प्रकृति प्रदत्त तीखी, चटपटी, स्वादिष्ट अदरक का उपयोग प्राचीन काल से चला आ रहा है। संस्कृत में इसे ‘श्रृंगवेर’ कहा गया है, जिसका देवतागण भी सेवन करते थे। इसे घरेलू औषधि के रूप में माना गया है। शास्त्रों में यह महौषध, विश्वौषध या विश्वा के नाम से भी सुशोभित है। ‘आर्द्रक’ यानी ‘आर्द्र’ अर्थात् गीला। नम रहने तक यह अदरक तथा सूखने पर सोंठ बन जाती है। नम रूप में इसकी तासीर ठंडी व सोंठ रूप में गर्म होती है। इसे चरक संहिता में बलवर्द्धक कहा गया है। सूखने पर अदरक खराब नहीं होती। वजन में यह हल्की होती है।
रासायनिक संगठन
पानी 80.9 प्रतिशत, प्रोटीन 2.3 प्रतिशत, चरबी 0.9 प्रतिशत, कार्बोदित पदार्थ 12.3 प्रतिशत, लौह 2.6 मि. ग्राम/ प्रति 100 ग्राम।
शक्ति और स्फूर्ति का अनमोल खजाना अदरक भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में प्रयोग में लिया जाता है। कम्बोडिया में इसे टॉनिक, चीन, मलेशिया व अफ्रीका में औषधि के रूप में काम में लेते हैं। पौष्टिक और बलदायक अदरक मसाले के साथ उपयोगी व स्वादवर्द्धक है। चरक ने इसे वृष्य माना है क्योंकि वृष अर्थात् साँड़ मर्दानगी का प्रतीक है। वायु, वात, कफनाशक अदरक शरीर को चुस्त और स्वस्थ बनाता है वहीं स्मरणशक्ति बढ़ाते हुए सौन्दर्य के निखार में भी उपयोगी है। यह उष्मा देता है वहीं शक्ति बनकर रोगों का निवारण करता है। इसको मुँह में रखते ही लार ग्रन्थियाँ लार छोड़ने लगती हैं जिससे गला तर रहता है तथा पाचन के साथ नाड़ी तंत्र निर्मल होता है तथा स्वर यंत्र खुलता है। अतएव यह श्वास नली, फेफड़े, कान, नाक, गला, दिमाग, दिल, पेट और पैरों तक सारे खून को गर्माए रखती है।
अदरक जमीन में पैदा होने वाला द्रव्य है। चैत्र तथा बैसाख के महीने में इसकी खेती की जाती है। यह दो प्रकार का होता है – रेशेदार और बिना रेशेदार।
इसमें रेशेदार उत्तम होता है। यह देशी अदरक है। चाहे चाय हो, सब्जी हो, अचार हो अथवा औषध, प्राय: सभी में अदरक काम आती है। कुछ लोग अदरक को सुखाकर काम में लेते हैं जिसे सोंठ कहते हैं।
अदरक के गुण – रूक्ष, तीक्ष्ण, रस- कटु, विपाक कटु-वीर्य-उष्ण।
अदरक के औषधीय गुण
( adrak ke fayde in hindi )
(1) खाँसी – खाँसी में अदरक का रस व शहद बराबर-बराबर मिलाकर दिन में दो बार चाटकर दूध या चाय पीने से सूखी तथा गीली खाँसी दोनों में ही आराम मिलता है।
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(2) फोड़े-फुन्सियों पर – गीली अदरक को घिसकर लगाने से फोड़े-फुन्सी शीघ्र ही ठीक हो जाते हैं। इसे घिसकर गाँठों पर भी लगाया जाता है।
(3) जलोदर – इसका ताजा रस जलोदर के रोगी को पिलाने से खूब आराम मिलता है क्योंकि इससे रोगी को पेशाब खूब आता है। इसको रोगी की आवश्यकता तथा सहनशक्ति के अनुसार ही पिलाना चाहिए। मशक की तरह फूले पेट में पानी भरने को जलोदर रोग कहते हैं और अदरक जलोदर का महान शत्रु है। पचास ग्राम अदरक कुचल कर रस निकालें। इसे सवेरे सालम मिश्री में मिलाकर पीने से लाभ होगा।
(4) जोड़ों का दर्द – जोड़ों के दर्द में अदरक का रस 1 किलो, तिल्ली का तेल आधा किलो लेकर अंगीठी पर चढ़ाएं, जब उसमें सारा रस जल जाए तथा तेल मात्र शेष रह जाए तब उसे छानकर शीशी में भरकर रख लें। इसकी मालिश करने से जोड़ों का दर्द ठीक हो जाता है।
