हिंदी नाम – सहोरा है। यह दवा परीक्षित है। इसके चरित्रगत लक्षण इस प्रकार है :-
- प्रातः काल सिर चकराना, मालूम होता है मानो उसके चारों तरफ सभी वस्तु ही घूम रही हैं।
- आँख में जलन व रोशनी में कष्ट होना।
- नाक में सूखी सर्दी, नाक से रक्तस्राव होना।
- चेहरा फीका दिखाई पड़ता है, पीला चेहरा।
- मसूढ़ो से रक्तस्राव होना, दांतों की जड़ों में दर्द।
- जीभ व मुख में तीता स्वाद या बदबू होना।
- बहुत ही तेज़ भूख; क्षीर, छेना, मांस नींबू इत्यादि खाने की प्रबल इच्छा।
- गला व टॉन्सिल फूले हुए।
- प्रातः काल बार-बार थूक – कभी- कभी नमकीन जल उठना, आहार करने के बाद बार-बार डकार आना, छाती जलना, मुख में खट्टा पानी आना और यकृत स्थान पर जलन रहती है, निम्नोदर फूलता है, पेट में दर्द, नाभि के चारों तरफ नोचने-सा दर्द, पेट गड़गड़ाना।
- ज्वर-काल में कब्जियत रहना, मिट्टी के रंग की तरह मल का रंग व बदबूदार मल।
- थोड़े परिमाण में गाढ़ा पीले रंग का पेशाब।
- छाती घड़कना, ज्वर के समय नाड़ी पूर्ण, कड़ी व तेज़, किन्तु ज्वर आने के पहले या बाद में खूब दुर्बल व धीर।
- कंधे व पीठ में दर्द।
- ज्वर आने का कोई नियम नहीं है, फिर भी सवेरे 6 से 8 के अन्दर अधिकांश समय शीत लगकर ज्वर आता हैं, उत्तापावस्था में-असहनीय प्यास, प्राय: शाम में 3-4 बजे ज्वर छूट जाता है।
- पहले 1 दिन के अन्तर से 1 दिन ज्वर आता है, बाद में दो दिन अन्तर से ज्वर आता है।
पित्तशूल का दर्द, छाती जलना, बहुत ही कब्जियत या उदरामय, भोजन करने के बाद ही पेट में कभी बहुत थोड़ा – कभी भयानक दर्द या कभी भोजन करने के बाद कै, सारी खाई वस्तु निकल पड़ती है, पेट फूलना उदरामय, कृमि या पित्त-जनित सायंकाल ज्वर-सा भाव होना, कृमि-जनित अशान्ति, नाभि में शूल-सा दर्द, इन सब लक्षणों में यह कॉलेरा व खूनशुदा आँव में भी लाभदायक है ।
शरतकाल से जाड़े तक के दिनों के रक्त या सफेद आँव में इससे इतना फायदा होता है कि चिकित्सक आश्चर्यचकित हो जाते हैं, यहाँ अटिस्टा इण्डिका Q शक्ति 2 बूँद की मात्रा में बार-बार प्रयोग करना चाहिये।
क्रम – Q से 6x शक्ति।