(1) यह कुनीन का दूसरा नाम है – चिनिनम सल्फ औषधि शुद्ध कुनीन है। ऐलोपैथ हर किस्म के मलेरिया में कुनीन दे देते हैं, परन्तु कुनीन का अपने ढंग का ज्वर होता है जिसमें यह औषधि उच्च-शक्ति में कुनीन के दोषों को उत्पन्न किये वगैर ज्वर को शांत कर देती है। कुनीन की थोड़ी मात्रा के सेवन से अगर मलेरिया नहीं उतरता, तो ऐलोपैथ डाक्टर लोग इस मात्रा को बढ़ा देते हैं, यहां तक कि बुखार उतरने के स्थान में दब जाता है और अन्य लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं। कान बहरे हो जाते हैं, भूख लगनी बन्द हो जाती है, शरीर में क्षीणता, दुर्बलता आ जाती है, रक्ताणु घट जाते हैं, फिर डाक्टर लोग टॉनिक देने लगते हैं, और ज्यों पेटेंट औषधियों का चक्कर चलता है, वह कहीं समाप्त नहीं होता। चायना और चिनिनम सल्फ़ (कुनीन) – ये दोनों उच्च-शक्ति में देने से बुखार को दूर करते हैं। इनके लक्षण बहुत-कुछ समान हैं, परन्तु इनमें भेद भी हैं।
(2) चायना तथा चिनिनम सल्फ (कुनीन) में भेद – इन दोनों में सामनता तो यह है कि दोनों में कमजोरी होती है, दोनों में बुखार एक निश्चित समय पर आता है, किसी प्रकार का स्नायु-शूल हो तो वह भी नियत समय पर होता है, दोनों के ज्वर में शीत, उत्ताप, पसीना – ये तीनों अवस्थाएं होती हैं, दोनों में जिगर या तिल्ली का शोथ को सकता है, ज्वर का आक्रमण पिछले आक्रमण से कुछ पहले हो सकता है, परन्तु इन दोनों में मुख्य तौर पर ज्वर में आने के समय और प्यास के संबंध में भेद है जिसे निम्न प्रकार प्रकट किया जा सकता है।
चायना | चिनिनम सल्फ |
समय – ज्वर अथवा कोई भी बीमारी ठीक एक दिन, दो दिन, सात या पन्द्रह दिन के अन्तर से बढ़ती है। रात समय बुखार नहीं आता | सवेरे 10 या 11 बजे और तीसरे पहर 3 बजे से रात के 10 बजे तक एक दिन का अन्तर देकर, दो घंटे आगे बढ़कर ज्वर आता है। 10 या 3 बजे दोपहर ठंड लगनी शुरु होती है। |
प्यास – शीतावस्था में प्यास नहीं होती परंतु शीत लगने से बहुत पहले प्यास लगती है, शीतावस्था में नहीं रहती; पूर्ण-उत्ताप में भी प्यास नहीं रहती, स्वेद की अवस्था में भारी प्यास रहती है। | शीतावस्था में प्यास होती है, उत्ताप की अवस्था में भी प्यास रहती है, स्वेद की अवस्था में भी प्यास रहती है। ज्वर की तीनों अवस्थाओं में प्यास रहती है। |
(3) शक्ति – 1c, 3c, 6, 30, 200