(5) कामला – अदरक, त्रिफला [ हरड़+बहेड़ा+आंवला ], गुड़ तीनों को बराबर मिलाकर पीने से कामला में लाभ मिलता है।
(6) भूख बढ़ाने के लिए – अदरक व नींबू का रस बराबर-बराबर मिलाकर पीने से भूख खुलती है। इसमें काला नमक, सेंधा नमक, काली मिर्च, नौसादर स्वादानुसार मिलाकर चाटने से गले में चिपका हुआ कफ आराम से निकल जाता है।
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(7) दंतशूल – सर्दी के दिनों में दाँत में होने वाले दर्द में थोड़ा-सा अदरक का टुकड़ा दाढ़ में रखने से दाँत का दर्द ठीक हो जाता है।
(8) श्वास – अदरक के बारीक-बारीक टुकड़े करके देशी घी में भूनकर किसी साफ शीशी में रख लें। इन टुकड़ों को एक-एक करके चूसने से साँस की शिकायत नहीं होती तथा खाँसी का दौरा भी नहीं पड़ता है।
(9) प्रतिश्याय – अदरक का रस दो भाग, नीबू का रस एक भाग, कालीमिर्च, काला नमक, सादा नमक, शक्कर तथा सिका हुआ जीरा आदि स्वाद के अनुसार मिलाकर पीने से कफ का नाश होता है तथा खाँसी, जुकाम और बहती हुई नाक में आराम मिलता है। नजले या जुकाम में अदरक, तुलसी के पत्ते और कालीमिर्च की चाय अत्यन्त लाभकारी है। इस चाय को दिन में तीन-चार बार ले सकते हैं।
(10) शुष्कार्द्रक – अदरक के छोटे-छोटे टुकड़े काटकर नीबू के रस में डाल दें तथा ऊपर से सेंधा नमक डाल दें, फिर भोजन के बाद लेने से इससे जीभ भी साफ हो जाती है और खाया पीया पच जाता है। अदरक के इन सब गुणों को देखते हुए हम यह कह सकते हैं कि यह वायु तथा कफ का नाश करने वाला है। कम्बोडिया में इसकी जड़ों को सुगन्धित चीजें बनाने के काम में लिया जाता है।
(11) मधुमेह – 100 ग्राम गुड़मार, सोंठ व जामुन गुठली 50-50 ग्राम मिला घृतकुमारी रस में खरल कर मटर के बराबर गोलियां बनाकर एक-एक गोली दिन में तीन बार लेने से मधुमेह में लाभकारी होता है।
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(12) मसूड़े की सूजन – मसूड़े फूलने पर एक चम्मच अदरक रस, एक कप गुनगुने पानी में चुटकी भर नमक मिलाकर दिन में तीन बार मुँह में कुल्ले की तरह पानी घुमाकर पीने से मसूड़ों की टीस, सूजन जैसे विकार दूर होते हैं। मवाद हो तो केवल कुल्ला करके जल बाहर ही थूक दें। 1
(13) कफ दोष – अदरक का रस और शहद 5 ग्राम मात्रा में मिलाकर चाटने से सर्दी में कफ से छुटकारा मिलता है व बलगमी खाँसी में भी लाभकारी है।
(14) स्वरभंग – अदरक रस में नीबू रस व नमक मिलाकर खाने से अजीर्ण व अपच नहीं होता। अदरक रस में गर्म पानी मिलाकर इक्कीस बार गरारे करें, बंद गला खुलकर आवाज सुरीली हो जाएगी। दस-दस ग्राम सोंठ व मिश्री पीस कर शहद में मिली गोली खाएँ तो गला खुल जाएगा।
(15) उदरकृमि – दस ग्राम की मात्रा में अदरक, लहसुन और काला नमक गन्ने के सिरके में खरल कर पीने से पेट के कीड़े समाप्त होते हैं जिनके कारण रोगी को वमन, अफारा, अजीर्ण तथा पेट दर्द की शिकायत बनी रहती हैं।
(16) यकृतशोथ – अदरक की दो गांठें, एक मूली और आधे नीबू का रस मिली चटनी में इच्छानुसार नमक मिलाकर खाने से जिगर की सूजन मिट जाती है।
