा रोगी को ठीक स्थिति में लाने का प्रयास किया जाता है। चौथे भाग में, ठीक रोगी की दीर्घकालिक देखभाल आवश्यक होती है। इस भाग की सफलता के लिए रोगी के परिवार के सदस्यों एवं अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा देखभाल की आवश्यकता होती है।
नशा छुड़ाने की प्रक्रिया
रोगी को मादक पदार्थ प्राप्त नहीं होने से भूख लगती है, हर वक्त सोता रहता है, पसीना बहुत आता है, हाथ-पैरों में ऐंठन होने लगती है और मरीज उदास हो जाता है। कमजोरी, चिड़चिड़ाहट, बेचैनी, ऐंठन एवं मतिभ्रम पहले कुछ दिन महसूस होता है। मरीज ‘खूंखार’ व्यवहार कर सकता है।
जम्हाई आना, नाक से पानी बहना, पसीना आना, आंखों से पानी आना, नींद न आना प्रमुख लक्षण हैं। पुतली का फैल जाना, ऐंठन (मांसपेशियों की) अन्य लक्षण हैं। मरीज पीठ और पेट में दर्द की शिकायत करता है और सर्दी-गर्मी के झटके महसूस होते हैं। कुछ समय के लिए बेचैनी, उल्टी-दस्त आदि के लक्षण भी मिलते हैं। शरीर का तापमान, सांस एवं पसीना बढ़ जाते हैं, किंतु 7-10 दिन के अन्दर सभी लक्षण धीरे-धीरे दूर हो जाते हैं। नींद न आना, बेचैनी, कमजोरी कुछ समय बनी रह सकती है।
नशा छुड़ाने का होम्योपैथिक उपचार
शराब की आदत छुड़ाने के लिए जहां ‘एवेना सैटाइवा’ (मदर टिंचर), ‘क्योरकूस’ (मदर टिंचर) एवं ‘इंजिरिका’ (मदर टिंचर) काफी कारगर सिद्ध हुए हैं, वहीं अधिकतर मादक पदार्थों का सेवन छोड़ने के बाद प्रकट होने वाले लक्षणों में प्रमुख ‘नींद न आना’ में ‘पैसीफ्लोरा’ मदर टिंचर, उल्टी वगैरह होने पर ‘इपिकॉक’ (30 शक्ति), सिरदर्द होने पर ‘बेलाडोना’ (200 शक्ति), बदन दर्द साथ में होने पर ‘रसटॉक्स’ (200 शक्ति), चिड़चिड़ापन होने पर ‘कैमोमिला’ और बेचैनी एवं कमजोरी होने पर ‘आर्सेनिक एल्बम’ आदि दवाएं अत्यंत लाभप्रद एवं कारगर साबित होती हैं। मुंह से अत्यधिक लार गिरना जारी रहे, तो ‘मर्कसॉल’ काफी उपयोगी है। लगातार लक्षण बदल रहे हों, पर एक जगह से दूसरी जगह स्थानान्तरित हो रहे हों, तो ‘पल्सेटिला’ नामक औषधि अत्यन्त लाभकारी है। हेरोइन और स्मैक के रोगियों में, अधिकतर इसी तरह के लक्षण मिलते हैं और होमियोपैथिक दवाओं से मात्र 15 से 20 दिनों के अन्दर ही सारी परेशानियों पर काबू पा लिया जाता है। औषधियों का सेवन 30 शक्ति से शुरू करें।
यदि कोई युवा अनेक रोगों से पीड़ित है और उस कारणवश शराब व नशा करता है, तो उसमें ‘लेकेसिस’ 200 शक्ति अभूतपूर्व कार्य करेगी। यदि रोगी बहुत दुबला-पतला है, चेहरा पीला है, तो उसको ‘फॉस्फोरस’ देने से उसकी शराब की आदत छूट जाएगी।
• इसके अतिरिक्त शराब व नशीली चीजों को छुड़ाने के लिए ‘ओपियम’ 200 शक्ति, ‘कैल्केरिया कार्ब’ 200 शक्ति का भी इस्तेमाल किया जाता है। कभी-कभी ऐसी स्थिति भी आती है कि रोगी को बगैर बताये दवाइयां पानी में दे दी जाती हैं। इन दवाइयों के देने से इस प्रकार की स्थिति आ जाती है कि उन्हें नशीले पदार्थों से घृणा हो जाती है और वह नशीली चीजें छोड़ देता है। डा. हैरिंग का यह कहना है कि जो लोग शराब पीते हैं, वे लोग कॉफी भी पीते हैं इस प्रकार के रोगियों को ‘नक्सवोमिका’, ‘इग्नेशिया’ या ‘कैमोमिला’ देने से यह आदत छूट जाती है।
• रोगी बहुत कमजोर व निराश हो और नींद न आती हो, तो उसको ‘केलीब्रोम’ 30 शक्ति की एक मात्रा सुबह-शाम दें।
