[ Margosa Barr ] – इस औषधि का हिन्दी नाम नीम है। साधारण – घाव, फोड़ा व दूषित घाव इत्यादि में ही यह प्रयोग की जाती है। नीम की छाल सूखा कर खूब महीन कूटकर ज्वर के विराम काल में 3-4 घन्टे के अन्तर से खिलाने पर भी ज्वर बन्द हो जाता है। ज्वर अरोग्य होने के बाद दुर्बलता को दूर करने के लिये दिन भर में 2-3 बार नीम की छाल का काढ़ा पिलाने पर शरीर शीघ्र ही पुष्ठ हो जाता है।
मुख्य लक्षण – मन बहुत उदास रहता है, कुछ भी याद नहीं रहता है, बाहर जाने या घूमने फिरने से डरता है, सिर चकराता है, सिर में दर्द होना, मामूली सर्दी के साथ आंख लाल व जलन, शरीर के ऊपरी भाग पर अत्यधिक पसीना, चेहरा फीका, गले व मुंह के भीतर रस रहता है, प्यास हीनता, फिर भी मुंह चिपचिपा, पानी पीने से तृप्त होना, छाती में जलन, पेट फूलता है, पेट में गड़गड़ाहट, अत्यधिक कब्जियत, मल गांठ-गांठ, मल त्यागने से सन्तोष नहीं होता, पुरुष जननेन्द्रिय की प्रबल उत्तेजना, संगम की प्रवृत्ति घट जाना, रक्तशुदा श्वेत-प्रदर, क्लेद स्राव (Lochia) सड़ा, सवेरे देर से स्नान करने पर अत्यन्त कष्टदायक खांसी आना, बीच-बीच में सांस में अधिक खिचाव, नाडी तेज, हाथ-पैर सुन्न, हथेली व तलवे में जलन, इससे कुष्ट रोग भी आरोग्य हो जाता है।
सम्बन्ध – पल्स, इपि, रस, आर्स, रोहितक।
मात्रा – 6, 30, 200 शक्ति।