(17) शीतपित्त – शीत गर्मी से उछली पित्ती जिससे शरीर पर चकते उभरते हैं, असहनीय खुजली व जलन होने लगती है तब अदरक का रस व शहद मिलाकर चाटें या अदरक, अजवायन और पुराना गुड़ कूट-पीस लें। चार-चार घंटे के अन्तर में बीस-बीस ग्राम की फांकी गुनगुने पानी के साथ लें, आराम मिलेगा।
(18) दमा – अदरक का रस एक तोला, शहद 1 तोला गर्म करके दिन में दो बार पिएं। दमा, खाँसी के लिए बढ़िया दवा है।
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(19) भूख की कमी – 6 माशा अदरक बारीक काटकर थोड़ा-सा नमक लगाकर दिन में एक बार, 8 दिन तक खाएं। हाजमा ठीक होगा, भूख लगेगी,पेट की हवा साफ होगी और कब्ज दूर होगी।
(20) हाजमे के लिए चूर्ण – सोंठ 2 तोला, अजवायन 2 तोला, नीबू का रस इतना डालो कि भीग जाए और छाया में सुखाकर बारीक पीसकर थोड़ा नमक मिलाकर रख दें। मेदे को ताकत देता है, पेट का दर्द ठीक होगा। खट्टी डकार को रोककर खाना हजम करता है।
(21) उल्टी – अदरक और प्याज का रस दो चम्मच पिलाने से उल्टी बंद हो जाती है।
(22) बन्द गला और जुकाम – अदरक का रस 1 तोला, शहद 1 तोला गर्म करके दिन में दो बार पिलाने से जुकाम ठीक हो जाता है।
(23) वायु का दर्द – सोंठ आधा पाव, रात को आधा किलो दूध में भिगोकर रखें। सुबह सोंठ मिलाकर बारीक छान लें। 1 किलो आटा, आधा किलो घी में भूनकर, पिसी हुई सोंठ मिला दें और आधा किलो चीनी मिलाकर रख दें। एक छटांग रोजाना एक पाव दूध के साथ खाएं। वायु के दर्द और कमर के दर्द में फायदा करेगा। 2 तोला सुरंजान-शीरी भी पीसकर इसमें मिलाएं, सोंठ वाला दूध फेंक दें।
(24) मसूड़ों का फूलना – अगर मसूड़े फूल जाएं तो तीन माशा सोंठ दिन में एक बार पानी के साथ चार दिन तक खाने से दाँत का दर्द भी ठीक हो जाएगा।
(25) स्वर भंग – कालीमिर्च 1 ग्राम, बंशलोचन आधा ग्राम, मिश्री आधा ग्राम, अदरक स्वरस [रस] की भावना लगाकर चने बराबर गोलियाँ बनाएं। यह 2 गोली सुबह चूसकर गर्म दूध चाय पीएं।
(26) निमोनिया में – घी में इसका रस मिलाकर सीने पर मलना चाहिए।
(27) अम्लपित्त में – अनार का रस 30 एम.एल. [3 चम्मच], अदरक स्वरस आधा चम्मच [5 एम.एल.] की मात्रा को दिन में चार बार लेना चाहिए। इससे खट्टी डकारें आना, उल्टी होना, जी मिचलाना, पेट में जलन होना ठीक हो जाता है।
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(i) आर्द्रक गैरिक वटी – अदरक के रस को गैरिक में डालकर सुखाएं, इस तरह 7 भावना लगाकर 2-2 रत्ती की गोलियां बनाकर रखें। 2-2 गोलियां दिन में तीन बार किसी भी उष्ण पेय से लेने पर खाँसी, गले में जलन दूर होती है तथा रंग निखरता है।
खट्टी-मीठी चटनी, सलाद, मिर्च-मसालों, साग-सब्जियों, मूली व नीबू के साथ चाय के अन्दर, जूस या रस में उपयोगी अदरक सर्दी, जुकाम, खाँसी, ब्रोंकाइटिस, दमा, क्षय, अजीर्ण, अफारा, वात एवं कफ आदि अनेक दु:साध्य रोगों में भी नाना भाँति से उपयोगी है। अदरक पाक प्राय: बच्चों को सर्दी-खाँसी में दिया जाता है। अदरक को सुखाकर इसका चूर्ण भी अजीर्ण या पेट के रोग में प्राय: काले नमक के साथ खिलाते हैं। 25 ग्राम सोंठ, 100 ग्राम हरड़ व 15 ग्राम अजमोद कूट-पीसकर कपड़े से छानकर 3-4 ग्राम चूर्ण सुबह शाम गुनगुने पानी के साथ लेने से गठिया रोग में लाभ होता है। .
