गला रुँधने के लक्षणों में निम्नलिखित औषधियों का प्रयोग हितकर सिद्ध होता है :-
ऐसाफिटिडा 3 – रोगी के पेट से गले की ओर एक गोला चढ़ने जैसा अनुभव जिसे नीचे धकेलने के लिए रोगी बार-बार प्रयत्न करें, परन्तु वह हर बार ऊपर की ओर ही चढ़ता हुआ प्रतीत हो । यह रोग वायु की गति से नीचे की बजाय, ऊपर की ओर जाने के कारण होता है ।
स्पाइजिलिया 6, 30 – नाक के पिछले भाग से अत्यधिक श्लेष्मा का गले में गिरना, जिसके कारण गला रुंधता हुआ-सा प्रतीत हो । प्राय: जुकाम में ऐसी स्थिति आ जाती है ।
ग्रैफाइटिस 3 – खाते-पीते समय गला रुंधना, भोजन का भोजन-नली में न जाकर, श्वास-नली में चला जाना तथा श्वास-नली के द्वार का अचानक ही आकुंचन हो जाना-इन लक्षणों में लाभकारी है ।
इग्नेशिया 6, 30 – स्त्री-रोगी के गले से एक गोला-सा उठकर गले की ओर चलना तथा रुग्णा का उसे निगलने का प्रयत्न करना, परन्तु निगलने के बाद भी गोले का पुन: उठ कर गले की ओर आना-इस प्रकार बारम्बार होना । इस प्रकार का गोला प्राय: किसी प्रकार का मानसिक-कष्ट होने पर उठा करता है । इसे हिस्टीरिया का लक्षण भी माना जाता है, जबकि ‘ऐसाफिटिडा’ में ऐसा गोला पेट की वायु के कारण ऊपर की ओर चढ़ता है ।
कैमोमिला 30 – भीतर से किसी वस्तु के उठ कर गला घोंटने जैसी अनुभूति होने पर इसका प्रयोग लाभ करता है ।
लैकेसिस 30 – किसी के द्वारा गले को कसने (दबोचने) जैसा अनुभव जिसके कारण गला रुँध गया हो, पानी पीते समय तथा द्रव-पदार्थों एवं थूक को निगलते समय गले में दुखन, गर्म पेय-पदार्थों को न पी सकना, सो कर उठते समय कष्ट में वृद्धि-इन सब लक्षणों में हितकर है।
कैक्टस 3 – श्वास-नली, भोजन-नली, हृदय तथा मूत्र-नली, इन सभी जगह रुकावट का अनुभव, हृदय-कष्ट के समय हृदय को किसी के द्वारा चिमटे से जकड़ लेने जैसी अनुभूति और उसी समय गला भी रूंधता हुआ-सा प्रतीत हो-इन सब लक्षणों में इसका प्रयोग हितकर है ।
बेलेरियाना Q – तीव्र सिर-दर्द अथवा मूर्च्छा के साथ ही पेट में से एक गोला उठकर गले की ओर आता हुआ प्रतीत हो, तब इस औषध का प्रयोग हितकर है।