• यदि रोगी को चक्कर आते हों, शरीर कांपता है, नींद नहीं आती है, डरता है और चुपचाप पड़ा रहता है, तब उसको ‘जेलसीमियम’ की एक खुराक रोज दें।
यदि रोगी ने बहुत अधिक सुलफा, गांजा व भांग पी है और उसके कारण उसको नींद नहीं आती, शरीर कांपता है, अत्यधिक कमजोरी है, तो उसको एक खुराक ‘एवेना सैटाइवा” मदर टिंचर की 15 बूंद पानी में रोज दें।
शराब एवं अन्य नशों को छोड़ने के लिए
पहले दिन ‘सल्फर’ 200 शक्ति की 10-12 गोलियां मुंह में रखकर चूस लें। इस दिन कोई और दवा न लें। दूसरे दिन रात को ‘नक्सवोमिका’ 200 शक्ति की 10-12 गोलियां, सोते समय सिर्फ एक बार चूस लें। (किसी भी होमियोपैथिक दवा को खाने के आधा घंटा पहले व आधा घंटा बाद तक कुछ नहीं खाना-पीना चाहिए।) छ: दिन तक रात में ‘नक्सवोमिका’ लेने के बाद सातवें दिन फिर ‘सल्फर’ 200 शक्ति की एक खुराक ले लें। उस दिन रात में ‘नक्सवोमिका’ न लें। अफीम-गांजा पीने वाले इसके अलावा ‘एवेना सैटाइवा’ मदर टिंचर की 50-55 बूंदें आधा कप पानी में घोलकर पी लें। तीन घंटे बाद ‘पैसीफ्लोरा’ औषधि (मदर टिंचर) 50-55 बूंदें आधा कप पानी में डालकर पी लें। ऐसा दिन में दो बार करें। फिर रात में ‘नक्सवोमिका’ 200 शक्ति की एक खुराक ले लें।
इसके बाद नींद न आना, बेचैनी, छटपटाहट व अंट-शंट प्रलाप करने की भी शिकायतें रहती हैं। इन शिकायतों को दूर करने वाली दवाएं हैं – ‘बेलाडोना’, ‘हायोसाइमस’ और ‘स्ट्रामोनियम’, बहुत ज्यादा प्रलाप करता हो, तेजी से बड़-बड़ करता हो, तो ‘बेलाडोना’, बिस्तर से उठ-उठ कर भागता हो, तो ‘स्ट्रामोनियम’ और यदि मध्यम स्थिति हो, तो ‘हायोसाइमस’ देनी चाहिए। इस स्थिति के रोगी को लोक-लाज और मर्यादा का ख़्याल नहीं रहता। वह अपने कपड़े भी उतार फेंकता है। शक्ति का चुनाव लक्षणों की प्रचण्डता के आधार पर करना चाहिए। इसी प्रकार जिनके हाथ-पैरों में कम्पन होता हो, उनके लिए ‘एण्टिमटार्ट’ औषधि बहुपयोगी है। जिन्हें नशा न करने के कारण बेचैनी होने से नींद न आती हो, उन्हें ‘स्कुटैलेरिया’ औषधि के मूल अर्क की 20-22 बूंदें आधा कप कुनकुने पानी में सोते समय पिलानी चाहिए, किंतु इस सबके साथ ही नशा छोड़ने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति का होना अत्यावश्यक है।
• शराब की आदत को छुड़ाने में ‘एपोसायनमकैन’ औषधि मूल अर्क में एवं ‘सल्फ्यूरिक एसिड’ औषधि 6 शक्ति में अत्यंत कारगर रहती है।
• हाथ-पैरों में ऐंठन रहने पर ‘जिंकम मेट’ 30 शक्ति में, छाती में जकड़न रहने पर ‘क्यूप्रममेट’ 30 शक्ति में, हाथ-पैरों में अजीब-सी सनसनाहट, बेचैनी रहने व दबाने पर आराम मिलने पर ‘मैगफॉस’ 200 में देनी चाहिए।
• हाथ-पैरों-शरीर के दर्द में उसी करवट लेटने पर दर्द बढ़े, तो ‘कालीकार्ब’ 30 में लें।
नशे की लत से 21 दिन में छुटकारा
1. पहला दिन – रात को सोते समय ‘नक्सवोमिका’ 200 शक्ति की 10-12 गोलियां मुंह साफ करके चूस लेनी चाहिए। दवा लेने से आधा घण्टे पहले से और आधा घण्टे बाद तक कोई चीज खाएं-पिएं नहीं। यह दवा सोने से पहले, पानी से कुल्ले करके मुंह साफ करके लेनी चाहिए और इसके बाद फिर कुछ खाना या पीना नहीं चाहिए।
2. दूसरा दिन – सुबह खाली पेट, पानी से कुल्ले करने के बाद, ‘सल्फर’ 200 शक्ति की 10-12 गोलियां मुंह में डालकर चूस लें। आधे घण्टे तक कुछ खाएं-पिएं नहीं। आधे घण्टे बाद दन्तमंजन या टूथपेस्ट आदि करें। इस दिन फिर कोई दवा न लें।
