इससे मुक्ति पाने के लिये कई कीटनाशक दवाओं जैसे- डी. डी.टी., क्लोरोडीन, लिन्डेन, डायाजीनोल आदि का प्रयोग किया जाता है परन्तु इनका दुष्प्रभाव मानव-शरीर पर पड़ता रहता है । होमियोपैथी में इस समस्या का इलाज इस प्रकार है।
एजाडिरेक्टा इण्डिका Q- यह नीम से बनने वाली दवा है । इसे प्रतिदिन दो-तीन बार पानी में मिलाकर पीने से मच्छर, खटमल, जूं, चीलर आदि शरीर का रक्त पीने में असमर्थ हो जाते हैं और भाग खड़े होते हैं । इस दवा को किसी अच्छे तेल में मिलाकर शरीर पर लगाया भी जा सकता है। इस दवा को मिट्टी के तेल (केरोसिन) अथवा तारपीन के तेल में मिलाकर छिड़काव भी किया जा सकता है | इसके छिड़काव से खटमल भाग खड़े होते हैं क्योंकि इसकी गन्ध खटमलों के लिये बहुत ही अरुचिकर होती है।
बाजार में अर्युना अगरबत्ती मिलती है। यह अनेक वानस्पतिक कीटनाशकों जैसे- एजाडिरिक्टिन (जो नीम की निम्बोली से बनती है), गार्लिक, लम्फा, चायपत्ती, बोंबई आदि से मिलकर बनती है । इसे जलाकर घर के अन्दर रख दें और खिड़की-दरवाजे बन्द कर दें । कुछ देर बाद खिड़की-दरवाजे खोल सकते हैं । इस अगरबत्ती की गन्ध से मच्छर, खटमल आदि कीट भाग जाते हैं । इसकी महक कई दिनों तक धर में बनी रहती है जिससे ये कीट घर में प्रवेश नहीं कर पाते ।