एक तरह का घातक और तीव्र विष : अमेरिका के शिकारी शिकार करने के लिए तीर के आगे जिस विष का प्रयोग करते हैं, ‘क़ुरारी’ उसी विष से तैयार होती है।
चालक पेशी में पक्षाघात, चलने की शक्ति लोप हो जाती है। श्वसन पेशियों का पक्षाघात, अंगों की मुड़ने की क्षमता लोप हो जाना, स्नायु दौर्बल्य, शर्करामेह के साथ नाड़ियों का लकवा इत्यादि।
रोगी कोई काम करना नही चाहता, न कुछ सोचना चाहता है। सारे सिर में तेज दर्द रहता है सिर के बाल झड़ने लगते हैं दाई आंख के ऊपर तेज सुई गड़ने जैसा दर्द रहता है। नजरों के आगे काले धब्बे दिखाई देते है। कानों में असहनीय दर्द रहता है। नाक पर गांठे उभर आती है तथा नाक से बदबूदार पीब निकलता है। कर्ण खण्डकों में सूजन रहती है। जीभ और मुंह दाईं ओर को खिंच जाते है। स्त्रियों में ऋतुस्राव नियत समय से बहुत पहले तथा ऋतुस्राव के दौरान सिर तथा गुर्दो में दर्द। रोगी को खांसते-खांसते वमन हो जाती है। छाती दबाने पर दुखती हैं। बाहें भारी व कमजोर महसूस देती हैं। हाथ की उंगलियां नही उठती, टांगे कापती हैं। त्वचा पर भूरे रंग के दाग दिखाई देते है, त्वचा से खून टपकता रहता है।
ओजिना रोग में – नाक के भीतर सड़ी बदबू-शुदा और पीब के थक्के, स्नायविक दुर्बलता, स्नायविक पक्षाघात ( इस बीमारी में मानसिक और शारीरिक यांत्रिक क्रिया कुछ देर के लिए बंद रहती है ), जबड़े अटक जाना, दांती लग जाना, कुष्ट इत्यादि बीमारी में कुकारी फायदा करती है।
वृद्धि – अंग हिलाने और चलने से, शीत से, रात के दो बजे, दाहिनी करवट लेटने से।
उपशम – स्थिर सोने से।
क्रियानाशक – स्ट्रिकनिन।
सम्बन्ध – सिस्टिसिन, कोनियम, कास्टिकम, क्रोटेलस से तुलना कर सकते हैं।
मात्रा – 6 शक्ति से 30 शक्ति तक।