3. तीसरा दिन – ‘सल्फ्यूरिक एसिड’ मदर टिंचर की पांच-छ: बूंदें एक गिलास पानी में घोलकर सुबह पी लें। इसी तरह दूसरी खुराक दोपहर और तीसरी खुराक शाम को पी लें। इस दिन रात को, पहले दिन की तरह, सोने से पहले, ‘नक्सवोमिका’ 200 शक्ति की 10-12 गोलियां मुंह में रखकर चूस लें।
4. चौथे, पांचवें, छठे और सातवें दिन – दिन में 3 बार, ‘एसिड सल्फ’ मदर टिंचर और रात को सोते समय ‘नक्सवोमिका’ 200 शक्ति में, तीसरे दिन की चिकित्सा की तरह, सेवन करते रहें।
5. आठवां दिन – सुबह उठकर खाली पेट (दूसरे दिन की चिकित्सा की तरह) ‘सल्फर’ 200 शक्ति की 10-12 गोलियां मुंह में डालकर चूस लें। फिर दिनभर कोई दवा न लें। इसी क्रम को दो बार दोहराएं।
6. शराब पीने की वजह से यदि शराबी व्यक्ति के पेट में पीड़ा हो या बेचैनी हो, तो ‘सल्फर’ वाले दिन को छोड़कर, शेष दिनों में अन्य दवाएं लेते हुए, एक घण्टे का अन्तर रख कर ‘फॉस्फोरस’ 30 शक्ति की 10-12 गोलियां सुबह और शाम में मुंह में डालकर चूस लेनी चाहिए। लाभ होने पर इस दवा का सेवन बन्द कर देना चाहिए।
7. यदि शराबी व्यक्ति शारीरिक कमजोरी का अनुभव करता हो, तो उसे ‘एसिड फॉस’ मदर टिंचर की 6-6 बूंद आधा कप पानी में घोलकर सुबह-शाम भोजन करने के आधे घंटे बाद पी लेनी चाहिए। इस दवा से हाथ-पैरों की कमजोरी और पीड़ा दूर होती है, शारीरिक व मानसिक शक्ति बढ़ती है, चिड़चिड़ापन और मानसिक दौर्बल्य दूर होता है। लाभ होने पर दवा बन्द कर दें।
8. यदि शराबी व्यक्ति को नींद न आती हो, तो ‘एवेना सैटाइवा’ एवं ‘पसाफ्लोरा’ मदर टिंचर की 15 बूंद आधा कप पानी में घोलकर सुबह-शाम पी लें। लाभ होने पर दवा बन्द कर दें।
9. सिगरेट पीने के आदी लोग, जो सिगरेट छोड़ना तो चाहते हैं पर छोड़ नहीं पाते, उनके लिए ‘टेबेकम’ दवा 200 शक्ति की 10-12 गोलियां सुबह, 10-12 गोलियां शाम को, आदत छूटने तक लेते रहना चाहिए।
10. तम्बाकू सेवन छोड़ने के लिए ‘कैलेडियम’ दवा की 30 शक्ति की 10-12 गोलियों की एक-एक खुराक दिन में तीन बार चूसनी चाहिए।
11. तम्बाकू की तीव्र इच्छा होने पर ‘स्टेफिसेग्रिया’ औषधि उच्च शक्ति में लाभ करती है। एक बात शराबी, नशेड़ी व इनके घरवालों को भी ध्यान में रखनी चाहिए कि जब तक ऐसे रोगियों में स्वयं से नशे की बीमारी से छुटकारा पाने की चाहत नहीं होगी तब तक उनका इलाज़ कर पाना मुश्किल कार्य है। दृढ़ इच्छा शक्ति का होना अत्यंत आवश्यक है। याद रखें नशा एक बीमारी है और यह वंशानुगत भी हो सकती है। नशे के रोगियों के लिए अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं ‘एल्कोहलिक एनोनिमस’ व ‘नारकोटिक्स एनोनिमस’ भारतवर्ष में भी बड़े-बड़े शहरों में कार्यरत हैं जो कि ‘सेल्फ हेल्पग्रुप’ के रूप में कार्यकरती हैं। इनमें शराब व नशे के रोगी अपने अनुभव के आधार पर एक-दूसरे की सहायता करते हैं। रोगियों के परिवार वालों के लिए भी इन संस्थाओं की शाखाएं कार्य करती हैं। इनके अच्छे परिणाम सामने आए हैं।
यह बात ध्यान में रखें कि दो दवाओं को सेवन करने के बीच एक घण्टे का फासला रखें और दवा लेने के आधा घण्टा पहले से खाना-पीना बर कर दें और आधा घण्टा बाद तक भी कुछ खायें-पीयें नहीं।