(ii) अदरक [शर्बत] शार्कर – अदरक स्वरस 300 मिलीलीटर, जल 300 मिलीलीटर, चीनी 400 ग्राम डालकर चाशनी बना लें फिर इसमें छोटी इलायची, जावित्री, जरा-सी केसर [1 ग्राम] पीला रंग आवश्यकतानुसार मिलाकर रख लें। यह शर्बत सर्दी में सेवन करने से सर्दी-जुकाम, खाँसी होना, कंपकंपी लगना सबमें फायदा करता है तथा पाचन शक्ति भी ठीक रहती है।
(iii) अदरक पेय – अदरक, मंजीठ, पानी, इलायची, लौंग सब पानी में डालकर उबाल लें फिर सबसे आखिरी में दूध डालें। कभी-कभी दूध पहले डालने से फटने का डर रहता है। इस पेय को लेकर सर्दी में सर्दी, जुकाम, बुखार, एलर्जी, स्वर भंग, गले में खराश होना आदि रोगों से बच सकते हैं।
(iv) अदरक घृत – अदरक स्वरस एवं घृत बराबर ले लें। दोनों को मंदी-मंदी आँच पर पकाएं फिर छानकर रख लें। इस घृत से पेट के सभी रोग ठीक हो जाते हैं। यह खाने और लगाने के दोनों ही काम में आता है।
(v) अदरक लेह – अदरक की चटनी बहुत स्वादिष्ट बनती है। यह चटनी स्वास्थ्य के लिए हितकर है।
घटक – छुआरे 100 ग्राम, अदरक 200 ग्राम, दाख 100 ग्राम, इलायची, सेंधा नमक, नीबू का रस।
विधि – छुआरे, अदरक और दाख इन सबके छोटे-छोटे टुकड़े करके 5-10 मिनट खोलते हुए पानी में रख दें फिर कुछ समय बाद निकाल कर नमक, रस आदि मिलाकर रख दें।
परहेज-
(1) खटाई, दही, लस्सी आदि न खाएं।
(2) पुराने हृदय रोग से पीड़ित रोगियों, वृक्क रोगों से पीड़ित रोगियों को अदरक प्रयोग नहीं करना चाहिए।
(3) जिसे पेशाब में जलन होती हो या अदरक खाने से या अदरक की चाय पीने से हो जाती हो उसे अदरक का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
(4) अदरक खाने से जिसे पेट में जलन होती हो, भपका लगा रहता हो उसे अदरक का प्रयोग नहीं करना चाहिए या फिर उस जलन को मिटाने के लिए खाने के बाद आइसक्रीम खानी चाहिए।
श्वेत प्रदर – किसी को अदरक खाने से श्वेत प्रदर में जलन [भपका] होने से गुप्तांगों में या उसके चारों तरफ ललाई [उपाड़] होकर जलन होने लगती है तो उसे भी अदरक नहीं खानी चाहिए।