[ अमेरिका का एक तरह का छोटी जाति का वृक्ष ] – इसकी प्रधान क्रिया श्वास-प्रश्वास यंत्रों पर ही होती है, इसलिए यथार्थ दमा या ब्रोंकाइटिस से उत्पन्न दमा जैसी अवस्था में, हे ऐज्मा ( यानी पहले आँख-नाक से पानी गिरना, पीछे उस पानी का गाढ़ा हो जाना और दमा की तरह खिचाव होना ) तथा साधरण सर्दी खांसी में भी – इससे बहुत फायदा होता है।
दमा (asthma ) – रोगी से किसी भी तरह लेटा नहीं रहा जाता, लेटने से सश्वास लेने में कष्ट होता है। यहाँ तक कि उस समय ऐसा मालूम होता है कि उसी समय सांस रुक जाएगी, इसलिए दिन-रात बैठा रहता है। इसके सिवा – इसमें हिलने-डोलने या दो-चार कदम चलने पर भी इसी तरह का श्वास रुकने का भाव पैदा हो जाता है, जिससे रोगी को स्थिर होकर बैठे रहना पड़ता है। डॉ जोन्स का कहना है – ऐरालिया का रोगी सिर झुकाकर, घुटने और कोहनी के सहारे या पट होकर बैठा रहता है। सोना होता है तो सामने तकिया रखकर हाथ पर सिर रख के बड़े कष्ट से जरा सा सो लेता है। ऐरालिया के रोगी को सांस लेने के समय बहुत तकलीफ होती है, सांस लेते समय रोगी को सिर उठाकर छाती फैला देनी पड़ती है ; पर सांस छोड़ते समय सरलतापूर्वक छोड़ता है कोई तकलीफ नहीं होती।
खाँसी – रोगी अच्छी तरह सो रहा है, इतने में नींद खुलकर झटके से खांसी आने लगती है। इस तरह की खांसी अक्सर पहली नींद के बाद से ही आती है। इसमें खांसते-खांसते मानो दम घुटने लगता है, किसी तरह भी खांसी कम नहीं होती, खूब जोर-जोर से खांसता रहता है, बहुत देर तक खांसने के बाद थोड़ा सा बलगम निकलने पर खांसी कुछ घटती है। खांसने के समय और उसके पहले – गले में सुरसुरी होती है, ऐसा मालूम होता है जैसे कोई पदार्थ वहां अड़ा हुआ है।
छींके – ठण्डी हवा में जाने से छींके आने लगती है, नाक से अधिक मात्रा में त्वचा को छील देने वाला स्राव आरम्भ होता है। स्त्रियों का ऋतू स्राव बहुत तीखा तथा दुर्गन्ध वाला होता है, साथ ही नीचे की ओर दबाव मारता हुआ दर्द होता है।
मात्रा – मूलार्क से तीसरी शक्ति।