हिंदी नाम – सरोहा की जड़। घरेलू चिकित्सा के हिसाब से रक्तशुदा आंव के रोग में गोलमिर्च के साथ मूल की छाल पीसकर बहुतेरे उपयोग करते हैं। आंव या रक्तशुदा आँव में अटिस्टा इण्डिका के जो लक्षण हैं यह भी उन सब लक्षणो में ही सफलता के साथ उपयोग होता है। अटिस्टा रैडिक्स में अटिस्टा इण्डिका की अपेक्षा कार्य करने की शक्ति अधिक है। नाभि के चारों तरफ तेज दर्द के साथ जहाँ पर मल में ताजा लाल रक्त रहता है, वहां अटिस्टा रैडिक्स से लाभ होता है। शरतकालीन आँव में इससे फायदा होता है। कृमि-जनित नाना प्रकार के उपसर्गों तथा पेट दर्द, अतिसार, कॉलेरा, उदरशूल का दर्द, अम्ल व पित्तशूल के दर्द इत्यादि की भी यह उत्कृष्ट मेडिसिन है।
क्रम – रक्तशूदा आँव में Q, 3x और कृमि व अन्य रोगों में 3x, 12x व 30 शक्ति का प्रयोग होता है।