यह औषधि पलकों के स्नायुशूल के दर्द और उपदंश रोग से पैदा हुवे घावों में ज्यादा फायदा करती है।
रक्तस्त्राव – बहुत लोगों को शायद जानकारी होगी कि कट जाने पर जिससे खून बहता हो, वहाँ सिन्दूर लगा कर पट्टी बांध देने से खून निकलना बन्द हो जाता है। सिनाबेरिस में खून रोकने का गुण होने के कारण नाक से खून निकलने तथा रक्तामाशय और अर्श आदि से रक्तस्राव हो और वह किसी दवा से आराम न होता हो, तो सिनाबेरिस का प्रयोग करने से अवश्य लाभ होगा।
उपदंश प्रमेह – लिंग मुण्ड का फुलना, उस पर मस्से, मम्सों से खून निकलना, अण्डकोष का बढ़ जाना। पुराने सुजाक के साथ अण्डकोष बढ़ गया हो।
उपदंश और सुजाक दोनों ही विष रोगी के शरीर में प्रवेश करके उसे कमजोर कर चुके हों। सिफिलिस का घाव अगर लाल रंग का हो, तो सिनाबेरिस का ही प्रयोग करना चाहिए।
आंख – आंखों में अश्रुनली से दर्द आरम्भ होकर आँख के चारों ओर कनपटी तक फैल जाता है तथा अन्दरूनी कोण से शुरू होकर भौंह और कान तक चला जाता है। आंखों में कुटकुटाहट और करकराहट होती है सफेद अंश (आंख की कौडी) लाल हो जाती है, पलके सूज जाती हैं देखने की शक्ति कम हो जाती है। पुतलियों में दाग पड़ जाते हैं। इन सब लक्षणों के रहने पर सिनाबेरिस से लाभ होगा।
नाक – नाक की जड़ में भार मालूम होता है, नाक की जड़ पर दबाव, पुराने सर्दी जुकाम में गोंद की तरह लेसदार श्लेष्मा इकट्ठा होना, जो नाक के भीतर गले में चला जाता है।
सम्बन्ध – हिप्पर, नाइट्रि-एसिड, थूजा, सीपिया से तुलना करो।
मात्रा – 1, 3x, 30, और 200 शक्ति।